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सोमवार, 7 मार्च 2011

व्यवस्था का उद्देश्य

व्यवस्था ने न कभी किसी का उद्धार किया है न कभी कर सकती है। परमेश्वर ने व्यवस्था हमें पाप से छुड़ाने के लिये नहीं वरन पाप का बोध कराने और पाप से उद्धार की हमारी आवश्यक्ता को हमपर प्रगट करने के लिये दिया। इसीलिये प्रेरित पौलुस व्यवस्था को "शिक्षक" की संज्ञा देता है।

सुसमाचार प्रचारक फ्रेड ब्राउन ने अपने एक अविस्मरणीय प्रचार में व्यवस्था के उद्देश्य की व्याख्या तीन उदाहरणों से करी। व्यवस्था के उद्देश्य के लिये उसने सबसे पहला उदाहरण दिया एक छोटे दर्पण का जिसका उपयोग दन्तचिकित्सक मुंह के अन्दर का हाल जानने के लिये करते हैं। उस दर्पण के माध्यम से वे दांतों की सड़ाहट और दांतों में हुए छेदों को देख सकते हैं, लेकिन वह दर्पण न तो सड़े दांत निकाल सकता है और न ही उनका कोई उपचार कर सकता है। दर्पण केवल व्याधि को दिखा सकता है, उसका उपचार नहीं कर सकता।

ब्राउन ने व्यवस्था के उद्देश्य के लिये दूसरा उदाहरण टॉर्च से दिया। यदि रात में घर का फ्यूज़ उड़ जाए और घर की बिजली चली जाने से अनधकार हो जाए तो अन्धकार में टॉर्च के सहारे आप फ्यूज़ बॉक्स तक पहुंच सकते हैं और उड़े हुए फ्यूज़ के तार को देख सकते हैं, लेकिन उस तार को निकाल कर आप उसकी जगह टॉर्च को नहीं लगा सकते; वहां तो आपको फ्यूज़ का नया तार ही लगाना पड़ेगा, तब ही घर फिर से रौशन हो सकेगा। टॉर्च समस्या दिखा सकती है, उसका समाधान नहीं कर सकती।

व्यवस्था के उद्देश्य के लिये तीसरा उदाहरण ब्राउन ने दिया उस सीध नापने वाली डोर से जिसका उपयोग राजमिस्त्री भवन बनाते समय दीवार की सीध देखने के लिये करते हैं। यह डोर दिखा तो सकती है कि दीवार सीधी बन रही है या नहीं, परन्तु यदि दीवार में कोई टेढ़ापन है तो डोर उसे दूर नहीं कर सकती; यह सुधारने का काम तो राजमिस्त्री को ही करना होता है।

दर्पण, टॉर्च और सीध नापने वाली डोर की तरह व्यवस्था भी समस्या, अर्थात पाप की पहचान करवाती है, किंतु वह समस्या का निवारण नहीं कर सकती। पाप की समस्या का निवारण तो केवल प्रभु यीशु मसीह में है, और वही एकमात्र उद्धारकर्ता है जिसने व्यव्स्था की हर बात को पूरा करके क्रूस अपने बलिदान द्वारा समस्त मानव जाति के लिये उद्धार का मार्ग खोल दिया और अब कोई भी उसपर सहज विश्वास द्वारा, बिना किसी रीति रिवाज़ों, कार्यों अथवा व्यवस्था के पालन की समस्या में उलझे, अपने पापों से मुक्ति और उद्धार पा सकता है। - डेव एगनर


व्यवस्था हमें हमारी वह आवश्यक्ता दिखाती है जिसे केवल परमेश्वर का अनुग्रह पूरी कर सकता है।

इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें। - गलतियों ३:२४


बाइबल पाठ: गलतियों ३:१९-२९

तब फिर व्यवस्था क्‍या रही? वह तो अपराधों के कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिस को प्रतिज्ञा दी गई थी, और वह स्‍वर्गदूतों के द्वारा एक मध्यस्थ के हाथ ठहराई गई।
मध्यस्थ तो एक का नहीं होता, परन्‍तु परमेश्वर एक ही है।
तो क्‍या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि न हो क्‍योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्था से होती।
परन्‍तु पवित्र शास्‍त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिये पूरी हो जाए।
पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्था की आधीनता में हमारी रखवाली होती थी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होने वाला था, हम उसी के बन्‍धन में रहे।
इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।
परन्‍तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिक्षक के आधीन न रहे।
क्‍योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्‍तान हो।
और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्‍होंने मसीह को पहिन लिया है।
अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्‍वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्‍योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।
और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३-४
  • मरकुस १०:३२-५२