ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 31 मार्च 2011

परमेश्वर से बातें

अमेरिकी राष्ट्रपति रौनलड रीएगन के साथ एक घटना घटी - वे एक बुज़ुर्ग अमेरिकी नागरिक से फोन पर बात करना चाह रहे थे। उन्होंने उसे टेलिफोन किया लेकिन उस व्यक्ति को विश्वास ही नहीं हुआ कि फोन पर दूसरी तरफ स्वयं राष्ट्रपति हैं और राष्ट्रपति उससे बात करना चाह रहे हैं, इसलिए उसने फोन काट दिया। राष्ट्रपति फोन मिलाते रहे और वह फोन काटता रहा; ऐसा उसने आधा दर्जन बार किया। आखिरकार टेलिफोन ऑपरेटर ने और उसके पड़ौसी ने उसे समझाया और विश्वास दिलाया कि वास्तव में राष्ट्रपति ही उससे बात करना चाह रहे हैं, फिर उसने १५ मिनिट तक राष्ट्रपति से टेलिफोन पर बातें करीं।

सदियों पहले शमूएल को भी आश्चर्य में डालने वाला बुलावा आया। उसे पता नहीं चला कि कौन उसे बुला रहा है, बुलाने वाला किसी भी राष्ट्रपति से कहीं बढ़कर था। जब शमूएल ने जाना कि स्वयं परमेश्वर उससे बातें कर रहा है, तो उसने ध्यान देकर परमेश्वर की बातें सुनीं।

हम मसीहीयों की प्रतिक्रिया भी कभी कभी कुछ ऐसी ही होती है जब परमेश्वर हमसे बातें करता है। कभी कभी हमें अपने मन की गहराईयों में किसी बात के लिए ऐसा दृढ़ विश्वास होता है जिसे हम समझ नहीं पाते। पहले पहल हम उसे परमेश्वर की आवाज़ की तरह नहीं पहचानते, फिर जब हमें विश्वास हो जाता है कि हाँ परमेश्वर ही है, तो हमें अचम्भा होता कि वह हम से बातें करना चाहता है।

हम भूल जाते हैं कि परमेश्वर अपने प्रत्येक विश्वासी से एक व्यक्तिगत संबंध रखना चाहता है, वह चाहता है कि हम भी उसे व्यक्तिगत रीति से जानें। वह हम से अपने लिखित वचन बाइबल द्वारा बातें करता है, अपने जीवित वचन प्रभु यीशु मसीह द्वारा बातें करता है, और हमारे अन्दर अपने पवित्र आत्मा के रूप में निवास करता है, जो हमें उसका वचन सुनने और समझने की सामर्थ देता है।

परमेश्वर सदा हम से बातें करने के प्रयास में लगा रहता है, इसलिए हमें भी उसकी बात सुनने और मानने के लिए तैयार रहना चाहिए। - मार्ट डी हॉन


दो तरह के मसीही होते हैं, पहले वे जो परमेश्वर की प्रतीक्षा में रहते हैं और दूसरे वे जो परमेश्वर को प्रतीक्षा करवाते रहते हैं।

सो जैसा पवित्र आत्मा कहता है, कि यदि आज तुम उसका शब्‍द सुनो तो अपने मन को कठोर न करो... - इब्रानियों ३:७, ८


बाइबल पाठ: इब्रानियों ३:७-१४

Heb 3:7 सो जैसा पवित्र आत्मा कहता है, कि यदि आज तुम उसका शब्‍द सुनो।
Heb 3:8 तो अपने मन को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और परीक्षा के दिन जंगल में किया था।
Heb 3:9 जहां तुम्हारे बाप दादों ने मुझे जांचकर परखा और चालीस वर्ष तक मेरे काम देखे।
Heb 3:10 इस कारण मैं उस समय के लोगों से रूठा रहा, और कहा, कि इन के मन सदा भटकते रहते हैं, और इन्‍होंने मेरे मार्गों को नहीं पहिचाना।
Heb 3:11 तब मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई, कि वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएंगे।
Heb 3:12 हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए।
Heb 3:13 वरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए।
Heb 3:14 क्‍योंकि हम मसीह के भागी हुए हैं, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्‍त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।

एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ११-१२
  • लूका ६:१-२६

बुधवार, 30 मार्च 2011

परमेश्वर की आवाज़ सुनिए

कई वर्ष पहले, मैं हर सुबह अपनी खिड़की के बाहर एक पक्षी की मधुर चहचहाट की आवाज़ से उठता था। आरंभ में उसके चहकने के संगीत से मैं रोमांचित हो उठता था, लेकिन कुछ समय में मेरे कान उसके गीतों के आदि हो गए, और अन्ततः मुझे उसकी आवाज़ सुननी बन्द हो गई। मैं उस पक्षी के मधुर गान को साधारण सी बात समझने लगा; पक्षी तो अब भी मेरी खिड़की के बाहर रोज़ सुबह गाता है, लेकिन मुझे अब उसका संगीत सुनाई नहीं देता।

कुछ ऐसा ही हमारे साथ बाइबल में होकर परमेश्वर की आवाज़ सुनने के विषय में होता है। जब हम उद्धार पाए ही होते हैं तो हम नियम से बाइबल पढ़ते हैं और ध्यान से उसकी शिक्षाओं से सीखते हैं। परमेश्वर की योजनाओं को बाइबल के पन्नों में खुलता देख हम रोमांचित भी होते हैं। लेकिन समय के साथ बाइबल पढ़ना हमारे लिए औपचारिक्ता बनने लग जाती है और हम उसके सन्देश की ओर पूरा ध्यान देना छोड़ देते हैं। नतीजा यह होता है कि हमें परमेश्वर की आवाज़ सुननी बन्द हो जाती है।

यह दुखदायी स्थिति इतने धीरे धीरे पनपती है कि इसके कमज़ोर कर देने वाले प्रभावों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाने पाता। फिर अचानक एक दिन कुछ ऐसा होता है जिससे हमें अपनी कमज़ोरी का एहसास होता है और हम तब जान पाते हैं कि हम क्या खो बैठे हैं। कितना भला हो कि हम शमूएल की तरह परमेश्वर की ओर अपने ध्यान को लगाए रखें और कह सकें, "... कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है।" (१ शमूएल ३:१०)

प्रतिदिन अपना कुछ समय नियमित रूप से परमेश्वर के वचन को पढ़ने के लिए निर्धारित करें, पढ़ते समय उसकी शिक्षाओं की ओर पूरा ध्यान दें और सभी ध्यन भटकाने वाली बातों को दूर कर दें; तभी हम परमेश्वर की आवाज़ के प्रति जागरूक रह सकेंगे और परमेश्वर की आवाज़ हमारे लिए अर्थहीन नहीं होने पाएगी। - रिचर्ड डी हॉन


जितना अधिक हम पवित्रशास्त्र को पढ़ेंगे, परमेश्वर प्रभु को उतना ही अधिक जान पाएंगे।

... कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है। - १ शमूएल ३:१०

बाइबल पाठ: १ शमूएल ३:१-१०

1Sa 3:1 और वह बालक शमूएल एली के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करता था। और उन दिनों में यहोवा का वचन दुर्लभ था और दर्शन कम मिलता था।
1Sa 3:2 और उस समय ऐसा हुआ कि (एली की आंखे तो धुंघली होने लगी थीं और उसे न सूझ पड़ता था) जब वह अपने स्थान में लेटा हुआ था,
1Sa 3:3 और परमेश्वर का दीपक अब तक बुझा नहीं था, और शमूएल यहेवा के मन्दिर में जंहा परमेश्वर का सन्दूक था लेटा था;
1Sa 3:4 तब यहोवा ने शमूएल को पुकारा और उस ने कहा, क्या आज्ञा!
1Sa 3:5 तब उस ने एली के पास दौड़कर कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। वह बोला, मैं ने नहीं पुकारा, फिर जा लेट रह। तो वह जाकर लेट गया।
1Sa 3:6 तब यहोवा ने फिर पुकार के कहा, हे शमूएल! शमूएल उठकर एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। उस ने कहा, हे मेरे बेटे, मैं ने नहीं पुकारा, फिर जा लेट रह।
1Sa 3:7 उस समय तक तो शमूएल यहोवा को नहीं पहचानता था, और न तो यहोवा का वचन ही उस पर प्रगट हुआ था।
1Sa 3:8 फिर तीसरी बार यहोवा ने शमूएल को पुकारा। और वह उठ के एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। तब एली ने समझ लिया कि इस बालक को यहोवा ने पुकारा है।
1Sa 3:9 इसलिये एली ने शमूएल से कहा, जा लेट रहे; और यदि वह तुझे फिर पुकारे, तो तू कहना, कि हे यहोवा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है तब शमूएल अपने स्थान पर जा कर लेट गया।
1Sa 3:10 तब यहोवा आ खड़ा हुआ, और पहिले की नाईं पुकारा, शमूएल! शमूएल! शमूएल ने कहा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है।

एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ९-१०
  • लूका ५:१७-३९

मंगलवार, 29 मार्च 2011

प्रयास नहीं, केवल विश्वास द्वारा

सुसमाचार प्रचारक जॉर्ज नीडहैम एक प्रसिद्ध और अमीर व्यक्ति से मिलने गए। उस व्यस्त व्यक्ति से नीडहैम ने केवल एक प्रश्न किया, "क्या आपका उद्धार हो गया है?" अमीर व्यक्ति ने उत्तर दिया, "नहीं, परन्तु मैं मसीही बनने का प्रयत्न कर रहा हूँ।" नीडहैम ने पूछा, "कितने समय से आप यह प्रयास कर रहे हैं?" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "१२ वर्ष से।" सुसमाचार प्रचारक नीडहैम बोले, "मुझे यह कहने की अनुमति दें कि आप बहुत बेवकूफ रहे हैं। इतने वर्ष प्रयास कर के भी आप सफल नहीं हो सके; यदि मैं आपके स्थान पर होता तो मैं प्रयास नहीं विश्वास करता।"

उस शाम को नीडहैम को अचंभा हुआ कि वह व्यक्ति उस चर्च में आया जहाँ नीडहैम प्रचार कर रहा था। उसके चेहरे पर ऐसा शान्ति और आनन्द झलक रहा था जो नीडहैम ने उससे दिन के समय की मुलाकात में नहीं देखा था। सभा के बाद उस व्यक्ति ने नीडहैम से कहा, "मैं वाकई में मूर्ख था, और अपने जीवन के १२ बहुमूल्य वर्ष व्यर्थ प्रयास में गवाँ दिये, जबकि उद्धार मुझे साधारण विश्वास से मिल सकता था।"

बाइबल हमें उद्धार पाने के लिए कुछ काम करने, या प्रयास करने के लिए नहीं कहती। प्रेरित पौलुस ने कहा, "परन्‍तु जो काम नहीं करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना जाता है।" (रोमियों ४:५)

अनन्त जीवन पाने का केवल एक ही मार्ग है, प्रयास करना छोड़कर मसीह यीशु पर विश्वास करना आरंभ कर दीजिए। - पौल वैन गोर्डर


उद्धार प्रयास से नहीं, विश्वास से है; उसके लिए कुछ करना नहीं, किए हुए पर विश्वास करना है।

...जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले। - प्रकाशितवाक्य २२:१७

बाइबल पाठ: रोमियों ४:१-८

Rom 4:1 सो हम क्‍या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता इब्राहीम को क्‍या प्राप्‍त हुआ?
Rom 4:2 क्‍योंकि यदि इब्राहीम कामों से धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्‍ड करने की जगह होती, परन्‍तु परमेश्वर के निकट नहीं।
Rom 4:3 पवित्र शास्‍त्र क्‍या कहता है? यह कि इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया।
Rom 4:4 काम करने वाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्‍तु हक समझा जाता है।
Rom 4:5 परन्‍तु जो काम नहीं करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना जाता है।
Rom 4:6 जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाउद भी धन्य कहता है।
Rom 4:7 कि धन्य वे हैं, जिन के अधर्म क्षमा हुए, और जिन के पाप ढ़ांपे गए।
Rom 4:8 धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।

एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ७-८
  • लूका ५:१-१६

सोमवार, 28 मार्च 2011

अनुग्रह द्वारा उद्धार

बड़े अक्षरों में लिखे हुए एक शीर्षक ने मेरा ध्यान खींचा: "नए मत में परिवर्तन बहुत पीड़ादायक है।" उस लेख में एक जर्मनी के व्यवसायी का अनुभव लिखा था जिसे एक नए धर्म में अपने परिवर्तन के कार्य को पूरा करने के लिए बहुत पीड़ा दायक रीतियां पूरी करनी पड़ीं थीं। उन पीड़ा दायक रीतियों का उद्देश्य था कि वह अपने नए धर्म और विश्वास के प्रति अपनी वचनबद्धता और समर्पण प्रमाणित कर सके।

तुलना में, प्रभु यीशु द्वारा दिया जाने वाला उद्धार इससे कितना भिन्न तथा सहज है। उद्धार, अनुग्रह द्वारा, केवल साधरण विश्वास से, बिना किसी मानवीय कर्मों के - मसीही विश्वास को अन्य सभी धर्मों से बिलकुल अलग करता है। प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास द्वारा किसी मनुष्य का परिवर्तन अनुभव किसी कष्टदायक रीति को पूरा करने से लागू अथवा संपूर्ण नहीं होता। यह हो सकता है कि मसीह में लाए गए विश्वास के कारण हमें संसार से दुख उठाना पड़े तथा अपने विश्वास को संसार के समक्ष हम अपने भले कार्यों से प्रदर्शित करें, किंतु न तो दुख उठाना और न ही भले कार्य हमें उद्धार देते हैं या उद्धार के योग्य बनाते हैं। पौलूस ने लिखा, "क्‍योंकि हम उसके बनाए हुए हैं, और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्‍हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।" (इफिसियों २:१०)

मसीह में हमारा उद्धार इस बात से नहीं होता कि हम कितना कष्ट सह सकते हैं, वरन उससे होता है जो मसीह हमारे लिए पहले ही क्रूस पर सह चुका है। प्रभु यीशु का मार्ग कष्टों द्वारा परिवर्तन का मार्ग नहीं है, वह परमेश्वर का वरदान है, तथा परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह ही से है। - रिचर्ड डी हॉन


हम अपने कर्मों की श्रेष्ठता द्वारा नहीं, परमेश्वर के अनुग्रह से उद्धार पाते हैं; यह हमारे कर्मों का नहीं मसीह के मारे जाने और जी उठने का नतीजा है।

तो उस ने हमारा उद्धार किया: और यह धर्म के कामों के कारण नहीं, जो हम ने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार, नए जन्म के स्‍नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ। - तीतुस ३:५



बाइबल पाठ: इफिसियों २:१-१०

Eph 2:1 और उस ने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।
Eph 2:2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है।
Eph 2:3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्‍वभाव ही से क्रोध की सन्‍तान थे।
Eph 2:4 परन्‍तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया।
Eph 2:5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।)
Eph 2:6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्‍वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया।
Eph 2:7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।
Eph 2:8 क्‍योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।
Eph 2:9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्‍ड करे।
Eph 2:10 क्‍योंकि हम उसके बनाए हुए हैं, और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्‍हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।

एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ४-६
  • लूका ४:३१-४४

रविवार, 27 मार्च 2011

अतीत बदला गया

प्रभु यीशु के जन्म से लगभग ४०० वर्ष पूर्व, युनानी कवि अगाथन ने कहा था, "परमेश्वर भी अतीत को बदल नहीं सकता।" एतिहासिक दृष्टिकोण से यह बात सही है, जो बीत चुका है उसे बदला नहीं जा सकता। लेकिन जब परमेश्वर ने अपने पुत्र को क्रुस पर मरने भेजा, तो उसने हमारे पापमय अतीत को मिटा देने का मार्ग तैयार कर दिया।

जो प्रभु यीशु ने हमारे लिए किया, डौनलड बार्नहाउस उसका वर्णन इन शब्दों में करते हैं: "जैसे, यदि समुद्रतल में कोई छेद या दरार समुद्र के पानी को धरती की गहराईयों में धधकती हुई ज्वालओं तक जाने दे, तो उसके कारण होने वाले विस्फोट से यह धरती फट जाएगी; वैसे ही प्रभु यीशु मसीह के मारे जाने और जी उठने के द्वारा अतीत की पर्तें फट गईं और अनन्त काल अतीत में बह निकला, अतीत की सब बातों को उथल-पुथल और टुकड़े टुकड़े कर दिया। यीशु ने प्रत्येक विश्वास करने वाले के अतीत को लिया, अपने लहू से उसे धो कर साफ किया और उसके जीवन को ऐसा बदल डाला कि अब वह समय की सीमाओं मे बन्धा नहीं रहा वरन अनन्त जीवन उसमें आ गया।"

कवि ने कहा, "काश कोई ऐसा स्थान होता जहाँ पुनः आरंभ संभव हो पाता।" ऐसा स्थान है - प्रभु यीशु में, क्योंकि "...यीशु मसीह का लोहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है" (१ यूहन्ना १:७) और "सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्‍टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं।" (२ कुरिन्थियों ५:१७)

यही सुसमाचार का चमत्कार है। जिन्हों ने मसीह यीशु के पाप क्षमा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है, उनके लिए उसने "विधियों का वह लेख जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में या मिटा डाला, और उस को क्रूस पर कीलों से जड़ कर सामने से हटा दिया है। " (कुलुस्सियों २:१४)

परमेश्वर ने हमारे पापमय अतीत को पूर्णतः साफ कर दिया है। - पौल वैन गोर्डर


प्रभु का उद्धार घोर पापी को भी उत्तम संत बना देता है।

जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं। - २ कुरिन्थियों ५:२१


बाइबल पाठ:

Col 2:1 मैं चाहता हूं कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उन के जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिये जिन्‍होंने मेरा शारीरिक मुंह नहीं देखा मैं कैसा परिश्रम करता हूं।
Col 2:2 ताकि उन के मनों में शान्‍ति हो और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्‍त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात मसीह को पहिचान लें।
Col 2:3 जिस में बुद्धि और ज्ञान के सारे भण्‍डार छिपे हुए हैं।
Col 2:4 यह मैं इसलिये कहता हूं, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभाने वाली बातों से धोखा न दे।
Col 2:5 क्‍योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूं, तौभी आत्मिक भाव से तुम्हारे निकट हूं, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूं।
Col 2:6 सो जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो।
Col 2:7 और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ, और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्‍त धन्यवाद करते रहो।
Col 2:8 चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्‍व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न करे ले, जो मनुष्यों के परम्पराई मत और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।
Col 2:9 क्‍योंकि उस में ईश्वरत्‍व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।
Col 2:10 और तुम उसी में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिकार का शिरोमणि है।
Col 2:11 उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता, अर्थात मसीह का खतना, जिस से शारीरिक देह उतार दी जाती है।
Col 2:12 और उसी के साथ बपतिस्मे में गाड़े गए, और उसी में परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिस ने उस को मरे हुओं में से जिलाया, उसके साथ जी भी उठे।
Col 2:13 और उस ने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारिहत दशा में मुर्दा थे, उसे साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया।
Col 2:14 और विधियों का वह लेख जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में या मिटा डाला, और उस को क्रूस पर कीलों से जड़ कर सामने से हटा दिया है।

एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों १-३
  • लूका ४:१-३०

शनिवार, 26 मार्च 2011

जीवन जल

एक छोटे शहर में हो रही सुसमाचार सभा में एक व्यक्ति को अपनी पापमय दशा और प्रभु यीशु को ग्रहण करने की आवश्यक्ता बड़े सशक्त रूप से महसूस हुई, लेकिन उसने अपनी भावनाएं छुपा लीं और अपनी पत्नि तक को नहीं बताया, यद्यपि वह मसीही विश्वासी थी। एक शाम को जब उसकी पत्नि कहीं बाहर गई हुई थी वह अपने पाप बोध को लेकर बहुत बेचैन हुआ और घर के अन्दर इधर से उधर चक्कर काटने लगा। उसकी बेटी ने अपने पिता की बेचैनी देखी तो पूछा कि "क्या हुआ?" पिता ने बात टालने के लिए कहा "कुछ नहीं" और पाप बोध की अपनी बेचैनी छिपाने की कोशिश करने लगा। उस बच्ची ने बड़े सहज भाव से पूछा, "पिताजी, यदि आप प्यासे हैं तो जाकर पानी क्यों नहीं पी लेते?" उसके इन शब्दों ने पिता को चौंका दिया, उसे उस सुसमाचार सभा में कही गई बात याद आ गई कि उद्धार का सुसमाचार मुक्त बहते हुए जल के सोते की तरह है जिससे प्रत्येक प्यासा अपनी प्यास बिना किसी रोक टोक के बुझा सकता है। उसने और संघर्ष नहीं किया, उसी रात उसने अपने पापों की क्षमा माँगकर प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता करके ग्रहण कर लिया।

इस संसार के सोते तो केवल प्यास बढ़ाते ही हैं, मनुष्य की आत्मिक प्यास केवल प्रभु यीशु ही बुझा सकता है। प्रभु यीशु ने बड़े सीधे और स्पष्ट शब्दों में सुसमाचार प्रस्तुत किया; उन्होंने हमारे प्रतिदिन के जीवन से जुड़ी बातों, जैसे भोजन, जल, स्वीकृति आदि द्वारा उद्धार के सुसमाचार को समझाया। यीशु ने कहा "परन्‍तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्‍तकाल तक प्यासा न होगा: वरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्‍त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।" (यूहन्ना ४:१४) - पौल वैन गोर्डर


सांसारिक उपलब्धियों के कुओं से जितना चाहे पी लो, प्यास बढ़ती ही है, कभी तृप्ति नहीं मिलती।

...यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए। - यूहन्ना ७:३७

बाइबल पाठ: यूहन्ना ४:५-१५

Joh 4:5 सो वह सूखार नाम सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है, जिस याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था।
Joh 4:6 और याकूब का कूआं भी वहीं था; सो यीशु मार्ग का थका हुआ उस कूएं पर यों ही बैठ गया, और यह बात छठे घण्‍टे के लगभग हुई।
Joh 4:7 इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई: यीशु ने उस से कहा, मुझे पानी पिला।
Joh 4:8 क्‍योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे।
Joh 4:9 उस सामरी स्त्री ने उस से कहा, तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्‍यों मांगता है? (क्‍योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते)।
Joh 4:10 यीशु ने उत्तर दिया, यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है मुझे पानी पिला तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता।
Joh 4:11 स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कूआं गहिरा है: तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहां से आया?
Joh 4:12 क्‍या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कूआं दिया, और आप ही अपने सन्‍तान, और अपने ढारों समेत उस में से पीया?
Joh 4:13 यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर पियासा होगा।
Joh 4:14 परन्‍तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्‍त काल तक पियासा न होगा: वरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्‍त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।
Joh 4:15 स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊं और न जल भरने को इतनी दूर आऊं।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू २२-२४
  • लूका ३

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

"उसे" जानना

एक पत्रिका "Youth's Living Ideals" में एक बुज़ुर्ग महिला की कहानी छपी। उस मसीह की विश्वासी महिला को बाइबल के बहुत से भाग कण्ठस्त थे, लेकिन जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गई, उसकी यादाश्त भी क्षीण होती गई, और फिर उसे केवल एक ही पद याद रहा - "...क्‍योंकि मैं उसे जिस की मैं ने प्रतीति की है, जानता हूं; और मुझे निश्‍चय है, कि वह मेरी थाती की उस दिन तक रखवाली कर सकता है।" (२ तिमुथियुस १:१२); और वह इसी पद को दोहरती रहती थी। और कुछ समय के बाद इस पद का भी केवल एक भाग ही उसे स्मरण रह सका "वह मेरी थाती की उस दिन तक रखवाली कर सकता है" और वह इसी खंड को बोलती रहती थी। जब उसकी मत्यु का समय आया तो रिशतेदारों ने देखा कि उसके होंठ हिल रहे हैं, उन्होंने झुक कर सुनना चाहा कि वह कुछ माँग तो नहीं रही, लेकिन उसके मुँह से धीमी आवाज़ में अब एक ही शब्द निकल रहा था "वह, वह, वह..."। वह महिला सिवाय एक शब्द के सारी बाइबल को भूल चुकी थी, लेकिन उस एक शब्द में सारी बाइबल उसके पास थी।

मृत्यु की घड़ी तक परमेश्वर की उस संत ने उसे कभी नहीं खोया जिससे वह प्रेम करती थी। उसका उद्धार प्रभु यीशु मसीह के साथ एक जीवित संबंध पर आधारित था, और प्रभु मृत्यु के क्षण तक भी उसके हृदय को संतोष दे रहा था। उद्धार पाने का एकमात्र तरीका है उद्धारकर्ता को जानना।

हम अपने किन्हीं कर्मों द्वारा उद्धार नहीं पाते, यह केवल प्रभु यीशु मसीह में विश्वास द्वारा संभव है। अपने सिद्ध जीवन और कलवरी के क्रूस पर दिये बलिदान द्वारा ही उसने उद्धार का मार्ग सबके लिए तैयार किया है। - रिचर्ड डी हॉन


पवित्र शास्त्र को दिमागी तौर से जानना एक बात है लेकिन उद्धारकर्ता को व्यक्तिगत रीति से जानना कुछ और ही बात है।

और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूं, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्‍त करूं। - फिलिप्पियों ३:१०


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों ३:७-१४

Php 3:7 परन्‍तु जो जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्‍हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है।
Php 3:8 वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्‍तुओं की हानि उठाई, और उन्‍हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्‍त करूं।
Php 3:9 और उस में पाया जाऊं; न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है।
Php 3:10 और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानू, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्‍त करूं।
Php 3:11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं।
Php 3:12 यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था।
Php 3:13 हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्‍तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ।
Php 3:14 निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू १९-२१
  • लूका २:२५-५२

गुरुवार, 24 मार्च 2011

स्वीकार तो आप ही को करना है

अमेरिका में ऐंड्रू जैक्सन के राष्ट्रपति काल में, अदालत ने एक आदमी को मृत्यु दण्ड की आज्ञा दी। जैक्सन ने उस कैदी को क्षमा दान देना चाहा, परन्तु उस कैदी ने क्षमा दान लेने से इन्कार कर दिया। जेल के अधिकारियों, वकीलों और कई लोगों ने बहुत प्रयास किया कि उस कैदी को मना सकें कि वह क्षमा दान स्वीकार कर ले, उसे यह भी समझाया गया कि क्षमा दान अस्वीकार करना राष्ट्रपति का अपमान होगा, लेकिन वह नहीं माना। अन्ततः सर्वोच न्यायालय को फैसला देने के लिए कहा गया। न्यायालय ने फैसला दिया कि क्षमा दान तब तक लागू नहीं माना जा सकता जब तक वह स्वीकार न किया जाए।

यही बात परमेश्वर के उद्धार के दान पर भी लागू होती है। यद्यपि प्रभु यीशु ने समस्त संसार के सभी लोगों के लिए छुटकारे का मार्ग दिया है, लेकिन केवल वो ही जो उसके इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं, इसका लाभ उठा पाते हैं।

जब तक हम व्यक्तिगत रीति से यीशु को उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार नहीं करते, हम पाप के लिए परमेश्वर के दण्ड से बच नहीं सकते, "जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्‍तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहरा चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।" (यूहन्ना ३:१८)

उद्धार का मार्ग सबके लिए खुला है, लेकिन उसका लाभ उठाने और उसका अनुभव करने के लिए पहले उसे स्वीकार करना होगा - और यह आप ही को करना है! - रिचर्ड डी हॉन


उद्धार सेंतमेंत है, किंतु उसे स्वीकार तो करना होगा।

परन्‍तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्‍हें परमेश्वर के सन्‍तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्‍हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। - यूहन्ना १:१२



बाइबल पाठ: यूहन्ना ३:१४-२१

Joh 3:14 और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए।
Joh 3:15 ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्‍त जीवन पाए।
Joh 3:16 क्‍योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्‍तु अनन्‍त जीवन पाए।
Joh 3:17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्‍तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
Joh 3:18 जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्‍तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहरा चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।
Joh 3:19 और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्‍धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्‍योंकि उन के काम बुरे थे।
Joh 3:20 क्‍योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।
Joh 3:21 परन्‍तु जो सच्‍चाई पर चलता है वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू १६-१८
  • लूका २:१-२४

बुधवार, 23 मार्च 2011

मुफ्त परन्तु सस्ता नहीं

सुसमाचार के बताए और समझाए जाने के बाद अक्सर लोग प्रतिक्रीया करते हैं,"यानि कि आप कह रहे हैं कि मैं उद्धार पाने के योग्य होने के लिए कोई कार्य नहीं कर सकता? यह तो बहुत आसान और सस्ता होगा।" लोगों को विश्वास करना कठिन होता है कि परमेश्वर अयोग्य पापियों को भी अपना अनुग्रह सेंतमेंत दान में दे देता है।

बाइबल शिक्षक जे. कैम्प्बल मौर्गन ने एक कोयले की खान में काम करने वाले मज़दूर का किस्सा बताया, जो उनके पास इसी संदर्भ में आया था। उस खान के मज़दूर ने मौर्गन से कहा, "इस बात के लिए कि परमेश्वर मेरे पाप क्षमा कर दे, मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ, पर मैं यह हरगिज़ नहीं मान सकता कि वह उन्हें सिर्फ इसलिए क्षमा कर देगा क्योंकि मैंने उससे ऐसा करने का आग्रह किया है। यह मान लेना तो बहुत हल्का और सस्ता है।" मौर्गन ने उससे पूछा, "मित्र, क्या आप आज काम पर गए थे?" उसने उत्तर दिया, "जी हाँ, मैं आज खान के अन्दर गया था।" मौर्गन ने फिर पूछा, "तो उस खान की गहराई से आप बाहर कैसे निकले? क्या बाहर निकलने के लिए आप को कोई कीमत चुकानी पड़ी?" मज़दूर ने कहा, "कदापि नहीं; मैं केवल ऊपर आने वाली लिफ्ट में चढ़ा और मुझे ऊपर खींच लिया गया, और मैं बाहर आ गया।" मौर्गन ने पूछा, "क्या यह बहुत सस्ता नहीं था?" मज़दूर ने उत्तर दिया, "जी नहीं, बिल्कुल भी नहीं; मेरे लिए सस्ता हो सकता है लेकिन खान के मालिकों के लिए यह सुविधा प्रदान करना काफी खर्चीला होता है।" यह कहते कहते उद्धार से संबंधित सच्चाई का उसे एहसास हो गया। वह उद्धार, जो उसके लिए सेंतमेंत था, परमेश्वर को उसके लिए बहुत भारी कीमत वुकानी पड़ी थी। इस खान के मज़दूर ने कभी पाप में गिरी मानव जाति को उद्धार देने के लिए परमेश्वर द्वारा अपने पुत्र के प्राणों के बलिदान की कीमत के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन अब वह समझ सका कि पाप के गहरे गड्ढे से बाहर निकलने के लिए उसे केवल "विश्वास" नामक लिफ्ट में चढ़ने की आवश्यक्ता है और परमेश्वर उसे बाहर खींच लेगा।

परमेश्वर के अनुग्रह के कारण उद्धार सभी के लिए सेंतमेंत है, केवल प्रभु यीशु मसीह में साधारण विश्वास द्वारा है, लेकिन वह सस्ता कदापि नहीं है।

उद्धार पाने के लिए हमें उसकी कोई कीमत चुकाने के प्रयास नहीं करने चाहिएं, केवल मसीह यीशु द्वारा कलवरी के क्रूस पर किए गए कार्य पर विश्वास करना चाहिए। - पौल वैन गौर्डर


उद्धार हमारे लिए मुफ्त है, लेकिन परमेश्वर ने उसकी बहुत भारी कीमत चुकाई है।

क्‍योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्‍ड करे। - इफिसियों २:८, ९


बाइबल पाठ: इफिसियों २:१-१०

Eph 2:1 और उस ने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।
Eph 2:2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है।
Eph 2:3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्‍वभाव ही से क्रोध की सन्‍तान थे।
Eph 2:4 परन्‍तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया।
Eph 2:5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है)।
Eph 2:6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्‍वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया।
Eph 2:7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।
Eph 2:8 क्‍योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।
Eph 2:9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्‍ड करे।
Eph 2:10 क्‍योंकि हम उसके बनाए हुए हैं और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्‍हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू १३-१५
  • लूका १:५७-८०

मंगलवार, 22 मार्च 2011

मार्गदर्शन या भावनाएं?

कई मसीही परमेश्वर के मार्गदर्शन को अपनी भावनाओं या भीतरी अनुभूतियों से जोड़ते हैं। किन्तु ये भावनाएं और अनुभूतियाँ परमेश्वर के मार्गदर्शन का प्रमाण नहीं हैं। प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के एक भूत्पूर्व अधिपति, जौन हिबेन ने एक अतिथिति श्रीमान ब्युकमन को अपने घर भोज पर बुलाया। यह अतिथिति परमेश्वर के मार्गदर्शन को लेकर कुछ अपनी ही धारणाएं रखता था। भोजन के लिए न सिर्फ वह देर से पहुंचा वरन अपने साथ तीन बिन बुलाए मेहमानों को भी भोज के लिए ले आया। उस ने श्रिमति हिबेन को सफाई देते हुए कहा, "परमेश्वर ने मुझे इन तीनों को भी भोज पर लाने के लिए कहा!" श्रीमति हिबेन ने उत्तर दिया, "जी नहीं; मुझे नहीं लगता कि परमेश्वर का इससे कोई संबंध है।" ब्युकमन ने तिलमिला कर पूछा, "आप यह कैसे कह सकतीं हैं?" श्रीमति हिबेन ने उत्तर दिया, "क्योंकि मैं जानती हूँ कि परमेश्वर संभ्रांत है।"

यह किस्सा परमेश्वर के मार्गदर्शन के बारे में एक महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत करता है। विभिन्न परिस्थितियों को लेकर हमारे अन्दर कई सशक्त भावनाएं आ सकती हैं, परन्तु हमें उन्हें परमेश्वर का मार्गदर्शन मानने से पहले सदा परमेश्वर की प्रगट इच्छा के सामने रखकर जाँचना चाहिए। परमेश्वर का मार्गदर्शन कभी उसके वचन के प्रतिकूल अथवा उससे भिन्न नहीं होगा। परमेश्वर के वचनों को उनके संदर्भ में अध्ययन करने से हमें सही पहचान की सूझबूझ मिलती है, और उनका मनन करने से हम अपनी भावनाओं को जाँच पाते हैं।

अपनी पुस्तक "Knowing God" में जे. आई. पैकर चेतावनी देते हैं, "यदि कोई भावना हमारे अहम को उभारती है, या हमें अपनी मनमर्ज़ी करने को उकसाती है, या अपनी ज़िम्मेदारी से बच कर निकलने को प्रोत्साहित करती है, या हमें अपने आप को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करने की ओर ले चलती है, तो तुरंत उसे पहचान कर निषक्रीय कर देना चाहिए, उसे परमेश्वर का मार्गदर्शन समझने की गलती नहीं करनी चाहिए।"

यह एक अच्छी सलाह है, खासकर तब जब हमारे पास परमेश्वर का वचन है जो हमारे मार्ग का दीपक और राह का उजियला है। - डेनिस डी हॉन


भावनाएं तथ्यओं एवं विश्वास का स्थान कभी नहीं ले सकतीं।

उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। - नीतिवचन ३:६



बाइबल पाठ: नीतिवचन ३:१-१०

Pro 3:1 हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना, अपने ह्रृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना;
Pro 3:2 क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा।
Pro 3:3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं वरन उनको अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदय रूपी पटिया पर लिखना।
Pro 3:4 और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा।
Pro 3:5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।
Pro 3:6 उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।
Pro 3:7 अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना, यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना।
Pro 3:8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हड्डियां पुष्ट रहेंगी।
Pro 3:9 अपनी संपत्ति के द्वारा और अपनी भूमि की पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना;
Pro 3:10 इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रस कुण्डों से नया दाखमधु उमण्डता रहेगा।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू १०-१२
  • लूका १:३९-५६

सोमवार, 21 मार्च 2011

परमेश्वर का मार्गदर्शन

यदि कभी आप ने लालटेन की रौशनी में रात के अंधियारे में यात्रा करी है तो आप समझ सकते हैं कि लालटेन की रौशनी केवल अगला कदम देखकर रखने तक का ही प्रकाश देती है। लेकिन जब आप वह कदम उठा लेते हैं तो वही प्रकाश फिर उससे अगला कदम रखने का स्थान दिखा देता है। और इसी प्रकार जब आप आगे बढ़ते रहते हैं तो कदम-कदम करके आप का पूरा मार्ग रौशन होता जाता है।

अनेक मसीही विश्वासी, जो लम्बे समय से परमेश्वर के साथ चलते रहे हैं, अपने अनुभव से बताते हैं कि परमेश्वर भी इसी प्रकार कदम कदम करके उन्हें मार्ग दिखाता रहा है और चलाता रहा है, और वे इसी प्रकार अपनी मंजिल तक पहुंचने के पूर्ण्तः आश्वस्त भी हैं। लेकिन कुछ मसीही यात्री अपने सफर की अनिश्चितताओं के अन्धकार से परेशान हो जाते हैं। संभावित खतरों, मार्ग की बाधाओं और मार्ग में हो सकने वाले ठोकर के कारणों से विचिलित होकर वे प्रभु में अपनी सुरक्षा और शांति का आनन्द नहीं उठा पाते।

नीतिवचन के लेखक ने लिखा " तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वे तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।" (नीतिवचन ३:५,६) और दाऊद ने परमेश्वर की यह प्रतिज्ञा बताई "मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा।" (भजन ३२:८)

जब हम आने वाले कल के लिए परेशान होने की बजाए अपने आज के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना सीख लेते हैं तो अपने जीवन के हर कदम के लिए परमेश्वर के मार्गदर्शन और अनुग्रह को भी अनुभव करने लगते हैं। जितना परमेश्वर हमें दिखाता है, उससे आगे देखने की चिंता करने की हमें आवश्यक्ता नहीं है। जब हम उसके मार्गदर्शन में चलते हैं तो हर कदम के लिए हमारे पास उसकी ज्योति बनी रहती है।

परमेश्वर के मार्गदर्शन में चलना एक अद्भुत अनुभव है। - रिचर्ड डी हॉन


परमेश्वर के सत्य की लालटेन को दृढ़ता से थामे रहें और वह आपका सही मार्ग रौशन करती रहेगी।

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। - भजन ११९:१०५


बाइबल पाठ: भजन ११९:१०५-११२

Psa 119:105 तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।
Psa 119:106 मैं ने शपथ खाई, और ठाना भी है कि मैं तेरे धर्ममय नियमों के अनुसार चलूंगा।
Psa 119:107 मैं अत्यन्त दु:ख में पड़ा हूं, हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे जिला।
Psa 119:108 हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जान कर ग्रहण कर, और अपने नियमों को मुझे सिखा।
Psa 119:109 मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया।
Psa 119:110 दुष्टों ने मेरे लिये फन्दा लगाया है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका।
Psa 119:111 मैं ने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है।
Psa 119:112 मैं ने अपने मन को इस बात पर लगाया है, कि अन्त तक तेरी विधियों पर सदा चलता रहूं।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू ७-९
  • लूका १:२१-३८

रविवार, 20 मार्च 2011

अनुभव के पाठ

एक मसीही जब घोर परेशानियों में पड़ा तो उसे बाइबल के वचनों से बहुत सांत्वना मिली। उसने कहा, मैं प्रसन्न हुआ यह जानकर कि बाइबल मुझे सिखाती है कि परमेश्वर प्रत्येक परेशानी में भी मेरे साथ है और मुझे उनसे पार निकालेगा। ज़िंदगी सदा परेशानी ही नहीं है। यदि ऐसा होता तो हम कब के सदा की निराशाओं में घिर कर हार मान चुके होते।

निर्गमन १५ अध्याय में हम पढ़ते हैं कि जब इस्त्राएलियों ने "मारा" नाम स्थान में पढ़ाव डाला तो वे तीन दिन से जल के अभाव में चल रहे थे, लेकिन वहां का जल खारा निकला और वे उसे पी न सके। तब परमेश्वर ने मूसा को उपाय बताया और वह खारा जल मीठा बन गया। फिर उसके बाद अगले पड़ाव के लिए परमेश्वर उन्हें "एलीम" नामक स्थान पर ले गया जहां उन्हें ठंडे मीठे जल के सोते और विश्राम के लिए खजूर के पेड़ों की छाया मिली। वे लोग जानते थे कि दोनो पड़ाव परमेश्वर की ओर से हैं। परमेश्वर का महिमा का बादल उनके ऊपर छाया किये रहता था और उन्हें मार्ग दिखाता था। जब और जहां बादल चलता था तब और वहां इस्त्राएली चलते थे; जब बादल रुकता था तो इस्त्राएली भी रुकते थे। वह बादल ही उन्हें मारा भी ले गया और एलीम भी। इस्त्राएलियों की यह यात्रा मसीही जीवन की यात्रा का रूपक भी है।

यदि परमेश्वर किसी मसीही विश्वासी को "मारा" यानि परेशानियों और मुशकिलों के स्थान तक लाया है, तो वहां वह उसका उपाय भी देगा और आगे फिर "एलीम" के सुखदायी विश्राम तक भी लेकर जाएगा। और जब हम एलीम के आनन्द में हों तो ध्यान रखें कि परमेशवर हमें आगे की यात्रा के लिये सामर्थ भी दे रहा है और तैयार भी कर रहा है।

परमेश्वर का आराम और सहायता सदा उसके बच्चों के साथ है - यहां भी और स्वर्ग में भी। - पौल वैन गोर्डर


क्लेश की प्रत्येक मरुभूमि में परमेश्वर की सांत्वना की हरियाली भी है।

वह मुझे हरी हरी चराइयों में बैठाता है; वह मुझे सुखदाई जल के झरने के पास ले चलता है। - भजन २३:२


बाइबल पाठ: निर्गमन १५:२२-२७

Exo 15:22 तब मूसा इस्राएलियों को लाल समुद्र से आगे ले गया, और वे शूर नाम जंगल में आए, और जंगल में जाते हुए तीन दिन तक पानी का सोता न मिला।
Exo 15:23 फिर मारा नाम एक स्थान पर पहुंचे, वहां का पानी खारा था, उसे वे न पी सके; इस कारण उस स्थान का नाम मारा पड़ा।
Exo 15:24 तब वे यह कह कर मूसा के विरूद्ध बकझक करने लगे, कि हम क्या पीएं?
Exo 15:25 तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उसे एक पौधा बतला दिया, जिसे जब उस ने पानी में डाला, तब वह पानी मीठा हो गया। वहीं यहोवा ने उनके लिये एक विधि और नियम बनाया, और वहीं उस ने यह कह कर उनकी परीक्षा की,
Exo 15:26 कि यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा का वचन तन मन से सुने, और जो उसकी दृष्टि में ठीक है वही करे, और उसकी सब विधियों को माने, तो जितने रोग मैं ने मिस्रियों पर भेजे हैं उन में से एक भी तुझ पर न भेजूंगा क्योंकि मैं तुम्हारा चंगा करने वाला यहोवा हूं।
Exo 15:27 तब वे एलीम को आए, जहां पानी के बारह सोते और सत्तर खजूर के पेड़ थे और वहां उन्होंने जल के पास डेरे खड़े किए।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू ४-६
  • लूका १:१-२०

शनिवार, 19 मार्च 2011

भरोसा

एक नाविक बार-बार समुद्र में भटक जाता था, इसलिए उसके मित्रों ने उसे एक कुतुबनुमा (compass) दिया और सलाह दी कि अपनी यात्राओं में इसका प्रयोग किया करो। अगली बार जब वह समुद्र में अपनी नाव लेकर निकला तो दोस्तों की सलाह मानकर उनका दिया कुतुबनुमा भी साथ ले गया, लेकिन हमेशा की तरह वह फिर भटक गया और तट का रास्ता नहीं पा सका। उसके मित्र फिर उसे ढूंढने निकले, उसे ढूंढ कर बचाया और तट पर लाकर पूछा कि "तुमने उस कुतुबनुमा का प्रयोग क्यों नहीं किया? यदि करते तो हम इस कष्ट से बच सकते थे।" नाविक ने उत्तर दिया "मैंने बहुत कोशिश करी लेकिन सफल नहीं हुआ। मैं उत्तर दिशा को जाना चाहता था और कुतुबनुमा की सूई दक्षिण-पूर्व की ओर थी; मेरे लाख कोशिश करने के बावजूद कि उसकी सूई उत्तर दिशा की ओर नहीं मुड़ी, इसलिए मेरी उसपर भरोसा करने की हिम्मत नहीं हुई, और मैं अपनी समझ से उत्तर दिशा की ओर निकल पड़ा!" वह नाविक अपनी इच्छा के अनुसार कुतुबनुमा की सूई को मोड़ना चाहता था, न कि कुतुबनुमा के अनुसार अपनी नाव को। उसके इस हट ने उसे फिर खतरे में और उसके मित्रों को परेशानी में डाल दिया।

जब परमेश्वर इस्त्राएलियों को मिस्त्र के दासत्व से निकाल कर लाया, तो इस्त्राएलियों ने भी कुछ ऐसा ही किया। परमेश्वर पर भरोसा करके उसके निर्देषों को मानने की बजाए, उन्होंने अपनी समझ पर अधिक भरोसा किया और कुछ दिनों की अपनी यात्रा को ४० वर्ष की यात्रा बना डाला।

जैसा भजनकार ने लिखा है, परमेश्वर का वायदा है कि वह हमें समझ देगा और हमारे मार्ग में हमारी अगुवाई करेगा कि हम सही राह पर चल सकें। जो उसके निर्देषों और चेतावनियों को मानते हैं उन्हें वह तकलीफों, भटकने और बरबादी से बचाए रखेगा।

जब हम परमेश्वर से किसी विष्य में दिशा निर्देष की प्रार्थना करें, तो ध्यान रखें के उसके वचन रूपी कुतुबनुमे पर भरोसा भी बनाए रखें। - रिचर्ड डी हॉन


जब आप परमेश्वर से मार्गदर्शन की प्रार्थना करें और यदि उसके मार्गदर्शन को अपनी इच्छा से भिन्न पाएं तो खिन्न होकर ढीठ न बन जाएं।

मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा। - भजन ३२:८


बाइबल पाठ: यहोशू १:१-९

Jos 1:1 यहोवा के दास मूसा की मृत्यु के बाद यहोवा ने उसके सेवक यहोशू से जो नून का पुत्र था कहा,
Jos 1:2 मेरा दास मूसा मर गया है; सो अब तू उठ, कमर बान्ध, और इस सारी प्रजा समेत यरदन पार होकर उस देश को जा जिसे मैं उनको अर्थात इस्राएलियों को देता हूं।
Jos 1:3 उस वचन के अनुसार जो मैं ने मूसा से कहा, अर्थात जिस जिस स्थान पर तुम पांव धरोगे वह सब मैं तुम्हे दे देता हूं।
Jos 1:4 जंगल और उस लबानोन से लेकर परात महानद तक, और सूर्यास्त की ओर महासमुद्र तक हित्तियों का सारा देश तुम्हारा भाग ठहरेगा।
Jos 1:5 तेरे जीवन भर कोई तेरे साम्हने ठहर न सकेगा; जैसे मैं मूसा के संग रहा वैसे ही तेरे संग भी रहूंगा, और न तो मैं तुझे धोखा दूंगा, और न तुझ को छोडूंगा।
Jos 1:6 इसलिये हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; क्योंकि जिस देश के देने की शपथ मैं ने इन लोगों के पूर्वजों से खाई थी उसका अधिकारी तू इन्हें करेगा।
Jos 1:7 इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना और उस से न तो दहिने मुड़ना और न बांए, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सुफल होगा।
Jos 1:8 व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे, क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।
Jos 1:9 क्या मैं ने तुझे आज्ञा नहीं दी? हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा, भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।

एक साल में बाइबल:
  • यहोशू १-३
  • मरकुस १६

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

परमेश्वर की योजना समझिए

एक युवती एक प्रचारक के पास आयी और उससे जानना चाहा कि वह कैसे अपनी उन इच्छाओं की समस्या का समाधान कर सकती है जो परमेश्वर की मन्सा के विरोध में हैं? प्रचारक ने एक छोटा कागज़ लिया, उसपर दो शब्द लिखे और उसे युवती को दे दिया। तब प्रचारक ने युवती से कहा, "इसपर दस मिनिट तक विचार करो, फिर इन में से एक शब्द काट दो और कागज़ मेरे पास वापस ले आओ।" उस युवती ने कागज़ पर लिखे शब्दों को देखा, एक था "नहीं" और दूसरा था "प्रभु"। विचार करने के थोड़े समय में ही वह समझ गयी कि यदि वह "नहीं" को, यानि कि इन्कार करने को चुनती है, तो फिर यीशु को प्रभु नहीं कह सकती; और अगर वह "प्रभु" को चुनती है तो फिर यीशु को "नहीं" यानि इन्कार नहीं कर सकती।

यही हमारे जीवनों के लिये परमेश्वर की इच्छा को समझने का भेद है। जब तक हम परमेश्वर के हाथों में अपने आप को पूर्णतः तथा बिना किसी शर्त के नहीं रख देते, हम अपने प्रति उसकी इच्छा के विकल्पों को नहीं जान सकते। हमें अपने सारे अधिकार उसके आधीन कर देने हैं, तब ही हम उससे मिलने वाले अधिकारों को जान और समझ पाएंगे। अपने शरीरों को "जीवित बलिदान करके चढ़ाना" प्रभु की प्रत्येक आज्ञा के लिए सहमत और समर्पित होना है।

जब हम परमेश्वर को पूर्णतः समर्पित हो जाते हैं, तब ही हम इससे अगला कदम, अर्थात अपने व्यवहार में बदलाव, को उठा पाते हैं। व्यवहार में यह बदलाव तब ही संभव है जब हम अपने सोच-विचार को अपने चारों ओर प्रचलित संसार के सिद्धांतों से हटा कर परमेश्वर के वचन के सिद्धांतों के अनुरूप कर दें; और यह वो ही कर सकता है जिसका तन, मन और बुद्धि संसार को नहीं परमेश्वर को समर्पित हो।

यदि आप अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को जानना चाहते हैं, तो सर्वप्रथम अपने आप को परमेश्वर को समर्पित कीजीए। - डेनिस डी हॉन


जो अपनी इच्छा परमेश्वर की इच्छा के आधीन कर देते हैं, वे परमेश्वर से सर्वोत्तम ही पाते हैं।

इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरो को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। - रोमियों १२:१


बाइबल पाठ: रोमियों १२:१-८

Rom 12:1 इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरो को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।
Rom 12:2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्‍तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्‍छा अनुभव से मालूम करते रहो।
Rom 12:3 क्‍योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
Rom 12:4 क्‍योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं।
Rom 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
Rom 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
Rom 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
Rom 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे, दान देने वाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्‍साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३२-३४
  • मरकुस १५:२६-४७

गुरुवार, 17 मार्च 2011

सच्चा उद्धारकर्ता

एक युवा विद्वान ने एक नया धर्म बनाया और उसके सिद्धांतों को समझाने के लिये एक पुस्तक लिखी। कुछ समय पश्चात वह ब्रिटिश राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक बैनजामिन डिज़्राएली के पास आया और कहने लगा कि उसे समझ नहीं आता कि लोग क्यों उसके धर्म में विश्वास करने को राज़ी नहीं होते, जबकि उसका धर्म मसीह की शिक्षाओं और क्रूस पर बलिदान से कहीं अधिक उत्तम है। बुज़ुर्ग बैनजामिन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "बेटा, लोग तब तक तुम्हारी पुस्तक को नहीं पढ़ेंगे और न ही तुम्हारे धर्म में विश्वास लाएंगे जब तक तुम्हारा भी किसी क्रूस पर चढ़ाए जाकर बलिदान न हो और तुम भी फिर मृतकों में से जी न उठो।"

एक अंग्रेज़ प्रचारक एलेक्ज़ैंडर मैक्लरेन ने मसीह यीशु के व्यक्तित्व के संदर्भ में प्रश्न किया, "ऐसा क्यों है कि संसार के इतिहास में केवल एक और सिर्फ एक ही ऐसा व्यक्ति है जो समय और स्थान से कभी बंधा नहीं रहा है; जो आज भी उन करोड़ों लोगों का, जिनके हृदय उसके प्रेम से धड़कते हैं, वैसा ही घनिष्ठ मित्र है, जैसा वह उनका था जो उसके साथ पृथ्वी पर रहते थे?" यह एक बड़ा गंभीर और वाजिब प्रश्न है, जिसपर विचार आवश्यक है। मैक्लैरन के इस प्रश्न का उत्तर बैनजामिन डिज़्राएली द्वारा उस युवक को दिये उत्तर में ही है।

केवल परमेश्वर का निष्कलंक और निर्दोष पुत्र ही उद्धार प्रदान कर सकता है। केवल वही उद्धारकर्ता हो सकता है और हमारे पापों का बोझ उठा सकता है जिसने अपने बलिदान की सार्थकता को अपने पुनरुत्थान द्वारा प्रमाणित किया हो। क्योंकि यीशु ने हमसे प्रेम किया और अपने आप को हमारे लिये दे दिया, हमें भी अपना हृदय उसके लिये खोल कर उसे अर्पित कर देना चाहिये।

यदि हमने उसपर विश्वास किया है, तो प्रभु के चेले थोमा की तरह हम भी थोमा के समान प्रेम और भक्ति में पुकार सकते हैं, "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!" वही सच्चा उद्धारकर्ता है जो हमारी आराधना का सच्चा पात्र है। - पौल वैन गौर्डर


जब हम यीशु के प्रभुत्व को पहिचानेंगे तो उसे उसकी उपासना भी करेंगे।

यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर! - यूहन्ना २०:२८


बाइबल पाठ: यूहन्ना २०:२८

Joh 20:26 आठ दिन के बाद उस के चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उन के साथ था, और द्वार बन्‍द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, तुम्हें शान्‍ति मिले।
Joh 20:27 तब उस ने थोमा से कहा, अपनी उंगली यहां लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्‍तु विश्वासी हो।
Joh 20:28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!
Joh 20:29 यीशु ने उस से कहा, तू ने तो मुझे देख कर विश्वास किया है, धन्य हैं वे जिन्‍होंने बिना देखे विश्वास किया।
Joh 20:30 यीशु ने और भी बहुत चिन्‍ह चेलों के साम्हने दिखाए, जो इस पुस्‍तक में लिखे नहीं गए।
Joh 20:31 परन्‍तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३०-३१
  • मरकुस १५:१-२५

बुधवार, 16 मार्च 2011

हमारा निर्दोष एवज़ी

एक अनाथ युवती के गुर्दों ने काम करना बन्द कर दिया। बहुत इलाज के बाद भी जब कुछ सफलता नहीं मिली, उसकी हालत बिगड़ने लगी और उसके जीवित रहने की आशा क्षीण होने लगी। अन्तिम उपाय के तौर पर चिकित्सकों ने गुर्दे बदलने का निर्णय किया, किंतु कोई रिश्तेदार नहीं था जो उसके लिये अपना गुर्दा दान करता। चिकित्सकों ने समाज के सामने युवती के लिये निशुल्क गुर्दा दान देने के लिये आग्रह जारी किया। एक युवक आगे आया और अपना गुर्दा दान करने के लिये राज़ी हो गया। युवक का गुर्दा निकालते समय ऑपरेशन में कुछ दिक्कतें आईं और युवक की मृत्यु हो गई, लेकिन उसके दान किये हुए गुर्दे के कारण युवती की जान बच सकी। उस युवक ने केवल गुर्दा ही नहीं वरन अपने प्राण देकर उस युवती को नया जीवन दिया।

हमारे प्रभु में ऐसा कोई कारण नहीं था जिससे उसे मृत्यु दण्ड सहना पड़ता, फिर भी उसने स्वेच्छा से हमारे स्थान पर मृत्यु दण्ड सहना स्वीकार किया। एक कवि ने उसके इस बलिदान के लिये कुछ यूँ लिखा: "उसने हमारे स्थान पर मृत्यु सही/ उसने अपने लोगों को बचा लिया/ जो श्राप और दण्ड उसपर गिरा/ वह हमारे पापों का था।

एलिज़ाबेथ बैरेट ब्राउनिंग ने मसीह के क्रूस पर दिये महान बलिदान के आत्मिक मर्म को इन श्ब्दों में व्यक्त किया: वह त्यागा गया! परमेश्वर ने भी उससे अपना मुँह मोड़ लिया/ आदम का पाप धर्मी पुत्र और पिता के बीच आ गया/ हाँ एक बार इम्मैनुएल की कराह ने इस सृष्टी को झकझोर दिया/ वह तन्हा कराह "हे मेरे परमेश्वर, मैं त्यागा गया"।

परमेश्वर के पुत्र के बलिदान द्वारा बचाए जाकर अब हमें अपने उस निर्दोष एवज़ी के लिये अपने हृदय खोल देने चाहियें। - पौल वैन गौर्डर

यीशु हमारे पापों के लिये मरा ताकि हम पापों से मुक्त किये जाएं।

जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं। - २ कुरिन्थियों ५:२१


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ५:१७-२१

2Co 5:17 सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्‍टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं, देखो, वे सब नई हो गईं।
2Co 5:18 और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं, जिस ने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारा मेल मिलाप कर लिया, और मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है।
2Co 5:19 अर्थात परमेश्वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उन के अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उस ने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।
2Co 5:20 सो हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो।
2Co 5:21 जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २८-२९
  • मरकुस १४:५४-७२

मंगलवार, 15 मार्च 2011

काठ में अभिव्यक्ति

एक बढ़ई एक अन्धे भूमिहर को अपनी कारीगरी के सिद्धांतों को समझाने की कोशिश कर रहा था। बढ़ई ने कहा कि कलाकार अपने आप को रंगों के द्वारा अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं, लेखक शब्दों द्वारा और शिल्पकार पत्थर पर काम करके, मैं अपने आप को काठ पर अपनी कारीगरी के द्वारा ही सबसे बेहतर तरह अभिव्यक्त कर सकता हूँ। भूमीधर ने अद्भुत आत्मिक अन्तःदृष्टि से कहा, "काठ द्वारा? श्रीमान क्या आप जानते हैं कि सारे संसार में मनुष्य की महानत्म अभिव्यक्ति काठ में ही हुई है?" बढ़ई ने भूमिहर से बड़े अचरज से पूछा, "कैसे?" भूमिहर ने उत्तर दिया, "यीशु मसीह के क्रूस द्वारा।"

जब प्रभु यीशु इस पृथ्वी पर रहने के लिये आए तो अपने स्वर्गीय पिता के वचनानुसार आए। जो कुछ भी उन्होंने कहा या किया वह सब परमेश्वर पिता की आज्ञा के अनुसार था, इसलिये उनका जीवन और शिक्षाएं मनुष्य जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम भरे हृदय की सच्ची अभिव्यक्ति हैं। परन्तु प्रभु यीशु ने मनुष्य जाति के लिये परमेश्वर के प्रेम की अनन्त योजना की अभिव्यक्ति किसी महान शिक्षा के प्रचार या किसी बड़े आश्चर्यकर्म द्वारा नहीं करी, वरन उन्होंने परमेश्वर के प्रेम का सबसे प्रभावशाली प्रगटिकरण क्रूस पर स्वेच्छा से अपने बलिदान द्वारा किया।

क्रूस पर प्रभु यीशु का बलिदान परमेश्वर के प्रेम की महानत्म अभिव्यक्ति था। यह बलिदान, यह मृत्यु सहना, यह अनन्त प्रेम की अभिव्यक्ति मेरे और आपके लिये थी। जिसने इस काठ पर करी गई प्रेम की महानतम अभिव्यक्ति के मर्म को समझ लिया और स्वीकार कर लिया, वह अनन्त उद्धार पा गया। - डेव एगनर


मसीह ने हमारे पाप के दोष को अपने ऊपर ले लिया और हमें अपने अनुग्रह तथा आशीश की भेंट दे दी।

यहूदी तो चिन्‍ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं। परन्‍तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है। परन्‍तु जो बुलाए हुए हैं क्‍या यहूदी, क्‍या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर का ज्ञान है। - १ कुरिन्थियों १:२२-२४


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों १:१८-२५

1Co 1:18 क्‍योंकि क्रूस की कथा नाश होने वालों के निकट मूर्खता है, परन्‍तु हम उद्धार पाने वालों के निकट परमेश्वर की सामर्थ है।
1Co 1:19 क्‍योंकि लिखा है, कि मैं ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूंगा, और समझदारों की समझ को तुच्‍छ कर दूंगा।
1Co 1:20 कहां रहा ज्ञानवान? कहां रहा शास्त्री? कहां इस संसार का विवादी? क्‍या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया?
1Co 1:21 क्‍योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्‍छा लगा, कि इस प्रकार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करने वालों को उद्धार दे।
1Co 1:22 यहूदी तो चिन्‍ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं।
1Co 1:23 परन्‍तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है।
1Co 1:24 परन्‍तु जो बुलाए हुए हैं क्‍या यहूदी, क्‍या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर का ज्ञान है।
1Co 1:25 क्‍योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २६-२७
  • मरकुस १४:२७-५३

सोमवार, 14 मार्च 2011

"रेड क्रौस" का निशान

अपनी पुस्तक The Great Boer War, जो दक्षिणी अफ्रीका में हुए योरपीय सेनाओं के युद्ध का वृतांत है, सर आरथर कौनन डोयल ने एक घटना दर्ज की: अंग्रेज़ी सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी अचानक ही विरोधियों की एक बड़ी सेना के हमले में फंस गई और भयानक गोली बारी ने उन्हें बुरी तरह ज़ख्मी कर के पीछे खदेड़ दिया। उनके घायल सैनिक बड़ी खतरनाक स्थिति में थे और उनकी रक्षा केवल रेड क्रौस के झंडे के संरक्षण में आने से ही होनी संभव थी। उनके पास सफेद कपड़ा तो था लेकिन उस पर रेड क्रौस का निशान बनाने के लिये लाल रंग नहीं था; उन्होंने अपने ज़ख्मों से बहते खून से उस कपड़े पर लाल क्रौस का निशान बना कर वह झण्डा ऊंचा किया। उनके आक्रमणकारियों ने जब वह रेड क्रौस का झण्डा देखा तो अपना हमला रोक दिया और बचाव दल आकर उन्हें सुरक्षित निकाल कर ले गया।

कलवरी के ल्रूस पर बहे मसीह यीशु के लहू के आगे हमारा शत्रु शैतान भी निरुपाय है और हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता। मसीह का लहु उस महान त्याग का प्रतीक है जिसके कारण हम अपने पाप के दोष और उसके अनन्त मृत्यु के दण्ड की पकड़ से छूट सके। वह हमारे विरुद्ध शैतान के सभी दोषारोपणों से मिलने वाला सिद्ध संरक्षण है और हमारे पापों की क्षमा और पाप की प्रवृति पर विजय का प्रमाण है। इसी कारण हम मसीह के क्रूस में गर्व करते हैं।

यीशु मसीह को अपना निज उद्धारकर्ता स्वीकार करने के बाद कलवरी के क्रूस पर दिये गए उसके महान बलिदान की महिमा सदा हमारे जीवनों से होनी चाहिये। जो मसीह ने हमारे लिये किया उसके लिये प्रातः ही से हमें उसका आभारी होना चाहिये, सारे दिन उसके संरक्षण में रहना चाहिये और रात को उसपर विश्वास से विश्राम करना चाहिये।

मसीह के लहु से रंगे उस क्रूस के बलिदान ही से हमें पापों की क्षमा और उनके दण्ड से छुटकारा मिला है। - डेनिस डी हॉन


कलवरी शैतान को मिली हार का स्थान है।

जिस से हमें छुटकारा अर्थात पापों की क्षमा प्राप्‍त होती है। - कुलुस्सियों १:१४


बाइबल पाठ: इब्रानियों ९:११-२८

परन्‍तु जब मसीह आने वाली अच्‍छी अच्‍छी वस्‍तुओं का महायाजक होकर आया, तो उस ने और भी बड़े और सिद्ध तम्बू से होकर जो हाथ का बनाया हुआ नहीं, अर्थात सृष्‍टि का नहीं।
और बकरों और बछड़ों के लोहू के द्वारा नहीं, पर अपने ही लोहू के द्वारा एक ही बार पवित्र स्थान में प्रवेश किया, और अनन्‍त छुटकारा प्राप्‍त किया।
क्‍योंकि जब बकरों और बैलों का लोहू और कलोर की राख अपवित्र लोगों पर छिड़के जाने से शरीर की शुद्धता के लिये पवित्र करती है।
तो मसीह का लोहू जिस ने अपने आप को सनातन आत्मा के द्वारा परमेश्वर के साम्हने निर्दोष चढ़ाया, तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामों से क्‍यों न शुद्ध करेगा, ताकि तुम जीवते परमेश्वर की सेवा करो।
और इसी कारण वह नई वाचा का मध्यस्थ है, ताकि उस मृत्यु के द्वारा जो पहिली वाचा के समय के अपराधों से छुटकारा पाने के लिये हुई है, बुलाए हुए लोग प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्‍त मीरास को प्राप्‍त करें।
क्‍योंकि जहां वाचा बान्‍धी गई है वहां वाचा बान्‍धने वाले की मृत्यु का समझ लेना भी अवश्य है।
क्‍योंकि ऐसी वाचा मरने पर पक्की होती है, और जब तक वाचा बान्‍धने वाला जीवित रहता है, तब तक वाचा काम की नहीं होती।
इसी लिये पहिली वाचा भी बिना लोहू के नहीं बान्‍धी गई।
क्‍योंकि जब मूसा सब लोगों को व्यवस्था की हर एक आज्ञा सुना चुका, तो उस ने बछड़ों और बकरों का लोहू लेकर, पानी और लाल ऊन, और जूफा के साथ, उस पुस्‍तक पर और सब लोगों पर छिड़क दिया।
और कहा, कि यह उस वाचा का लोहू है, जिस की आज्ञा परमेश्वर ने तुम्हारे लिये दी है।
और इसी रीति से उस ने तम्बू और सेवा के सारे सामान पर लोहू छिड़का।
और व्यवस्था के अनुसार प्राय: सब वस्‍तुएं लोहू के द्वारा शुद्ध की जाती हैं और बिना लोहू बहाए क्षमा नहीं होती।
इसलिये अवश्य है, कि स्‍वर्ग में की वस्‍तुओं के प्रतिरूप इन के द्वारा शुद्ध किए जाएं, पर स्‍वर्ग में की वस्‍तुएं आप इन से उत्तम बलिदानों के द्वारा।
क्‍योंकि मसीह ने उस हाथ के बनाए हुए पवित्र स्थान में जो सच्‍चे पवित्र स्थान का नमूना है, प्रवेश नहीं किया, पर स्‍वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिये अब परमेश्वर के साम्हने दिखाई दे।
यह नहीं कि वह अपने आप को बार बार चढ़ाए, जैसा कि महायाजक प्रति वर्ष दूसरे का लोहू लिये पवित्रस्थान में प्रवेश किया करता है।
नहीं तो जगत की उत्‍पत्ति से लेकर उस को बार बार दुख उठाना पड़ता; पर अब युग के अन्‍त में वह एक बार प्रगट हुआ है, ताकि अपने ही बलिदान के द्वारा पाप को दूर कर दे।
और जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है।
वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ और जो लोग उस की बाट जोहते हैं, उन के उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप के दिखाई देगा।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २३-२५
  • मरकुस १४:१-२६

रविवार, 13 मार्च 2011

प्रेम की सामर्थ

एक गांव के प्रार्थना भवन की दीवार पर दो बारह वर्षीय युवकों की तसवीरें लगीं हैं। एक का नाम है रिक और दूसरे का रोज़ी। वे तसवीरें यादगार हैं एक दुर्घटना की जो कई साल पहले घटी थी। उस गांव के बच्चे एक झील पर नौका विहार के लिये गए थे। नौका अभियान के बाद वे किनारे लौटे और अपने खेमे लगाने लगे। तभी रोज़ी को पानी में कुछ तैरता दिखाई दिया, और वह उसे लेने के लिये नाव पानी में उतार कर उसकी ओर चल दिया। तेज़ हवाओं ने उसे शीघ्र ही किनारे से दूर धकेल दिया। उसकी खतरनाक दशा को देखकर उनके साथ के अधिकारियों ने दो नौकाएं और पानी में उतारीं के उसे बचा लाएं। जब रिक ने देखा कि उसका सबसे अच्छा मित्र खतरे में है तो उसने भी बचाव दल के साथ जाने का हठ किया और उनके साथ चल दिया। तेज़ हवाओं ने उन तीनों नौकाओं को झकझोर दिया और उलट दिया। बचाव दल के लोग किसी तरह तैरकर अपनी जान बचाने में सफल हुए लेकिन रिक और रोज़ी दोनो ही झील की गहराईयों में खो गए। उन दोनो की तसवीर के बीच में एक स्मृति-पटिका पर यह शब्द खुदे हैं "रिक, जिसने इतना प्रेम किया कि अपनी जान दूसरे के लिये दे दी। रोज़ी, जो ऐसे प्रेम के लायक था कि दूसरे ने उसके लिये अपनी जान दे दी।"

यह कहानी स्मरण दिलाती है " देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है..." (१ यूहन्ना ३:१) - ऐसा प्रेम कि हमारे पापों के लिये अपने पुत्र को बलिदान होने को दे दिया। और हम ऐसे प्रेम के भागी बने कि पुत्र स्वेच्छा से हमारे सन्ती बलिदान हो गया।

हमारा उद्धार ही उसके प्रेम की इस सामर्थ का सबसे महान प्रमाण है। - डेव एगनर


परमेश्वर के प्रेम का सच्चा माप यही है कि उसके प्रेम को मापा नहीं जा सकता।

देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है... - १ यूहन्ना ३:१


बाइबल पाठ : १ यूहन्ना ४:७-११

हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्‍योंकि प्रेम परमेश्वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है और परमेश्वर को जानता है।
जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्‍योंकि परमेश्वर प्रेम है।
जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं।
प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर ने प्रेम किया; पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया और हमारे पापों के प्रायश्‍चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।
हे प्रियों, जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण २०-२२
  • मरकुस १३:२१-३७

शनिवार, 12 मार्च 2011

आत्मत्याग की कला

धार्मिक कलाकृतियों में पेलिकन नामक समुद्री तट पर पाए जाने वाले पक्षी को आत्मत्याग का प्रतीक माना जाता है। इस किंवदंती के प्रचलित होने का कारण है उनका सफेद रंग और उनकी बड़ी सी चोंच के सिरे का गहरे लाल रंग का होना। कहते हैं कि जब मादा पेलिकन अपने बच्चों के लिये भोजन नहीं जुटा पाती तो अपने सीने में अपनी चोंच मारकर अपने बच्चों का अपने लहू से पोषण करती है, इसीलिये उसकी चोंच लाल रंग की होती है। आरंभिक चर्च के लोगों ने इस बात में प्रभु यीशु मसीह द्वारा हमारे लिये किये गए कार्य का सुन्दर प्रतिरूप देखा और यह भी कि सच्चे मसीही विश्वासियों को कैसी गवाही रखनी चाहिये तथा पेलिकन को धार्मिक कलाकृतियों में आत्मत्याग का चित्रण करने के लिये ले लिया।

पेलिकन की यह किंवदंती न केवल प्रभु यीशु मसीह के व्यवहार को दर्शाती है, वरन हम जो उसके खून खरीदे सन्तान हैं, हमारे स्वरूप को भी दर्शाती है। पेलिकन के बच्चों की तरह, पाप में गिरी मनुष्य जाति भी, किसी भी कीमत पर, अपने लोभ और इच्छा की पूर्ति चाहती है। प्रभु यीशु मसीह ने अपने बलिदान के लहू द्वारा ऐसों को अपना लिया।

अब मसीही विश्वास में आ जाने के बाद हमारा व्यवहार भी स्वार्थी नहीं वरन आत्मत्याग का होना चाहिये। मसीह द्वारा हमारे नए किये जाने के बाद हमें भी मसीह के समान आत्मत्याग की कला का अभ्यास करते रहना चाहिये। - मार्ट डी हॉन


प्रेम से प्रेरित किये गए आत्मत्याग के समान परमेश्वर को और कुछ सन्तुष्ट नहीं कर सकता।

परन्‍तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता: कि उसे प्रीय जानूं, वरन यह कि मैं अपनी दौड़ को, और उस सेवाकाई को पूरी करूं, जो मैं ने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिये प्रभु यीशु से पाई है। - प्रेरितों २०:२४


बाइबल पाठ: प्रेरितों के काम २०:१७-२७

और उस ने मीलेतुस से इफिसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया।
जब वे उस के पास आए, तो उन से कहा, तुम जानते हो, कि पहिले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुंचा, मैं हर समय तुम्हारे साथ किस प्रकार रहा।
अर्थात बड़ी दीनता से, और आंसू बहा बहाकर, और उन परीक्षाओं में जो यहूदियों के षडयन्‍त्र के कारण मुझ पर आ पड़ीं, मैं प्रभु की सेवा करता ही रहा।
और जो जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उन को बताने और लोगों के साम्हने और घर घर सिखाने से कभी न झिझका।
वरन यहूदियों और यूनानियों के साम्हने गवाही देता रहा, कि परमेश्वर की ओर मन फिराना, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना चाहिए।
और अब देखो, मैं आत्मा में बन्‍धा हुआ यरूशलेम को जाता हूं, और नहीं जानता, कि वहां मुझ पर क्‍या क्‍या बीतेगा
केवल यह कि पवित्र आत्मा हर नगर में गवाही दे देकर मुझ से कहता है, कि बन्‍धन और क्‍लेश तेरे लिये तैयार हैं।
परन्‍तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता: कि उसे प्रीय जानूं, वरन यह कि मैं अपनी दौड़ को, और उस सेवाकाई को पूरी करूं, जो मैं ने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिये प्रभु यीशु से पाई है।
और अब देखो, मैं जानता हूं, कि तुम सब जिन से मैं परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता फिरा, मेरा मुंह फिर न देखोगे।
इसलिये मैं आज के दिन तुम से गवाही देकर कहता हूं, कि मैं सब के लोहू से निर्दोष हूं।
क्‍योंकि मैं परमेश्वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बनाने से न झिझका।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण १७-१९
  • मरकुस १३:१-२०

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

सिद्धांत - स्वतंत्रता का या प्रेम का

अमेरिका में, जहां सड़क के दाहिनी ओर चलने का नियम है, कई प्रांतों में चौराहों की लाल बत्ती पर दाहिनी ओर मुड़ने की अनुमति है, यदि मार्ग साफ हो और कोई अन्य उस ओर से न आ-जा रहा हो। यह वाहन चालकों को दी गई स्वतंत्रता है। लेकिन कुछ चौराहों पर चेतावनी लगी होती है "दाहिनी ओर मुड़ना मना है" क्योंकि वे चौराहे खतरनाक हैं और वहां दुर्घटना की संभावना अधिक है।

बाइबल में १ कुरिन्थियों ८ अध्याय में भी मसीही स्वतंत्रता के संबंध में कुछ ऐसी ही परिस्थिति है। पौलुस मूर्तियों को भेंट के रूप में चढ़ाई गई भोजन वस्तुओं को खाने के लिये स्वतंत्रता था। उसे मालूम था कि मूर्तियां कुछ नहीं होतीं और उन पर चढ़ाई गई भोजन वस्तु खाना न सही था न गलत।

परन्तु सभी विश्वासी ऐसा नहीं समझते थे। वे जिनके विवेक कमज़ोर थे मानते थे कि मूर्ति को चढ़ाने से भोजन वस्तु अशुद्ध हो गई है इसलिये अब उसे नहीं खाना चाहिये। पौलुस ने इस बात का ध्यान किया कि इस विष्य में उसे विशेष सावधानी बरतनी है, कहीं उसके ऐसा भोजन खाने से वह कमज़ोर विवेक वाला ठोकर न खाए। विश्वास में नए और अपरिपक्व लोगों के विवेक की चिंता ने उसे अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करने से रोक कर रखा।

मसिही विश्वासी मसीह में स्वतंत्र हैं समाज की उन बातों में भाग लेने के लिये जिनके विष्य में बाइबल स्पष्ट रूप से मना नहीं करती, लेकिन परमेश्वर का पवित्र आत्मा किन्ही परिस्थितियों में हमें कुछ ऐसी जायज़ बातों में भाग लेने से मना कर सकता है। ये हमारे वे निर्ण्य हैं जहां प्रेम के सिद्धांत का पालन स्वतंत्रता के सिद्धांत के पालन से ऊपर होता है।

एक परिपक्व मसीही विश्वासी अपने कमज़ोर साथी का ध्यान करके किसी "लाल बत्ती" पर बिना ध्यान किये " वर्जित दाहिने" नहीं मुड़ेगा। - डेनिस डी हॉन


जब तक हम सही करने के कर्तव्य को नहीं निभाते, हमें अपनी मर्ज़ी करने की स्वतंत्रता भी नहीं निभा सकते।

परन्‍तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्‍वतंत्रता कहीं निर्बलों के लिये ठोकर का कारण हो जाए। - १ कुरिन्थियों ८:९


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों ८

अब मूरतों के साम्हने बलि की हुई वस्‍तुओं के विषय में हम जानते हैं, कि हम सब को ज्ञान है: ज्ञान घमण्‍ड उत्‍पन्न करता है, परन्‍तु प्रेम से उन्नति होती है।
यदि कोई समझे, कि मैं कुछ जानता हूं, तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता।
परन्‍तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्वर पहिचानता है।
सो मूरतों के साम्हने बलि की हुई वस्‍तुओं के खाने के विषय में हम जानते हैं, कि मूरत जगत में कोई वस्‍तु नहीं, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।
यद्यपि आकाश में और पृथ्वी पर बहुत से ईश्वर कहलाते हैं, (जैसा कि बहुत से ईश्वर ओर बहुत से प्रभु हैं)।
तौभी हमारे निकट तो एक ही परमेश्वर है: अर्थात पिता जिस की ओर से सब वस्‍तुएं हैं, और हम उसी के लिये हैं, और एक ही प्रभु है, अर्थात यीशु मसीह जिस के द्वारा सब वस्‍तुएं हुई, और हम भी उसी के द्वारा हैं।
परन्‍तु सब को यह ज्ञान नही; परन्‍तु कितने तो अब तक मूरत को कुछ समझने के कारण मूरतों के साम्हने बलि की हुई को कुछ वस्‍तु समझ कर खाते हैं, और उन का विवेक निर्बल होकर अशुद्ध होता है।
भोजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुंचाता, यदि हम न खांए, तो हमारी कुछ हानि नहीं, और यदि खाएं, तो कुछ लाभ नहीं।
परन्‍तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्‍वतंत्रता कहीं निर्बलों के लिये ठोकर का कारण हो जाए।
क्‍योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूरत के मन्‍दिर में भोजन करते देखे, और वह निर्बल जन हो, तो क्‍या उसके विवेक में मूरत के साम्हने बलि की हुई वस्‍तु के खाने का हियाव न हो जाएगा?
इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिस के लिये मसीह मरा नाश हो जाएगा।
सो भाइयों का अपराध करने से ओर उन के निर्बल विवेक को चोट देने से तुम मसीह का अपराध करते हो।
इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाए, तो मैं कभी किसी रीति से मांस न खाऊंगा, न हो कि मैं अपने भाई के ठोकर का कारण बनूं।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण १४-१६
  • मरकुस १२:२८-४४

गुरुवार, 10 मार्च 2011

मजबूरी अथवा स्वेच्छा?

कुछ मसीही सेवक अपने मसीही विश्वास में आने के बारे में बातचीत कर रहे थे। अधिकांश ने बड़े नाटकीय ढंग से हुए अपने परिवर्तन के बारे में बताया, और उन्हें वह समय और स्थान याद था जब उन्होंने मसीह पर विश्वास किया और अपना जीवन उसे समर्पित किया। लेकिन उनमें एक ऐसा था जो एक मसीही घराने में पैदा-पला-बड़ा हुआ था; उसने कहा "मुझे जहां तक याद आता है, मैंने सदा ही मसीह को जाना है और उससे प्रेम किया है; लेकिन मुझे यह भी याद है कि कब मेरे लिये मजबूरी एक स्वेच्छा और प्रेम का कार्य बन गयी।"

यही हमारे विश्वास की वास्तविक्ता की परख है - परमेश्वर का आत्मा जो मसीही विश्वासी के अन्दर निवास करता है, उसे परमेश्वर के प्रति ऐसे प्रेम से भर देता है कि फिर परमेश्वर की आज्ञाकारिता उसके लिये मजबूरी या बन्धन नहीं वरन हृदय के नये हो जाने से प्रेम के प्रत्युतर में किया गया कार्य हो जाती है। जब पौलुस ने २ कुरिन्थियों ३:६ में लिखा "... शब्‍द के सेवक नहीं वरन आत्मा के, क्‍योंकि शब्‍द मारता है, पर आत्मा जिलाता है" तो उसका यही अर्थ था।

यदि परमेश्वर के लिये हमारी सेवा केवल किसी मजबूरी या बन्धन या रीति के अन्तर्गत या किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिये है और उसमें प्रेम की स्वेच्छा नहीं है तो वह सच्ची सेवा नहीं; वह फिर मनुष्यों के बनाए नियमों के अन्तर्गत किया गया मजबूरी का पालन है, जिससे मनुष्य तो प्रसन्न या सन्तुष्ट हो सकते हैं परन्तु परमेश्वर नहीं।

मसीही विश्वासी होने के नाते, यदि कभी परमेश्वर की सेवा स्वेच्छा नहीं मजबूरी लगने लगे तो हमें थोड़ा ठहर कर प्रभु यीशु द्वारा हमारे उद्धार के लिये चुकाई गई कीमत पर विचार करना चाहिये। हमारे प्रति अपने प्रेम के कारण परमेश्वर ने अपने पुत्र के ऊपर वह दण्ड रख दिया जिसका हमें भागी होना चाहिये था। क्या इतने महान प्रेम और इतने बड़े बलिदान के सामने कोई भी आज्ञाकारिता मजबूरी बन सकती है?

जब हम अपने और परमेश्वर के संबंधों के बीच में आने वाले पापों को मान कर परमेश्वर से क्षमा मांग लेते हैं और परमेश्वर के आत्मा से विनती करते हैं कि वह हमें अपनी उपस्थिति से भर दे, तो परमेश्वर के अद्भुत प्रेम का एक नया अनुभव हमें मिलता है और पुनः हमारे लिये "मजबूरी" स्वेच्छा में बदल जाती है। - डेनिस डी हॉन


"नियम" हमें बाध्य करते हैं, प्रेम हमें स्वतंत्र करता है।

...क्‍योंकि शब्‍द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। - २ कुरिन्थियों ३:६


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ३:१-१०

क्‍या हम फिर अपनी बड़ाई करने लगें या हमें कितनों कि नाईं सिफारिश की पत्रियां तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं?
हमारी पत्री तुम ही हो, जो हमारे ह्रृदयों पर लिखी हुई है, और उसे सब मनुष्य पहिचानते और पढ़ते है।
यह प्रगट है, कि तुम मसीह की पत्री हो, जिस को हम ने सेवकों की नाई लिखा; और जो सियाही से नहीं, परन्‍तु जीवते परमेश्वर के आत्मा से पत्थर की पटियों पर नहीं, परन्‍तु ह्रृदय की मांस रूपी पटियों पर लिखी है।
हम मसीह के द्वारा परमेश्वर पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं।
यह नहीं, कि हम अपने आप से इस योग्य हैं, कि अपनी ओर से किसी बात का विचार कर सकें, पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है।
जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्‍द के सेवक नहीं वरन आत्मा के; क्‍योंकि शब्‍द मारता है, पर आत्मा जिलाता है।
और यदि मृत्यु की यह वाचा जिस के अक्षर पत्थरों पर खोद गए थे, यहां तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुंह पर के तेज के कराण जो घटता भी जाता था, इस्‍त्राएल उसके मुंह पर दृष्‍टि नहीं कर सकते थे।
तो आत्मा की वाचा और भी तेजोमय क्‍यों न होगी?
क्‍योंकि जब दोषी ठहराने वाली वाचा तेजोमय थी, तो धर्मी ठहराने वाली वाचा और भी तेजोमय क्‍यों न होगी?
और जो तेजोमय था, वह भी उस तेज के कारण जो उस से बढ़ कर तेजामय था, कुछ तेजोमय न ठहरा।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ११-१३
  • मरकुस १२:१-२७

बुधवार, 9 मार्च 2011

व्यवस्था से परे जीवन

एक हीरे की अंगूठी चोरी हो गई। पुलिस ने तलाश आरंभ करी और चोर की शिनाखत भी हो गई, लेकिन पुलिस किसी को पकड़ कर बन्द नहीं कर पाई। चोर के विवरण में पुलिस ने लिखा कि "वह कद में छोटा, तेज़ दौड़ने वाला और बड़ी चतुराई और खामोशी से चल सकने वाला है।" वास्तव में चोर एक सात महीने का बिल्ली का बच्चा था, और उसकी पहिचान धातु पहिचानने वाले यंत्र को उसके शरीर पर घुमाने से हुई और जब उसका एक्स-रे किया गया तो बात प्रमाणित हो गई। क्योंकि बिल्लियां और जानवर कानून से परे होते हैं, उसे चोरी के जुर्म में गिरफतार नहीं किया जा सका।

ऐसा ही कुछ मसीही विश्वासी और परमेश्वर की व्यवस्था के संबंध के साथ भी है। रोमियों के आठवें अध्याय में पौलुस बताता है कि मसीही विश्वासी पर कभी स्वर्गीय न्यायालय में नरक के लिये दोषी ठहराये जाने के लिये मुकद्दमा नहीं होगा। रोमियों ४:८ पौलुस कहता है " धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए" और ऐसे धन्य मनुष्य के लिये वह प्रश्न पूछता है "परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहराने वाला है।" (रोमियों ८:३३)

इसका यह तात्पर्य नहीं है कि क्योंकि मसीही विश्वासी पर व्यवस्था लागू नहीं होती इसलिये वह मनमर्ज़ी करने को स्वतंत्र है और उसका कोई हिसाब नहीं लेगा। मसीही विश्वासी व्यवस्था से परे है क्योंकि मसीह का क्रूस उनकी नरक के अनन्त दण्ड से रक्षा करता है, लेकिन साथ ही यही क्रूस उन्हे मसीह के समान जीने के लिये भी कहता है तथा यह भी कि उनके मसीही जीवन के कार्यों का हिसाब परमेश्वर अवश्य लेगा। " क्‍योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के साम्हने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामों का बदला जो उस ने देह के द्वारा किए हों पाए।" (२ कुरिन्थियों ५:१०) "क्‍योंकि वह समय आ पहुंचा है, कि पहिले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उन का क्‍या अन्‍त होगा जो परमेश्वर के सुसमाचार को नहीं मानते?" (१ पतरस ४:१७)

यदि हम पाप के विष्य में लापरवाह होंगे तो अवश्य ही अपनी अनुशासनहीनता के लिये दुख उठाएंगे, और स्वर्ग में मिलने वाले अपने प्रतिफलों का नुकसान उठाएंगे। परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि हम कभी नरक के दण्ड के भागी नहीं होंगे - प्रभु यीशु ने हमें व्यवस्था के श्राप और नरक के दण्ड से बचा लिया है। - मार्ट डी हॉन


जब हम मसीह के गुणों के कारण धर्मी ठहराए जाते हैं, तो मसीह में होकर परमेश्वर हमें निर्दोष देखता है।

परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहराने वाला है। - रोमियों ८:३३


बाइबल पाठ: रोमियों ८:२९-३९

क्‍योंकि जिन्‍हें उस ने पहिले से जान लिया है उन्‍हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्‍वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे।
फिर जिन्‍हें उस ने पहिले से ठहराया, उन्‍हें बुलाया भी, और जिन्‍हें बुलाया, उन्‍हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्‍हें धर्मी ठहराया, उन्‍हें महिमा भी दी है।
सो हम इन बातों के विषय में क्‍या कहें यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?
जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्‍तु उसे हम सब के लिये दे दिया: वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्‍योंकर न देगा?
परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहराने वाला है।
फिर कौन है जो दण्‍ड की आज्ञा देगा मसीह वह है जो मर गया वरन मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर की दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है।
कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्‍या क्‍लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार?
जैसा लिखा है, कि तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होने वाली भेंडों की नाई गिने गए हैं।
परन्‍तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्‍त से भी बढ़कर हैं।
क्‍योंकि मैं निश्‍चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्‍वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई,
न गहिराई और न कोई और सृष्‍टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ८-१०
  • मरकुस ११:१९-३३

मंगलवार, 8 मार्च 2011

प्रेम की व्यवस्था

एक दम्पति साथ तो रहते थे परन्तु उनमें आपसी प्रेम नहीं था। उनका साथ रहना प्रेम का नहीं वरन एक दम्पति का बन्धन था। पति बहुत कठोर और हावी होकर रहने वाला था। उसने अपनी पत्नि के पालन करने के लिये एक सूचि बना कर उसे दे दी। उसने पत्नि को मजबूर किया कि वह उस सूचि को प्रतिदिन पढ़े और पूरी तरह से उसका पालन करे। पत्नि को प्रातः कब उठना है, कब पति के लिये कैसा भोजन तैयार करना और परोसना है, घर का काम और देखभाल कब और कैसे करनी है आदि सब उस सूचि में दर्ज था और पत्नि को कोई काम उस सूची से बाहर या निर्धारित रीति के अलावा करने की अनुमति नहीं थी। पत्नि इसी तरह पिसती हुई समय बिताती रही।

कुछ समय पश्चात पति की मृत्यु हो गई और तब पत्नि पति की उस नियमों की व्यवस्था से स्वतंत्र हो सकी। एक मनुष्य ने उस स्त्री को चाहा और उससे शादी कर ली। यह नया पती अपनी पत्नि की खुशी के लिये यथासंभव करता और अपने प्रेम तथा उसके प्रति अपनी प्रशंसा से लगातार उसे अवगत कराता रहता। पत्नि भी पति का प्रेम पाकर अपने पति को प्रसन्न रखने के लिये अपनी ओर से जो कुछ बन पड़ता करती रहती। एक दिन घर की सफाई करते हुए, एक दराज के कोने में पड़ी उसे अपने पहले पति द्वारा दी गई सूचि मिली। उसने उस सूचि को फिर से पढ़ा, और उसे एहसास हुआ कि अब भी वह अपने पति के लिये वही सब कुछ कर रही है जो उसके पहले पति ने उस सूची में लिख कर उसे दिया था; फर्क केवल यह था कि अब वह किसी मजबूरी या दबाव में नहीं वरन अपने पति के प्रेम के प्रत्युत्तर में दिल से और खुशी से करती थी कि उसका पति प्रसन्न रहे।

प्रभु यीशु ने भी हमसे पहले प्रेम किया, इतना प्रेम कि हमारी पाप की दशा में भी हमारे लिये अपनी जान दे दी जिससे कि हम पाप से स्वतंत्र हो सकें। हम अब प्रभु पर विश्वास करके, नियमों की व्यवस्था से स्वतंत्र होकर उसके प्रेम के प्रत्युत्तर में किसी मजबूरी से या रीति निभाने के लिये नहीं, परन्तु प्रेम में होकर उसकी सेवा और आराधना करते हैं। यही प्रेम की व्यवस्था है। - रिचर्ड डी हॉन


व्यवस्था की आधीनता में मसीह की सेवा कर्तव्य निभाना है, प्रेम की आधीनता में आनन्द है।

क्‍योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है... - २ कुरिन्थियों ५:१४


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ५:१०-१५

क्‍योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के साम्हने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामों का बदला जो उस ने देह के द्वारा किए हों पाए।
सो प्रभु का भय मानकर हम लोगों को समझाते हैं और परमेश्वर पर हमारा हाल प्रगट है और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा।
हम फिर भी अपनी बड़ाई तुम्हारे साम्हने नहीं करते वरन हम अपने विषय में तुम्हें घमण्‍ड करने का अवसर देते हैं, कि तुम उन्‍हें उत्तर दे सको, जो मन पर नहीं, वरन दिखवटी बातों पर घमण्‍ड करते हैं।
यदि हम बेसुध हैं, तो परमेश्वर के लिये और यदि चैतन्य हैं, तो तुम्हारे लिये हैं।
क्‍योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है इसलिये कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए।
और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपके लिये न जीएं परन्‍तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ५-७
  • मरकुस ११:१-१८

"व्यवस्था का उद्देश्य" पर अनवर जमाल जी की टिपणी के सन्दर्भ में

अन्वर जमाल साहब,
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद। आपकी टिप्पणी में कही गई बातों में कुछ सच है, कुछ अन्समझा है और कुछ गलत। इन तीनों को बाइबल की कुछ सच्चाईयों के सन्दर्भ में समझाने की कोशिश करता हूं, आशा है कि कामयाब हो पाऊंगा।

१. सच यह है कि प्रभु यीशु मसीह और उनके चेले व्यवस्था का पालन करते थे।

प्रभु यीशु का दावा था कि वे व्यवस्था को हटाने नहीं वरन उसे पूरा करने आए हैं। व्यवस्था को सही और सच्चे दिली तौर से पूरा कर पाना किसी भी इन्सान के लिये असंभव है; और जब तक व्यवस्था पूरी नहीं होती वह लागू भी रहती, क्योंकि परमेश्वर की कही कोई बात पूरी हुए बिना रह नहीं सकती। प्रभु यीशु मसीह ने, जो व्यवस्था का देने वाला है, व्यवस्था को सही और सच्चे दिली तौर से पूरा किया और उसकी जगह परमेश्वर की आज्ञाकारिता और उसे प्रसन्न करने की एक आसान और कारगर विधी दी जो किसी नियम - कानून के पालन के बन्धनों द्वारा नहीं वरन मसीह में विश्वास और प्रेम द्वारा है।


. अन्समझा यह है कि वे, यानि मसीह और उनके चेले, ऐसा क्यों करते थे और व्यवस्था क्यों दी गई?

मसीह ने व्यवस्था का पालन किया परमेश्वर के वचन को पूरा करने और उद्धार का मार्ग देने के लिये। आरंभ में उनके चेलों के पास भी परमेश्वर के वचन के पालन के लिये केवल व्यवस्था ही थी। मसीह के क्रूस पर चढ़ाकर मारे जाने और फिर तीसरे दिन जी उठने से पहले, यहूदी लोगों के पास परमेश्वर की आज्ञाकारिता का कोई और माध्यम नहीं था। व्यवस्था मसीह के आने तक मसीह की पहिचान कराने और परमेश्वर के लोगों को मसीह के लिये संभाल कर रखने के लिये एक शिक्षक के समान थी। मसीह के जी उठने के बाद व्यवस्था पूरी हो गई और परमेश्वर तक पहुंचने की राह मसीह में होकर बन गई - न केवल यहूदियों के लिये वरन किसी भी धर्म - जाति - समाज - स्थान के दायरों से परे समस्त मानव जाति के लिये भी। उसके बाद चेले भी व्यवस्था का नहीं वरन मसीह में मिले अनुग्रह का पालन करने लगे, जो अपने आप में व्यवस्था का दिल से पालन करने के समान था।

व्यवस्था का उद्देश्य कभी उद्धार देना नहीं था, व्यवस्था परमेश्वर की पवित्रता और मनुष्यों की पापमय दशा को पहिचानने के लिये परमेश्वर द्वारा मनुष्यों को दिया गया एक पैमाना या नापने का ज़रिया है। "व्यवस्था का उद्देश्य" ब्लॉग के लेख में तीन उदाहरणों से इसी बात को साफ किया गया है कि व्यवस्था केवल समस्या की पहिचान करवाती है, व्यवस्था में समस्या का समाधान नहीं है। इसे एक और उदाहरण से समझिये - जैसे एक्स-रे, रक्त जांच आदि के द्वारा रोग की पहिचान होती है इलाज नहीं; जांच के नतीजों द्वारा इलाज निर्धारित होता है लेकिन करी गई जांच अपने आप में दवा या इलाज नहीं है, वैसे ही व्यवस्था के द्वारा हमारे पाप के रोग की पहिचन होती है, उसका इलाज नहीं। पाप का इलाज तो मसीह यीशु ही में है।

व्यवस्था हमें हमारी पापों में गिरी हुई दशा दिखाती है, लेकिन वह न तो हमें पाप करने से रोक पाती है और न किसी पापी को माफी देकर निष्पाप बना सकती है। व्यवस्था पाप के लिये पापी को सिर्फ सज़ा का हकदार बता सकती है। मनुष्य के हर पाप के लिये व्यवस्था के पास सिर्फ सज़ा है और सज़ा की दहशत है। इसलिये व्यवस्था पर बने रहने वाला मनुष्य परमेश्वर की आज्ञाकारिता परमेश्वर के लिये अपने प्रेम के अन्तर्गत नहीं वरन सज़ा से बचने के डर से करता रहता है।

व्यवस्था के साथ एक और मुश्किल यह है कि जो कोई व्यवस्था के साथ जीना चाहता है, वो अगर एक भी बात में गलती से भी चूक गया तो फिर वह पूरी व्यवस्था का दोषी और सज़ा का हकदार ठहरता है; जैसे साफ श्वेत चादर पर यदि एक छोटे भाग में ही कीचड़ का दाग़ क्यों न लग जाए, गन्दी पूरी चादर ही मानी जाती है। इसलिये सारी उम्र व्यवस्था का पालन करते रहो और आखिर में आकर किसी एक बात में चूक जाओ तो पिछला सारा हिसाब खत्म हो जाता है, सिर्फ सज़ा सामने रह जाती है।

एक और अहम बात समझने की आवश्यक्ता है - व्यवस्था में दी गई शिक्षाएं, विधियां और रीतियां आदि, सभी आने वाले उद्धारकर्ता अर्थात प्रभु यीशु मसीह के जीवन और कार्यों का पूर्वावलोकन था, एक इशारों में कही गई बात थी जिसे मसीह ने आकर स्पष्ट तथा सजीव किया। इसीलिये मसीह व्यवस्था की परिपूर्णता और सजीव स्वरूप है, और अब उस पुराने छाया समान स्वरूप, अर्थात विधियों की व्यवस्था के स्थान पर वह अपने सजीव और सदा विद्यमान स्वरूप को हमें पालन करने के लिये देता है। इसीलिये जो मसीह और मसीह की शिक्षाओं का पालन करते हैं वे व्यवस्था का भी पालन करते हैं। जो बात व्यवस्था अपने लिखित स्वरूप में करने में असमर्थ थी - अर्थात प्रेम, अनुग्रह और क्षमा; वह मसीह के सजीव स्वरूप में समर्थ हो गई। अब विधियों का लेख तो हमारे सामने से हट गया लेकिन परमेश्वर की व्यवस्था अपने सच्चे और खरे स्वरूप में अभी भी पालन के लिये विद्यमान है। अब उसमें अर्थात मसीह रूपी व्यवस्था में दण्ड की आज्ञा नहीं वरन प्रेम, अनुग्रह और क्षमा है, पाप की माफी है, पाप करने की प्रवृति पर विजयी हो पाने की सामर्थ देने की क्षमता है।


३. गलत है आपका कहना कि "इसीलिए पॉल की उनसे नहीं बनी और उसने अपने मत को अन्य जातियों के लिए आसान बनाने की खातिर व्यवस्था को निरस्त घोषित कर दिया। जिसका कि उन्हें कोई अधिकार न था।"

पूरी बाइबल परमेश्वर का वचन है, मसीह का वचन है - पौल (या पौलूस) द्वारा लिखी हुई किताबें भी। पूरी बाइबल में सबसे ज़्यादा किताबें पौल ही की लिखी हुई हैं और बाकी सभी किताबों की तरह पौल के लिखी किताबें भी परमेश्वर की आत्मा की प्रेरणा ही से लिखी गईं हैं। पौल ने कभी अपनी किसी किताब में व्यवस्था को अनुचित, बुरा या गलत नहीं बताया। पौल मसीह के आरंभिक चेलों में से नहीं था। पौल मसीही विश्वास में बाद में आया, पहले वो मसीहीयों के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द करके उन्हें सताने वाला यहूदी हुआ करता था, जो बड़ी कड़ाई से व्यवस्था का पालन करता था। एक बार जब वह स्वयं व्यवस्था के असली और सही उद्देश्य को मसीही विश्वास में आने के द्वारा पहिचान गया तो फिर उसके बाद उसने हमेशा व्यवस्था के इसी सही और सच्चे उद्देश्य को पहिचानने और मसीह में होकर संसार के हरेक पापी को मिलने वाले अनुग्रह, क्षमा और उद्धार की सच्चाई का बयान किया। मसीही विश्वास में आने के बाद भी उसने हमेशा व्यवस्था को पूरा आदर और सम्मान दिया। पौल ने व्यवस्था के उल्लंघन करने की नहीं वरन मसीह में होकर व्यवस्था के पालन ही की शिक्षा दी।

न तो पौल ने कभी कोई "अपना मत" चलाने की कोशिश करी और न ही उसने परमेश्वर से मिली शिक्षाओं को "अन्य जातियों के लिए आसान बनाने की खातिर व्यवस्था को निरस्त घोषित कर दिया"। उसने हमेशा मसीह ही को आगे रखा और उसके समय के मसीह के बाकी चेलों ने भी उसका साथ दिया, उसकी शिक्षाओं को माना, उनका समर्थन किया और उन्हें सही बताया। बाइबल में कहीं यह नहीं दर्शाया गया कि पौल ने कोई अलग मत स्थापित करने का प्रयास किया अथवा वह मसीह के अन्य चेलों से अलग चला हो या मसीह के अन्य चेलों ने उसे कभी गलत बताया हो।

किसी मनुष्य को यह अधिकार नहीं कि वो परमेश्वर की शिक्षाओं और उसकी किसी बात में कोई फेरबदल कर सके और उसकी बातों को "आसान" बनाने के लिये उनमें मिलावट कर सके। पौल की लिखी किताबों का परमेश्वर के वचन बाइबल में सम्मिलित होना ही इस बात का प्रमाण है कि उसकी द्वारा लिखित बातें और शिक्षाएं सही, जायज़ और परमेश्वर के मन के अनुसार हैं।

आशा है कि मैं व्यवस्था पालन को लेकर आपकी चिंताओं का निवारण करने में सफल रहा हूँ।

धन्यवाद,
रोज़ की रोटी

सोमवार, 7 मार्च 2011

व्यवस्था का उद्देश्य

व्यवस्था ने न कभी किसी का उद्धार किया है न कभी कर सकती है। परमेश्वर ने व्यवस्था हमें पाप से छुड़ाने के लिये नहीं वरन पाप का बोध कराने और पाप से उद्धार की हमारी आवश्यक्ता को हमपर प्रगट करने के लिये दिया। इसीलिये प्रेरित पौलुस व्यवस्था को "शिक्षक" की संज्ञा देता है।

सुसमाचार प्रचारक फ्रेड ब्राउन ने अपने एक अविस्मरणीय प्रचार में व्यवस्था के उद्देश्य की व्याख्या तीन उदाहरणों से करी। व्यवस्था के उद्देश्य के लिये उसने सबसे पहला उदाहरण दिया एक छोटे दर्पण का जिसका उपयोग दन्तचिकित्सक मुंह के अन्दर का हाल जानने के लिये करते हैं। उस दर्पण के माध्यम से वे दांतों की सड़ाहट और दांतों में हुए छेदों को देख सकते हैं, लेकिन वह दर्पण न तो सड़े दांत निकाल सकता है और न ही उनका कोई उपचार कर सकता है। दर्पण केवल व्याधि को दिखा सकता है, उसका उपचार नहीं कर सकता।

ब्राउन ने व्यवस्था के उद्देश्य के लिये दूसरा उदाहरण टॉर्च से दिया। यदि रात में घर का फ्यूज़ उड़ जाए और घर की बिजली चली जाने से अनधकार हो जाए तो अन्धकार में टॉर्च के सहारे आप फ्यूज़ बॉक्स तक पहुंच सकते हैं और उड़े हुए फ्यूज़ के तार को देख सकते हैं, लेकिन उस तार को निकाल कर आप उसकी जगह टॉर्च को नहीं लगा सकते; वहां तो आपको फ्यूज़ का नया तार ही लगाना पड़ेगा, तब ही घर फिर से रौशन हो सकेगा। टॉर्च समस्या दिखा सकती है, उसका समाधान नहीं कर सकती।

व्यवस्था के उद्देश्य के लिये तीसरा उदाहरण ब्राउन ने दिया उस सीध नापने वाली डोर से जिसका उपयोग राजमिस्त्री भवन बनाते समय दीवार की सीध देखने के लिये करते हैं। यह डोर दिखा तो सकती है कि दीवार सीधी बन रही है या नहीं, परन्तु यदि दीवार में कोई टेढ़ापन है तो डोर उसे दूर नहीं कर सकती; यह सुधारने का काम तो राजमिस्त्री को ही करना होता है।

दर्पण, टॉर्च और सीध नापने वाली डोर की तरह व्यवस्था भी समस्या, अर्थात पाप की पहचान करवाती है, किंतु वह समस्या का निवारण नहीं कर सकती। पाप की समस्या का निवारण तो केवल प्रभु यीशु मसीह में है, और वही एकमात्र उद्धारकर्ता है जिसने व्यव्स्था की हर बात को पूरा करके क्रूस अपने बलिदान द्वारा समस्त मानव जाति के लिये उद्धार का मार्ग खोल दिया और अब कोई भी उसपर सहज विश्वास द्वारा, बिना किसी रीति रिवाज़ों, कार्यों अथवा व्यवस्था के पालन की समस्या में उलझे, अपने पापों से मुक्ति और उद्धार पा सकता है। - डेव एगनर


व्यवस्था हमें हमारी वह आवश्यक्ता दिखाती है जिसे केवल परमेश्वर का अनुग्रह पूरी कर सकता है।

इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें। - गलतियों ३:२४


बाइबल पाठ: गलतियों ३:१९-२९

तब फिर व्यवस्था क्‍या रही? वह तो अपराधों के कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिस को प्रतिज्ञा दी गई थी, और वह स्‍वर्गदूतों के द्वारा एक मध्यस्थ के हाथ ठहराई गई।
मध्यस्थ तो एक का नहीं होता, परन्‍तु परमेश्वर एक ही है।
तो क्‍या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि न हो क्‍योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्था से होती।
परन्‍तु पवित्र शास्‍त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिये पूरी हो जाए।
पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्था की आधीनता में हमारी रखवाली होती थी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होने वाला था, हम उसी के बन्‍धन में रहे।
इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।
परन्‍तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिक्षक के आधीन न रहे।
क्‍योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्‍तान हो।
और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्‍होंने मसीह को पहिन लिया है।
अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्‍वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्‍योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।
और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३-४
  • मरकुस १०:३२-५२

रविवार, 6 मार्च 2011

व्यवस्था का पालन

नियम ही नियमों का उल्लंघन करने को उभारते हैं! किसी बच्चे से कहिये कि वह "उस रखी हुई मिठाई को न खाए" - क्या होगा? वह ललचाई नज़रों से उस मिठाई की ओर देखता रहेगा और फिर लालच में पड़कर मिठाई को खा ही लेगा। यदि उसे जता कर मना नहीं किया गया होता तो शायद वह कभी मिठाई की ओर देखता भी नहीं।

परमेश्वर के पवित्र नियमों के प्रति हमारा भी ऐसा ही बर्ताव होता है। जिन बातों से हमें बचाने के लिये ये नियम दिये गये, उन्हीं बातों को करने के लिये वे हमें उकसा देते हैं। यह इसलिये होता है क्योंकि "पाप और मृत्यु की व्यवस्था" (रोमियों ८:२) हमारे शरीरों में कार्य करती है। पौलुस कहता है कि "...बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता: व्यवस्था यदि न कहती, कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता। परन्‍तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्‍पन्न किया, क्‍योंकि बिना व्यवस्था के पाप मुर्दा है।" (रोमियों ७:७, ८) उस मनाही ने ही मन में सब प्रकार की बुराई को अवसर दिया। परमेश्वर की व्यवस्था तो भली है, पवित्र है, आत्मिक है परन्तु व्यवस्था आज्ञाकारी बनाने में असमर्थ है। व्यव्स्था सही मार्ग को बता तो सकती है, और बताती भी है; पर उस मार्ग पर चलने की सामर्थ नहीं दे सकती। और इसीलिए, मार्ग जानने के बाद भी मार्ग पर न चल पाने के कारण हम व्यवस्था के दोषी ठहरते हैं।

तो कैसे फिर हम परमेश्वर की व्यवस्था का पालन कर सकते हैं, यदि व्यवस्था ही हमें दोषी ठहरा देती है? - प्रभु यीशु मसीह में होकर जो हमें सामर्थ और स्वतंत्रता देता है "सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्‍ड की आज्ञा नहीं: क्‍योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं। क्‍योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्‍वतंत्र कर दिया।" (रोमियों ८:१, २)

इसे इस प्रकार समझिये - वायुयान गुरुत्वाकर्षण की व्यवस्था से बंधा ज़मीन पर रहता है। किंतु जब वह उड़नपट्टी पर वेग से चलना आरंभ करता है तो उसके एक गति को पार करने से वायु प्रवाह और उड़ान के नियमों कि व्यवस्था गुरुत्वाकर्षण के नियमों की व्यवस्था के ऊपर लागू हो जाते हैं और विमान उड़ने लगता है। जब तक वह वायु प्रवाह और उड़ान के नियमों के आधीन होकर उनका पालन करेगा, वह गुरुत्वाकर्षण के नियमों के ऊपर विजयी रहेगा, जैसे ही उड़ान के नियमों का उल्लंघन होगा, गुरुत्वाकर्षण के नियम उसे फिर पृथ्वी पर ले आएंगे। इसी प्रकार जब हम मसीह की आधीनता में हो जाते हैं वह हमें अपने आत्मा द्वारा सामर्थ देता है कि हम पाप और मृत्यु की व्यवस्था के ऊपर जयवंत हो सकें "पर मैं कहता हूं, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे। क्‍योंकि शरीर आत्मा के विरोध में लालसा करती है, और ये एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिये कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ। और यदि तुम आत्मा के चलाए चलते हो तो व्यवस्था के आधीन न रहे।" (गलतियों ५:१६-१८)

क्‍योंकि परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है। - डेनिस डी हॉन


पाप और मृत्यु की व्यवस्था के अंधेरे में भटकने वालों को प्रभु का अनुग्रह जीवन की ज्योति में ले चलता है।

क्‍योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्‍वतंत्र कर दिया। - रोमियों ८:२


बाइबल पाठ: रोमियों ८:१-११

सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्‍ड की आज्ञा नहीं: क्‍योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं।
क्‍योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्‍वतंत्र कर दिया।
क्‍योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण र्दुबल होकर न कर सकी, उस को परमेश्वर ने किया, अर्थात अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिये भेजकर, शरीर में पाप पर दण्‍ड की आज्ञा दी।
इसलिये कि व्यवस्था की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए।
क्‍योंकि शरीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं परन्‍तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं।
शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्‍तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्‍ति है।
क्‍योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्‍योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है।
और जो शारीरिक दशा में है, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।
परन्‍तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्‍तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं।
और यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्‍तु आत्मा धर्म के कारण जीवित है।
और यदि उसी का आत्मा जिस ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरणहार देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण १-२
  • मरकुस १०:१-३१

शनिवार, 5 मार्च 2011

व्यवस्था की समस्या

अमेरिका के आयकर विभाग में २५ वर्ष से कार्यरत एक अधिकारी को अपने आयकर की चोरी करने के लिये पकड़ा गया। जब यह खबर फैली, लगभग उसी समय समाचार पत्रों में एक और खबर भी प्रमुख रूप से प्रकाशित हुई - अपराधी मामलों का न्याय करने वाले कुछ न्यायाधिशों के अनैतिक चालचलन और बेईमानियों के बारे में। समाचार पत्रों ने समाज के समक्ष सवाल उठाया "न्यायियों का न्याय कौन करेगा?"

व्यवस्था और नियमों से भली भांति अवगत लोगों द्वारा व्यवस्था और नियमों का उल्लंघन केवल आयकर विभाग के अधिकारियों और न्यायाधीशों तक ही सीमित नहीं है। एक ऐसी भी व्यवस्था है जिसका उल्लंघन प्रत्येक व्यक्ति ने किया है - परमेश्वर की व्यवस्था। लेकिन इससे भी गंभीर बात यह है कि कुछ स्वधर्मी लोग परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले होकर के भी उसका पालन करने के अपने अनुचित दावे में घमंड करते हैं। बिना शक, जिस व्यवस्था का पालन करने का वे दावा करते हैं, वही व्यवस्था उन्हें दोषी ठहराती है, उनके असली चेहरे को दिखाती है। परमेश्वर की व्यवस्था प्रत्येक स्वधर्मी घमंडी को उसकी वास्तविक्ता - व्यवस्था का उल्लंघन करने वाला के रूप में दिखा देती है। व्यवस्था की समस्या यही है कि व्यवस्था के नियमों के पालन में एक भी नियम की चूक या उल्लंघन से मनुष्य सारी व्यवस्था का दोषी ठहरता है "सो जितने लोग व्यवस्था के कामों पर भरोसा रखते हैं, वे सब श्राप के आधीन हैं, क्‍योंकि लिखा है, कि जो कोई व्यवस्था की पुस्‍तक में लिखी हुई सब बातों के करने में स्थिर नहीं रहता, वह श्रापित है।" (गलतियों ३:१०) "क्‍योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्‍तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों मे दोषी ठहरा।" (याकूब २:१०)

रोमियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस स्पष्ट करता है कि व्यवस्था का उद्देश्य धर्मी ठहराना नहीं वरन परमेश्वर की पवित्रता का ज्ञान कराना और उस पवित्रता का मापदंड हमारे सामने रखना है जिससे हम पाप की पहचान कर सकें "क्‍योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।" (रोमियों ३:२०) व्यवस्था इसलिये दी गई कि हमारी शिक्षक बन कर हमें मसीह के विश्वास तक लाए "पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्था की अधीनता में हमारी रखवाली होती थी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होने वाला था, हम उसी के बन्‍धन में रहे। इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।" (गलतियों ३:२३, २४)

परमेश्वर की व्यवस्था का उपयोग कभी स्वधार्मिकता का घमंड संसार के समक्ष बघारने के लिये नहीं किया जाना चाहिये, वरन व्यवस्था का सही उपयोग है कि उसके सम्मुख अपने आप को रखकर हम अपनी पापमय दशा को पहचान सकें और जान सकें कि परमेश्वर की दया और अनुग्रह की हमें कितनी अधिक आवश्यक्ता है। जब हम अपनी स्वधार्मिकता पर नहीं वरन परमेश्वर की दया और अनुग्रह पर आधारित जीवन जीना आरंभ करेंगे, तब ही व्यवस्था की समस्या से मुक्ति पा सकेंगे "परन्‍तु जिस के बन्‍धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं।" (रोमियों ७:६) - मार्ट डी हॉन


मसीह यीशु में प्रत्येक जन व्यवस्था की समस्या का समाधान पा सकता है।

तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्‍ड करता है, क्‍या व्यवस्था न मानकर, परमेश्वर का अनादर करता है? - रोमियों २:२३


बाइबल पाठ: रोमियों ७:१-६

हे भाइयो, क्‍या तुम नहीं जानते, मैं व्यवस्था के जानने वालों से कहता हूं, कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तक तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?
क्‍योंकि विवाहिता स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उस से बन्‍धी है, परन्‍तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई।
सो यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्‍तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्था से छूट गई, यहां तक कि यदि किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तौभी व्यभिचारिणी न ठहरेगी।
सो हे मेरे भाइयो, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्वर के लिये फल लाएं।
क्‍योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषायें जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्‍पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं।
परन्‍तु जिस के बन्‍धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं।

एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३४-३६
  • मरकुस ९:३०-५०