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बुधवार, 13 जनवरी 2010

बाइबल की प्रार्थना की पाठशाला

बाइबल पाठ: हबक्‍कूक १:१ - ४

मैं अपने मन का खेद खोलकर कहूंगा; और अपने जीभ की कड़वाहट के कारण कुड़्कुड़ाता रहुंगा। - अय्युब ७:११


अगर हम अपने परमेश्वर को एक बेमेल सहभागी कहें तो यह एक हास्यसपद और उसे छोटा करने वाला कथन होगा। परमेश्वर ने वास्तव में हमारे साथ एक ’असमान’ जोड़ी बनाई है, वह हमें ज़िम्मेदारी सौंपता है कि उसके साथ मिलकर इतिहास रचें। इस सहभागिता का एक पख्श बहुत प्रबल है - जैसे माईक्रोसौफ्ट कम्पनी और हाई स्कूल के विद्यार्थी के बीच का सहयोग।

हम जानते हैं कि मनुष्यों के बीच यदि असमानता का सहयोग हो तो क्या होता है - प्रबल पक्ष कमज़ोर पक्ष को दबाकर उसपर अपना अधिकार चलाता है और कमज़ोर पक्ष चुपचाप सहता है। परन्तु परमेश्वर, जिसे मनुष्यों से कोई भय नहीं है, हमें से निरंतर और ईमान्दार संपर्क बना के रखता है।

मुझे कभी कभी आश्चर्य होता है कि परमेश्वर क्यों हमारी प्रार्थना में इमानदारी को इतना महत्त्व देता है, यहाँ तक कि इमानदारी से कहे गए मनुष्य के अन्यायपूर्ण क्रोध भरे शब्दों को भी सह लेता है। बाइबल की कई प्रार्थनाएं अत्यन्त क्रोध भरी हैं, जैसे: यर्मियाह धोखा खाने और अन्याय सहने के बारे में पुकार उठाता है (यर्मियाह २०:७-१०); हबक्‍कूक ने परमेश्वेर को बहरा होने का दोष दिया (हबक्‍कूक १:२); अय्युब ने उसे छिपा होने और न मिलने वाला कहा(अय्युब २३:८,९)। बाइबल हमें शिक्षा देती है कि हम अपने मन की बातें बेबाक सच्चाई से प्रार्थना में प्रकट करें।

परमेश्वर चाहता है कि हम अपनी शिकायतें लेकर उसके सन्मुख आएं। अगर हम अपने जीवन में बाहर से तो मुस्कुराने का बहाना करें और मन में कुढ़ते रहें तो हम परमेश्वर के साथ अपने सम्बंध का निरादर करते हैं। - फिलिप यैन्सी


तुम्हारे आत्मिक तापमान को नापने का पैमना तुम्हारी प्रार्थना की गहनता है। - स्परजन

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ती ३१, ३२
  • मत्ती ९:१८ - ३८