ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

मृत्यु के काबिल

१९४० के दशक में कठोर नाट्ज़ी प्रशासन के नियंत्रण द्वारा अपने देश का पतन होते हुए देख सोफी शौल नामक एक जर्मन युवती ठान लिया कि वह देश की दशा सुधारने के लिये कुछ करेगी। वह और उसके भाई और उनके कुछ मित्रों ने मिलकर शांतिपूर्ण ढंग से नाट्ज़ी प्रशासन के सिद्धांतों और योजनाओं का जो वे देश पर थोप रहे थे, विरोध करना आरंभ किया।

सोफी और उसके साथ के लोग बन्दी बना लिये गए और अपने देश में हो रही बुराई के विरुद्ध आवाज़ उठाने के अपराध में उन्हें मृत्यु दण्ड दिया गया। यद्यपि सोफी मरने के लिये उत्सुक्त नहीं थी फिर भी देश की स्थिति को देखते हुए उसने ठान लिया कि कुछ तो करना है, चाहे इसके लिये मरना ही क्यों न पड़े।

सोफी की कहानी हमारे लिये एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है - क्या हमारे लिये कुछ ऐसा महत्वपूर्ण है जिसके लिये हम मरने को भी तैयार हों?

जिम इलियट, नेट सैंट, पीट फ्लेमिंग, रौजर युडेरिअन, एड मैक्कुल्ली - पांच जवान व्यक्ति, जिन्होंने अपने घरों, परिवारों और प्रीय जनों को छोड़ दक्षिण अमेरिका के जंगलों में सुसमाचार पहुंचाने की ठान ली, उसके लिये जान का जोखिम उठाया और अपने निर्ण्य को निभाते हुए सुसमाचार के लिये बलिदान हो गए। इलियट के एक लेख से ऐसे बलिदान होने का ठान लेने वालों के मन का अन्दाज़ा होता है; उसने लिखा "जो व्यक्ति, उस चीज़ को जिसे वह कभी अपने पास रख नहीं सकता, दे कर बदले में ऐसी चीज़ कमा लेता है जिसे वह कभी खो नहीं सकता, वह कदापि मूर्ख नहीं है।"

पौलुस प्रेरित ने इस भाव को दूसरे शब्दों में बयान किया - "क्‍योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।" (फिलिप्पियों १:२१)

कुछ बातें हैं जो वास्तव में ज़िन्दगी की कीमत पर भी करने के योग्य हैं, इस जीवन में भी और मरणोपरांत भी, और परमेश्वर की ओर से उनका प्रतिफल अति महान है - "पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।" ( २ तिमुथियुस ४:५, ८) - बिल क्राउडर


जो इस जीवन में विश्वासयोग्यता के साथ अपना क्रूस उठाकर चलते हैं, वे आते जीवन में प्रभु से जीवन का मुकुट पहनेंगे।

क्‍योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है। - फिलिप्पियों १:२१


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों १:१९-२६

क्‍योंकि मैं जानता हूं, कि तुम्हारी बिनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा के दान के द्वारा इस का प्रतिफल मेरा उद्धार होगा।
मैं तो यही हादिर्क लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो, चाहे मैं जीवित रहूं अथवा मर जाऊं।
क्‍योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।
पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता, कि किस को चुनूं।
क्‍योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं, क्‍योंकि यह बहुत ही अच्‍छा है।
परन्‍तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है।
और इसलिये कि मुझे इस का भरोसा है सो मैं जानता हूं कि मैं जीवित रहूंगा, वरन तुम सब के साथ रहूंगा जिस से तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उस में आनन्‍दित रहो।
और जो घमण्‍ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए।

एक साल में बाइबल:
  • यशायाह २३-२५
  • फिलिप्पियों १