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सोमवार, 15 मार्च 2010

स्वर्ग की ओर हाथ बढ़ाना

जब मैं बच्चों को देखता हूँ जो अपनी माताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये उनकी ओर अपने हाथ बढ़ाते हैं तो यह मुझे प्रार्थना में परमेश्वर की ओर जाने के अपने प्रयत्न की याद दिलाता है।

परमेश्वर की प्रारंभिक मंडली में शिक्षा थी कि बुज़ुर्गों को प्रेम और प्रार्थना के पाठ में लगे रहना चाहिये। इन दोनो बातों में, प्रेम करना मुझे बहुत कठिन लगता है और प्रार्थना करना मुझे बहुत चकरा देता है। मेरी परेशानी होती है कि मैं किस बात के लिये विशेष रूप से प्रार्थना करूं - कि लोगों समस्याओं से निकल सकें, या उन्हें समस्याओं में रहते हुए भी स्थिर बने रहने की सामर्थ मिल सके।

ऐसे में मुझे पौलुस के शब्द " आत्मा तो हमारी दुर्बलताओं में हमारी सहायता करता है" (रोमियों ८:२६), ढाढ़स देते हैं। इस वाक्य में पौलुस ने जो शब्द प्रयोग किया है, मूल भाषा में उसका अर्थ है "किसी के प्रयत्न म्रें सम्मिलित होकर उसकी सहायता करना।" परमेश्वर का आत्मा हमारी प्रार्थनाओं में हमारे साथ मिलकर निवेदन करता है। वह "आहें भर भर कर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है।" वह हमारे कष्टों में हमारे साथ दुखी होता है, उसे हमारी चिंता हम से भी अधिक रहती है और वह, आहों के साथ हमारे लिये प्रार्थना करता है, ऐसी प्रार्थना जो परमेश्वर की इच्छानुसार हो। वह जानता है कि प्रार्थना में क्या कहना उचित है।

इसलिये मुझे प्रार्थना में शब्दों के उचित होने की चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं है। मुझे केवल परमेश्वर के लिये भूखा होना है और उसकी ओर हाथ बढ़ाने हैं, आश्वस्त होकर कि वह मेरी सुधि रखता है। - डेविड रोपर


प्रार्थना में परमेश्वर के समक्ष एक शब्दरहित हृदय लेकर आना, हृदयरहित अनेक शब्द लेकर आने से कहीं भला है।


बाइबल पाठ: रोमियों ८:१८-२७


आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भर कर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये विनती करता है। - रोमियों ८:२६


एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २६-२७
  • मरकुस १४:२७-५३

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