ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

अर्थपूर्ण प्रार्थनाएं

   मेरा एक मित्र अपने छोटे बेटे को लेकर होटल में गया। वहां उसने अपने बेटे को अपने साथ की कुर्सी पर बैठाया और भोजन का ऑर्डर दिया। जब खाना परोसा गया तो पिता ने कहा, "बेटा हम खाने से पहले, भोजन के लिए खामोशी से धन्यवाद की प्रार्थना कर लेते हैं" और पिता ने शांत रूप से अपनी प्रार्थना कर ली, बेटा सर झुकाए और आंखें बन्द किए बैठा रहा। कुछ समय तक बेटे की प्रार्थना समाप्त होने का इन्तज़ार करने के बाद, पिता ने पूछा, "इतनी लम्बी प्रार्थना किस बात के लिए कर रहे हो?" बेटे ने उत्तर दिया, "मुझे क्या पता, मैं तो खामोश था!"

   बहुत बार हमारी प्रार्थनाएं ऐसी ही होती हैं - हम प्रार्थना में तो होते हैं लेकिन प्रभु से कुछ कहते नहीं हैं; क्योंकि हम केवल शब्द दोहराते हैं लेकिन उन शब्दों में कोई गंभीरता या आग्रह नहीं होता। जो प्रार्थना प्रभु हम से चाहता है वह गंभीर और हृदय से निकलने वाली होनी चाहिए, जो पवित्र आत्मा की प्रेर्णा से करी गई और प्रभु यीशु के नाम से परमेश्वर को अर्पित करी गईं हों। ऐसी ही प्रार्थनाओं के लिए प्रेरित पौलुस लिखता है कि, "तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी" (फिलिप्पियों ४:७)।

   हमें प्रार्थना के महत्व और गंभीरता को समझना चाहिए। प्रार्थना करने का अर्थ केवल आँखें बन्द करके, सर झुका के कुछ शब्दों को दोहरा लेना नहीं होता। परमेश्वर के सम्मुख हमारे आग्रह परमेश्वर के वचन के अनुकूल होने चाहिएं और सच्चे मन से आने चाहिएं, तभी वे अर्थपूर्ण प्रार्थनाएं होंगी और हम उनके नतीजे देखने पाएंगे। - पौल वैन गोर्डर


अर्थपूर्ण प्रार्थना सच्चे मन से होती है, सुन्दर शब्दों से नहीं।

किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्‍तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। - फिलिप्पियों ४:६
 
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों ४:१-७
    Php 4:1  इसलिये हे मेरे प्रिय भाइयों, जिन में मेरा जी लगा रहता है जो मेरे आनन्‍द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयो, प्रभु में इसी प्रकार स्थिर रहो।
    Php 4:2  मैं यूआदिया को भी समझाता हूं, और सुन्‍तुखे को भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें।
    Php 4:3  और हे सच्‍चे सहकर्मी मैं तुझ से भी बिनती करता हूं, कि तू उन स्‍त्रियों की सहयता कर, क्‍योंकि उन्‍होंने मेरे साथ सुसमाचार फैलाने में, क्‍लेमेंस और मेरे उन और सहकिर्मयों समेत परिश्रम किया, जिन के नाम जीवन की पुस्‍तक में लिखे हुए हैं।
    Php 4:4  प्रभु में सदा आनन्‍दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्‍दित रहो।
    Php 4:5  तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है।
    Php 4:6  किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्‍तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं।
    Php 4:7  तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।
 
एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह ३-४ 
  • गलतियों ६