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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

प्रकाशन

कमरा हाल बदहाल था। घर के कुर्सी, मेज़ और अन्य फर्नीचर आपस में मेल नहीं खा रहा था। छोटा-मोटा सामान, यहां वहां कोनों और और जगहों में ठुंसा हुआ था। घर में रहने वालों ने स्थिति सुधारने का प्रयास तो किया किंतु उनके इन प्रयासों से कमरे की हालत बदतर ही होती गई।

इस तरह आरंभ होता है टी. वी. घर को सुधारने के बारे में कार्यक्रम। उस घर के लोगों से मुलाकात और बातचीत के बाद, एक सजावट विशेज्ञ कमरे को सर्वथा उपयुक्त रूप से प्रयोग करने की योजना बनाता है। उसकी योजना जैसे जैसे आगे बढ़ती है, कार्यक्रम के संचालक दर्शकों में कमरे की सुधरी दशा जानने के लिये उत्सुक्ता बनाते और बढ़ाते रहते हैं, जब तक की कार्यक्रम में ’प्रकाशन’ का समय नहीं आ जाता। फिर एक चरम सीमा पर लाकर कमरे के बदले स्वरूप को घरवालों और दर्शकों को दिखाया जाता है और वे ’ऊह’ ’आह’ आदि आवाज़ों के साथ आश्चर्य व्यक्त करते हैं।

समय के साथ यह दुनिया और इसके लोग भी इस उपेक्षित कमरे की तरह हो गये हैं। लोग अपने जीवन में ऐसी बातें ले आये हैं जिनकी उपयोगिता नहीं है। जैसे वे अपनी प्राथमिकताएं ऐसे निर्धारित करते हैं, उससे उनका विकास बाधित होता है। लोगों के जीवनों में वयर्थ और उबाऊ बातें भरी हैं और जीवन नीरस हो गए हैं। उनके स्वयं-सुधार के प्रयत्न और योजनाएं कारगर होती नहीं दिखतीं।

जीवन को सबसे अच्छे तरीके से जीने के लिये बाइबल परमेश्वर की योजना बताती है। सारे पुराने नियम में परमेश्वर की योजना बनती और बढ़ती हुई दिखती है और फिर सही समय पर उस योजना का वह सबसे उत्कृष्ट पल आता है जब उस योजना की परिपूर्णता - यीशु मसीह का प्रकाशन होता है। यीशु को देखकर शमौन ने कहा "क्‍योंकि मेरी आंखो ने तेरे उद्धार को देख लिया है। जिसे तू ने सब देशों के लोगों के साम्हने तैयार किया है। कि वह अन्य जतियों को प्रकाश देने के लिये ज्योति, और तेरे निज लोग इस्राएल की महिमा हो" - लूका २:३०-३२।

जब हम परमेश्वर की योजना और मसीह के अनुसार चलते हैं तो हम भी परमेश्वर के महान प्रकाशन का भाग बन जाते हैं। - जूली ऐकैरमैन लिंक


मैं जो कुछ भी हूँ, मसीह यीशु के कारण हूँ, जिसका प्रकाशन मुझे परमेश्वर की दिव्य पुस्तक बाइबल में मिला।
बाइबल पाठ: लूका २:२५-३५


तब यहोवा का तेज प्रगट होगा और सब प्राणी उसको एक संग देखेंगे; क्योंकि यहोवा ने आप ही ऐसा कहा है। - यशायाह ४०:५


एक साल में बाइबल:
  • अय्युब २०, २१
  • प्रेरितों के काम १०:२४-४८

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