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शुक्रवार, 5 मार्च 2010

हृदय में मूर्तियाँ

मेरे पति और मैं जब मिशनरी होकर निकले, तब हम अपने समाज में बढ़ते भौतिकवाद के बारे में चिंतित थे। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मैं खुद भी भौतिकवादी हो सकती हूँ। आखिरकर, क्या हम बड़े अभाव की स्थिति में रहकर एक दूसरे देश में सेवा करने के लिये नहीं निकले थे? क्या हमने एक छोटे से घर में, बिना किसी सहूलियत या सजावट की वस्तुओं के होते हुए, सेवा करने और जीवन बिताने से संकोच किया? ऐसे में भौतिकतावाद हमें कैसे छू भी सकता था?

तो भी धीरे धीरे मेरे मन में अपनी हालत पर असंतुष्टि जड़ पकड़ने लगी और उन वस्तुओं की लालसा मेरे अंदर पनपने लगी और उनके अभाव में मैं मन ही मन कुंठित होने लगी।

तब एक दिन परमेश्वर के आत्मा ने मेरी आँखें खोलीं और मुझे यह मूल बात समझाई कि भौतिकता वाद केवल एश्वर्य के साधन पाना ही नहीं, उनकी लालसा रखना भी है। अनजाने में ही, बिना समझे, मैं भी भौतिकतावादी होने की गलती करने लग गई थी। परमेश्वर ने मेरे मन में पनप रही असंतुष्टि को उसके वास्तविक रूप में मुझ पर प्रकट कर दिया - मेरे मन में बसी एक मूरत। उस दिन मैंने अपने इस हल्के से दिखने वाले लेकिन बहुत बड़े पाप से पश्चाताप किया, उस मूरत को हटाया और परमेश्वर ने फिर मेरे मन में सर्वोपरि आदर पाया। ऐसा करने के बाद मेरे मन में एक गहरी संतुष्टि आई, ऐसी संतुष्टि जो संसार की वस्तुओं की प्राप्ति पर आधारित नहीं होती, वरन परमेश्वर पर विश्वास रखने से आती है।

यहेजेकेल के ज़माने में परमेश्वर ने ऐसी छिपी मूर्तीपूजा के विरुद्ध कठोर व्यवहार किया। उसका सिंहासन हमेशा से उसके लोगों के हृदय में ही रहा है, इसलिये हमें मन से उन सब विचारों को हटाना है जो उसके साथ हमारी सहभागिता और उसमें मिलने वाले संतोष को नष्ट करते हैं। - Joanie Yoder


मूरत वह है जो परमेश्वर का स्थान छीन लेती है।


बाइबल पाठ: यहेजेकेल १४:१-८


हे मनुष्य की सन्तान, इन पुरुषों ने तो अपनी मूरतें अपने मन में स्थापित की हैं। - यहेजेकेल १४:३


एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३४-३६
  • मरकुस ९:३०-५०