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सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

कठिन कार्य चुनना

सितंबर १२, १९६२ को अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ़. केनडी ने ह्युस्टन के राईस विश्वविद्यालय में एक भाषण दिया। वह देश के सामने मौजूद कठिन चुनौतियों के बारे में था। अमेरिका द्वारा चांद पर आदमी भेजेने के अपने संकल्प के विषय में भी वे बड़ी लगन से बोले।

लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने और अंतरिक्ष को कब्ज़े में करने की इच्छा को पूरी करने के बीच में संतुलन बनाने के संदर्भ में केनडी ने कहा, "हम इस द्शाब्दी में चन्द्रमा पर जाना चाहते हैं। हम इसे और अन्य कार्यों को इसलिये नहीं करना चाहते की वे आसान हैं, परन्तु इसलिये कि वे कठिन हैं।" राष्ट्रपति केनडी से राष्ट्र सहमत हुआ और उनका साथ दिया। सात साल बाद नील आर्मस्ट्रौंग ने जुलाई १९६९ में चंद्रमा पर चलकर मनुष्य जाति के लिये एक बड़ा कदम लिया।

आज का संसार जीवन को आसान बनाने के प्रयासों और उर्जा बचाने के उपकरणों से भरा है। परन्तु जीवन की कठिन चुनौतियों को स्वीकार करके उनका सामना करने में एक विशेष बात है। प्रेरित पौलूस ने मसीह की सेवा करना कठिन पाया, परन्तु उसने उसे निराशाजनक नहीं माना। क्लेश के बीच में वह निराश नहीं हुआ (२ कुरिन्थियों ४:८), पौलूस ने जाना, "जिसने प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर जिलायेगा और तुम्हारे साथ अपने सामने उपस्थित करेगा" (पद १४)। इस लक्ष्य को पाने के लिये कष्ट उठाना कोई बड़ी बात नहीं थी।

परमेश्वर की कृपा से हम यीशु की सेवा के लिये अपना जीवन अर्पित करें, सरलता में भी और कठिनाई में भी। - बिल क्राउडर


यीशु ने हमारा उद्धार करने को अपना सब कुछ दिया। क्या हम उसकी सेवा करने को अपना सब कुछ दे रहे हैं?


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ४:५-१८


हम चारों ओर क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। - २ कुरिन्थियों ४:८


एक साल में बाइबल:
  • गिनती ४-६
  • मरकुस ४:१-२०