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शुक्रवार, 4 मार्च 2011

स्वतंत्र कैसे हों?

हर कोई स्वतंत्रता चाहता है, लेकिन स्वतंत्रता के प्रयत्न कभी कभी बन्धनों में बांध देते हैं। बाइबल शिक्षिका हेन्रियेटा मीयरस सच्ची स्वतंत्रता का भेद जानती थीं। उन्होंने कहा, "पक्षी आकाश में स्वतंत्र है, लेकिन उसी पक्षी को आप पानी में डाल दीजिए और वह अपनी स्वतंत्रता खो देगा। इसी प्रकार एक मसीही विश्वासी भी जब तक परमेश्वर की आज्ञाकरिता में जीता है और परमेश्वर की इच्छा पूरी करता रहता है, स्वतंत्र है। यह परमेश्वर समर्पण का जीवन परमेश्वर की सन्तानों के लिये वैसे ही स्वभाविक है जैसे मछली के लिये जल और पक्षी के लिये आकाश में रहने का जीवन।"

बुद्धिमान राजा सुलेमान ने अपने पुत्र को समझाने के लिये उसे उपदेश दिया कि सच्ची स्वतंत्रता केवल परमेश्वर पर केंद्रित जीवन रीति द्वारा ही संभव है, क्योंकि परमेश्वर ने इसी के लिये ही हमारी सृष्टि करी है। इसकी तुलना में, जो कोई परमेश्वर के इस सत्य के विमुख चलता है, वह अवश्य ही बन्धुवाई में पड़ता है। नीतिवचन का १६वां अध्याय वर्णन करता है उस स्वतंत्रता और सन्तुष्टि का जो नम्रता, विश्वास, आत्म संयम और अच्छे बोल-चाल का पालन करने से मिलती है। साथ ही यह अध्याय चेतावनी भी देता है उस अवश्यंभावी बन्धुवाई के विष्य में जो उन लोगों के जीवन में आ जाती है जो विद्रोह, घमंड, बैर, द्वेष और दूसरों के लिये जानबूझ कर परेशानी खड़ी करने वालों को मिलती है।

बाइबल का नया नियम हमें प्रभु यीशु से परिचय करवाता है - हमारी स्वतंत्रता का एकमात्र आधार। हमारे उस सृष्टिकर्ता और उद्धारकर्ता ने कहा, "...यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्‍वतंत्र करेगा।" (यूहन्ना ८:३१, ३२)

सत्य को जानिये, सत्य ही आपको स्वतंत्र करेगा। - मार्ट डी हॉन


सच्ची स्वतंत्रता अपनी मनमर्ज़ी करने में नहीं वरन परमेश्वर की मर्ज़ी करने में है।

दुष्ट अपने ही अधर्म के कर्मों से फंसेगा, और अपने ही पाप के बन्धनों में बन्धा रहेगा। - नीतिवचन ५:२२

बाइबल पाठ: नीतिवचन १६:१६-३३
बुद्धि की प्राप्ति चोखे सोने से क्या ही उत्तम है! और समझ की प्राप्ति चान्दी से अति योग्य है।
बुराई से हटना सीधे लोगों के लिये राजमार्ग है, जो अपने चालचलन की चौकसी करता, वह अपने प्राण की भी रक्षा करता है।
विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है।
घमण्डियों के संग लूट बांट लने से, दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है।
जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है, और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है।
जिसके ह्रृदय में बुद्धि है, वह समझ वाला कहलाता है, और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है।
जिसके बुद्धि है, उसके लिये वह जीवन का सोता है, परन्तु मूढ़ों को शिक्षा देना मूढ़ता ही होती है।
बुद्धिमान का मन उसके मुंह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है।
मनभावने वचन मधु भरे छते की नाईं प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं।
ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।
परिश्रमी की लालसा उसके लिये परिश्रम करती है, उसकी भूख तो उसको उभारती रहती है।
अधर्मी मनुष्य बुराई की युक्ति निकालता है, और उसके वचनों से आग लगा जाती है।
टेढ़ा मनुष्य बहुत झगड़े को उठाता है, और कानाफूसी करने वाला परम मित्रों में भी फूट करा देता है।
उपद्रवी मनुष्य अपने पड़ोसी को फुसला कर कुमार्ग पर चलाता है।
आंख मूंदने वाला छल की कल्पनाएं करता है, और ओंठ दबाने वाला बुराई करता है।
पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।
विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर के जीत लेने से उत्तम है।
चिट्ठी डाली जाती तो है, परन्तु उसका निकलना यहोवा ही की ओर से होता है।

एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३१-३३
  • मरकुस ९:१-२९

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