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बुधवार, 1 दिसंबर 2010

सर्वोतम उपहार

किसी को देने के लिये एक उत्तम उपहार ढूंढ रहे हैं, परन्तु नहीं मिल रहा? मेरे एक मित्र ने कुछ उत्तम उपहार मुझे सुझाए थे, जो मैं आपके साथ बांटना चाहता हूँ:

*सुनने की भेंट - दूसरे की बात को बिना बीच में रोके टोके पूरा होने देने, और बिना प्रत्युत्तर को तैयार करे, केवल मन लगा कर सुनना।

*स्नेह की भेंट - प्रीय जनों के प्रति अपने स्नेह को प्रकट करना, उसके लिये उपयुक्त के लिये आलिंगन, पीठ थपथपाना या अन्य कोई संकेत देना।

*हंसी की भेंट - प्रीय जनों के साथ चुटकुले, हास्यपूर्ण कहानियां एवं घटनाएं बांटना, और उन्हें एहसास दिलाना कि आप उनके साथ प्रसन्न रहना और अपनी खुशी बांटना चाहते हैं।

*प्रशंसा की भेंट - उनके प्रति अपनी भावनाओं और सम्मान को प्रकट करना, प्रेम और आदर व्यक्त करते चन्द लाईनों के एक संक्षिपत पत्र की भेंट।

*उभारने की भेंट - किसी से मन से, मुस्कुरा कर, कहना कि "आप आज बहुत अच्छे लग रहे हैं", या "आप मेरे लिये बहुत मायने रखते हैं" या ऐसा कोई उपयुक्त भाव व्यक्त करना।

किंतु मेरे लिए जीवन की सर्वोत्तम भेंट क्या है? अनन्त जीवन का वह उपहार जो मुझे परमेश्वर से प्रभु यीशु में होकर मिला "क्‍योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्‍तु परमेश्वर का बरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्‍त जीवन है।" (रोमियों ६:२३)

यही वह सर्वोतम भेंट है जो मैं सबके साथ बांटना चाहता हूँ - प्रभु यीशु में अनन्त जीवन की भेंट:
"परन्‍तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्‍हें परमेश्वर के सन्‍तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्‍हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।" (यूहना १:१२)

"क्‍योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्‍तु अनन्‍त जीवन पाए।" (यूहना ३:१६)

"परमेश्वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो।" (२ कुरिन्थियों ९:१५)

क्या आपने परमेश्वर की यह भेंट स्वीकार कर ली है? - सिंडी हैस कैस्पर


संसार की सबसे अद्भुत भेंट, संसार के लिए एक गैशाला की चरनी में होकर आई।

परमेश्वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो। - २ कुरिन्थियों ९:१५


बाइबल पाठ: यूहन्ना १:१०-१३

वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्‍पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना।
वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया।
परन्‍तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्‍हें परमेश्वर के सन्‍तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्‍हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।
वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्‍छा से, न मनुष्य की इच्‍छा से, परन्‍तु परमेश्वर से उत्‍पन्न हुए हैं।

एक साल में बाइबल:
  • यहेजेकेल ४०-४१
  • २ पतरस ३

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