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बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

दुखी लोगों की सहायता

जब भी मैंने किसी दुखी व्यक्ति से पूछा है कि "आपकी सहायता किसने की?" तो किसी ने भी कभी किसी ऐसे जन का नाम नहीं लिया जो कोई प्रसिद्ध दार्शनिक हो या धर्म के अध्ययन में जिसने कोई उँची उपलब्धी प्राप्त करी हो। उनकी सहायता करने वाले साधारण लोग ही थे। हममें से प्रत्येक के पास दुखियारों की सहायता करने की समान क्षमता है।

हर एक के दुख के निवारण के लिये सब पर एक समान काम करना वाला कोई उपाय नहीं है। यदि आप दुख भोगने वालों से पूछें तो कोई किसी ऐसे मित्र को याद करेगा जिसने खुश-मिज़ाजी से उन्हें दुख से ध्यान हटाने में उनकी सहायता करी; तो कुछ ऐसे भी हैं जो दुख में इस तरह की खुश-मिज़ाजी को अपमानजनक मानते हैं। कुछ ऐसे हैं जो सीधी, स्पष्ट बात द्वारा सांत्वना पाते हैं तो दूसरे ऐसी स्पष्ट और सीधी बातों को अत्यधिक निराशाजनक मानते हैं।

दुखी जन के लिये कोई जादूई इलाज नहीं है, परन्तु फिर भी एक बात है जिसकी सब को आवश्यक्ता होती है, वह है उनस्के प्रति प्रेम दिखाने की; सच्चा प्रेम सहजबोध से स्वतः ही समझ जाता है कि दुखी जन को क्या चाहिये। जौं वानियर, जिसने जन्म से अपंग लोगों के लिये "L'Arche" आन्दोलन चलाया, का कहना है कि: "दुखी और आहत लोग जो कष्ट और बिमारियों द्वारा टूट चुके हैं, बस एक ही बात चाहते हैं - एक प्रेम करने वाला हृदय जो उनको समर्पित हो, एक हृदय जो उनमें आशा जगाने की लालसा से भरा हो।"

ऐसा प्रेम दिखाना हमारे लिये बहुत कठिन हो सकता है। लेकिन पौलुस प्रेरित सच्चे प्रेम की परिभाषा में याद दिलाता है कि "वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है" (१ कुरिन्थियों १३:७)।

जैसा परमेश्वर के काम करने की रीति है, वह बहुत साधारण को लोगों को अपनी चंगाई पहुंचाने का माध्यम बनाता है। जो दुखी हैं उन्हें हमारा ज्ञान और सूझ-बूझ नहीं चाहिये, उन्हें हमसे केवल सच्चा प्रेम चाहिये। - फिलिप यैन्सी


जो अपना प्रेम प्रकट नहीं करते, वे सच्चा प्रेम भी नहीं करते। - शेक्स्पीयर

पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है। - १ कुरिन्थियों १३:१३


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों १३

यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी।
अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।

एक साल में बाइबल:
  • यशायाह ५९-६१
  • २ थिसुलिनीकियों ३

1 टिप्पणी:

  1. kya itifaq hai, haal he main meri mitra Babita jo christian hain, ne bible se prem ki paribhasha mujhe pad kar sunaayee thi, maine note book main note kar lee thee, is irade se ki main apne blog dwara aur logon tak pahuchaun. Par net kholte hi mere saamne vahi prem ke baare main Bible ki lines aa gayee.
    Prabhu toon kitna dayaloo hai, antaryaami bhi.

    जवाब देंहटाएं