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मंगलवार, 18 मई 2010

स्वर्गीय विकल्प

हाल ही में मैंने अपने एक मित्र को उसके जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और उससे पूछा कि एक साल और बुज़ुर्ग होना कैसा लगा? उसने विनोद के भाव में चुटकी लेते हुए कहा, "मुझे लगता है कि बुज़ुर्ग होना उसके विकल्प से बेहतर है।" उस समय हम एक साथ इस बात पर हंसे, लेकिन बाद में मैंने सोचा - क्या बुज़ुर्गी अपने विकल्प, अर्थात मृत्यु, से वाकई बेहतर है?

मुझे गलत मत समझिये। जितने भी दिन प्रभु मुझे जीवित रखना चाहता है, मैं जीना चाहता हूं और अपने बच्चों तथा नाती-पोतों को बढ़ते और जीवन के अनुभव लेते देखना चहता हूं। मृत्यु का अवश्यंभावी होना मुझे उत्साहित नहीं करता। लेकिन एक मसीही विश्वासी होने के नाते, मेरे लिये बुज़ुर्ग होने का विकल्प है स्वर्ग - और यह विकल्प ज़रा भी बुरा नहीं है!

२ कुरिन्थियों ५ में पौलुस जीवन कि वास्तविकता - दुख और दर्द के साथ इस शरीर के ’डेरे’ में जीने की बात करता है। किंतु हमें बुढ़ापे के कारण निराशा में रहने की आवश्यक्ता नहीं है; पौलूस तो ऐसी निराशा के विपरीत भावना रखने को प्रोत्साहित करता है। उसने लिखा, "इसलिये हम ढाढ़स बान्‍धे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं" (पद ८)। ढाढ़स बान्‍धे रहते हैं! और भी उत्तम समझते हैं! यह सब क्यों? क्योंकि हमारे लिये शारीरिक जीवन का एक ऐसा विकल्प है जो किसी और के पास नहीं है - अनन्त काल तक प्रभु के साथ चिरस्थायी जीवन। आने वाले स्वर्गीय जीवन का दृष्टिकोण बनाए रखने से हम वर्तमान के जीवन के लिये ढाढ़स पा सकते हैं।

यदि हम ने मसीह के साथ अपना संबंध ठीक जोड़ा है, तो मसीह की प्रतिज्ञाएं, एक भजनकार के शब्दों के अनुसार, हमें "आज के लिये सामर्थ और कल के लिये भव्य आशा" दे सकतीं हैं।

यह कितना उत्तम विकल्प है! - बिल क्राउडर


मत्यु लाभ है क्योंकि उसके बाद स्वर्ग, पवित्रता और प्रभु का साथ है।


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ५:१-११


इसलिये हम ढाढ़स बान्‍धे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं। - २ कुरिन्थियों ५:८


एक साल में बाइबल:
  • १ इतिहास ४-६
  • यूहन्ना ६:१-२१