ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

सही नज़रिया

कभी कभी हमारे अपने दोष और कमियाँ हमें दूसरों में ऐसे दोष और कमियाँ दिखाते हैं जो वास्तव में होते नहीं हैं। एक औरत हमेशा अपने घर आने जाने वालों से अपनी पड़ौसन की गन्दी खिड़कियों के बारे में बातें करती थी। एक दिन एक मेहमान ने उसे सलाह दी कि क्यों नहीं वह अपनी खिड़कियाँ धो कर देखे। उस औरत ने अपने मेहमान की बात मान ली और ऐसा ही किया, और फिर विसमय से बोली, "मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा, जैसे ही मैंने अपनी खिड़कियाँ धोईं, लगता है साथ ही पड़ौसन ने भी अपनी खिड़कियाँ धो लीं; देखो तो उसकी खिड़कियाँ कैसी चमक रही हैं!

आलोचना की प्रवृति दूसरों द्वारा किए जा रहे भले कार्यों के प्रति हमें अन्धा बना देती है। एक आदमी ने शहर के मुख्य चौक में पानी पीने के लिए स्थान का निर्माण करवाया। उस स्थान को देखकर शहर के कला समीक्षक ने उस निर्माण की वस्तुकला की आलोचना करी। निर्माण करवाने वाले आदमी को इस आलोचना से दुख हुआ, लेकिन उसने उससे केवल एक ही प्रश्न पूछा, "क्या जिस उद्देश्य के लिए यह बनाया गया है, वह पूरा हुआ है कि नहीं?" अब उत्तर सुनकर उसके प्रसन्न होने की बारी थी क्योंकि वह स्थान शहर के लोगों को बहुत लाभ पहुँचा रहा था और उनकी प्यास बुझा रहा था। कला समीक्षक ने निर्मित स्थान की कला को तो परखा किन्तु उपयोगिता की ओर ध्यान नहीं दिया, जबकि महत्व उपयोगिता का था, कला का नहीं।

प्रभु यीशु ने अपने चेलों को चिताया, "दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए" (मत्ती ७:१)। प्रभु भोज मे सम्मिलित होने से पहले के लिए भी परमेश्वर की चेतावनी है कि "इसलिये मनुष्य अपने आप को जांच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए" (१ कुरिन्थियों ११:२८)। प्रभु के विश्वासियों से प्रभु का आत्मा कहता है, "अपने प्राण को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं? अपने आप को जांचो, क्‍या तुम अपने विषय में यह नहीं जानते, कि यीशु मसीह तुम में है? नहीं तो तुम निकम्मे निकले हो" (२ कुरिन्थियों १३:५)।

दूसरों की गलतियाँ ढूंढना बहुत आसान है, परन्तु अपनी गलतियाँ पहिचानने के लिए अपने अन्दर झाँकना होता है और संसार के मापदण्ड को नहीं परमेश्वर के मापदण्ड - परमेश्वर के वचन को उपयोग करना पड़ता है। परमेश्वर का वचन ही हमें वह सही नज़रिया प्रदान कर सकता है जिससे हम दूसरों के आलोचक बनने की बजाए स्व्यं अपने आप को जांचने वाले और अपनी गलतियों को पहचान कर उन्हें सुधारने वाले बन सकते हैं, जो परमेश्वर हम से चाहता है।


जब कभी आलोचना करने का मन हो तो ध्यान रखिए कि परमेश्वर सुन रहा है।

व्यवस्था देने वाला और हाकिम तो एक ही है, जिसे बचाने और नाश करने की सामर्थ है? तू कौन है, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है? - याकूब ४:१२


बाइबल पाठ: लूका ६:३७-४२

Luk 6:37 दोष मत लगाओ, तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: क्षमा करो, तो तुम्हारी भी क्षमा की जाएगी।
Luk 6:38 दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्‍योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।
Luk 6:39 फिर उस ने उन से एक दृष्‍टान्‍त कहा; क्‍या अन्‍धा, अन्‍धे को मार्ग बता सकता है? क्‍या दोनो गड़हे में नहीं गिरेंगे?
Luk 6:40 चेला अपने गुरू से बड़ा नहीं, परन्‍तु जो कोई सिद्ध होगा, वह अपने गुरू के समान होगा।
Luk 6:41 तू अपने भाई की आंख के तिनके को क्‍यों देखता है, और अपनी ही आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता?
Luk 6:42 और जब तू अपनी ही आंख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से क्‍योंकर कह सकता है, हे भाई, ठहर जा तेरी आंख से तिनके को निकाल दूं? हे कपटी, पहिले अपनी आंख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आंख में है, भली भांति देखकर निकाल सकेगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६०-६२
  • रोमियों ५

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें