ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

नियमों का प्रेम

लेखन कला सिखाते समय मैं अपने विद्यार्थियों को समझाता हूं कि छोटे और संक्षिप्त वाक्यों का प्रयोग ज़्यादा अच्छा होता है जैसे "कला और लेखन" अथवा "जीवन, स्वतन्त्रता और आनन्द की खोज" आदि। अपनी जीविका के इस कार्य के आरंभिक दिनों में, उन के लेखों की समीक्षा करते समय मुझे लेखकों को समझाना और मनना पड़ता था कि बस ऐसा करना अच्छा होता है; कुछ समय बाद मुझे इस बारे में एक "नियम" मिल गया। मैंने पाया कि मेरा कहना कि "इस बारे में बस मेरा विश्वास करो" की अपेक्षा, अब इस "नियम" के आधार पर मेरा उन लेखकों के लेखों की समीक्षा एवं सम्पादन करना उनको सहजता से ग्रहण योग्य होता था।

यह मानव स्वभाव का एक भाग है। नियमों के साथ हमारा एक प्रेम/बैर का संबंध है। हमें नियम पसन्द नहीं लेकिन नियमों के बिना हम सही-गलत की पहचान करने और मानने के लिये भी असमंजस में रहते हैं।

परमेश्वर का, हमारे आदी पूर्वज, आदम और हव्वा से संबंध प्रेम पूर्ण विश्वास पर आधारित था। उन्हें केवल एक ही नियम दिया गया था जो उन्हें ऐसे ज्ञान से बचाने के लिये था जिसका अन्त मृत्यु था। लेकिन जब अनाज्ञाकारिता के कारण विश्वास का यह संबंध टूट गया तो उस भटके हुए दम्पति और उनकी आने वाली सन्तान की सुरक्षा के लिये, परमेश्वर ने और कई नियम दिये।

प्रभु यीशु मसीह में एक बार फिर परमेश्वर ने प्रगट किया कि जो उत्तम जीवन वह हमारे लिये चाहता है वह नियमों पर नहीं वरन उसके साथ बने संबंध पर आधारित है। जैसा पौलुस ने लिखा, परमेश्वर के सारे नियमों का सार एक शब्द - प्रेम, में निहित है। क्योंकि हम मसीह - जो प्रेम का प्रतिरूप है, "में हैं" इसलिये हम परमेश्वर और मनुष्य, दोनों के साथ शांति और मेल मिलाप का आनन्द ले सकते हैं - किसी नियम के कारण नहीं, परन्तु प्रेम में होने के कारण। - जूली एकरमैन लिंक


संसार की सबसे शक्तिशाली सामर्थ किसी नियम की मजबूरी नहीं वरन प्रेम की अनुकम्पा है।

प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिये प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है। - रोमियों १३:१०

बाइबल पाठ: रोमियों १३:१-१०
हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे, क्‍योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।
इस से जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करने वाले दण्‍ड पाएंगे।
क्‍योंकि हाकिम अच्‍छे काम के नहीं, परन्‍तु बुरे काम के लिये डर का कारण हैं, सो यदि तू हाकिम से निडर रहना चाहता है, तो अच्‍छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी।
क्‍योंकि वह तेरी भलाई के लिये परमेश्वर का सेवक है। परन्‍तु यदि तू बुराई करे, तो डर, क्‍योकि वह तलवार व्यर्थ लिये हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करने वाले को दण्‍ड दे।
इसलिये आधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्‍तु डर से अवश्य है, वरन विवेक भी यही गवाही देता है।
इसलिये कर भी दो, क्‍योंकि वे परमेश्वर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं।
इसलिये हर एक का हक चुकाया करो, जिस कर चाहिए, उसे कर दो, जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो, जिस से डरना चाहिए, उस से डरो, जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।।
आपस के प्रेम को छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो, क्‍योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है।
क्‍योंकि यह कि व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, लालच न करना, और इन को छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिये प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ८७, ८८
  • रोमियों १३