ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 24 जून 2011

ठहराव

जब पतझड़ की ऋतु आती है और मेरे पड़ौस के स्थान में स्थित पेड़ों के पते गिरने लगते हैं तो अपनी खिड़की से मुझे एक दुखद दृश्य दिखाई देने लगता है - एक खंडहर होता मकान जो चारों ओर जंगली घास और झाड़ियों से घिरा हुआ है। उसके निर्माण करने वालों के मन में हर प्रकार की सुविधाओं और संसाधनों से युक्त एक आलीशान स्वास्थ्य क्लब बनाने की इच्छा थी, और इसी के अनुसार कार्य भी आरंभ हुआ। लेकिन कुछ समय में निर्माण के कार्य में कुछ बाधाएं आ गईं, कार्य रुक गया फिर और कुछ समय पश्चात उन्होंने इस योजना को समाप्त कर दिया। अब वह अधूरी इमारत खंडर बनती जा रही है और देकने वालों को इस बात का स्मर्ण दिलाती है कि जो उत्तम हो सकता था वह अधूरा और व्यर्थ रह गया।

एक तरह से कुछ ऐसी ही दुखदायी परिस्थित से बचने की चेतावनी इब्रानियों का लेखक अपने पाठकों को पुस्तक के पाँचवें अध्याय में दे रहा है - चेतावनी जिसे प्रत्येक मसीही विश्वासी को गंभीरता से लेना चाहिए। लेखक कह रहा है कि हमारे जीवनों में पापों से पश्चाताप और उद्धार की नींव पड़ जाने के बाद ठहराव नहीं आ जाना चाहिए वरन हमें अपने विश्वास की उस परिपक्वता तक पहुँचने के प्रयास में लगा रहना चाहिए जो हमारे विश्वास के सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने हमारे लिए निर्धारित किया है - एक ऐसा जीवन जो संसार के सामने उस पर किए गए विश्वास की उत्तमता और परिणामतः प्राप्त श्रेष्ठ प्रतिफलों को प्रकट करे और परमेश्वर को महिमा दे। इस ध्येय को प्राप्त करने के लिए जो भी आवश्यकताएं और साधन चाहिएं जैसे समय, वचन की शिक्षा और अध्ययन, सामर्थ, संगति आदि, वह सब उसने हमारे लिए न केवल उपल्ब्ध करा दिए हैं परन्तु समयनुसार उपलब्ध करवाता भी रहेगा। इसलिए जब कठिनाईयाँ आएं या प्रलोभन हमें कार्य से दूर खींचें तो हमें एक दृढ़ निश्चय के साथ इन भटकाने वाली बातों का इन्कार करके अपने निर्धारित कार्य को पूरा करने में पूरे यत्न सहित जुटे रहना है; कार्य में कभी ठहराव नहीं आना चाहिए।

परमेश्वर ने हमें चुना है "कि हम उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों" (इफिसियों १:४)। हमारे जीवनों में इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए परमेश्वर ने हमें अपना पवित्र वचन और अपना पवित्र आत्मा दिया है जो हम में निवास करता है। अब इन साधनों का सदुपयोग करना और अपने मसीही विश्वास के जीवनों को नई ऊँचाईयों तक पहुँचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। - डेव ब्रैनन


परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी न होने दें वरन परमेश्वर प्रदित संसाधनों द्वारा परिस्थितियों को वश में करके सिद्धता की ओर बढ़ते जाएं।

इसलिये आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़ कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएं... - इब्रानियों ६:१


बाइबल पाठ: इब्रानियों ५:१२-६:३

Heb 5:12 समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्‍या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए? और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए।
Heb 5:13 क्‍योंकि दूध पीने वाले बच्‍चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्‍योंकि वह बालक है।
Heb 5:14 पर अन्न सयानों के लिये है, जिन के ज्ञानेन्‍द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।
Heb 6:1 इसलिये आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़ कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने।
Heb 6:2 और बपतिस्मों और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अन्‍तिम न्याय की शिक्षा रूपी नेव, फिर से न डालें।
Heb 6:3 और यदि परमेश्वर चाहे, तो हम यहीं करेंगे।

एक साल में बाइबल:
  • अय्युब १, २
  • प्रेरितों ७:२२-४३

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें