ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 12 नवंबर 2012

अनुयायी


   १७वीं शताब्दी के क्वेकर मत के एक अगुवे आईज़क पेनिंगटन ने कहा, "प्रभु मुझे उस पर निर्भर होकर जीना सिखा रहा है - उससे प्राप्त हो सकने वाली वस्तुओं पर नहीं वरन उसके जीवन पर।" परमेश्वर के वचन बाइबल में यूहन्ना ६ अध्याय में हम ऐसे लोगों को देखते हैं जो प्रभु यीशु से बहुत लगाव दिखाते हैं, क्योंकि उन्हें लगा कि प्रभु के साथ रहकर उन्हें मुफ्त में भोजन मिलता रहेगा। वे प्रभु यीशु को नहीं वरन प्रभु यीशु से मिल सकने वाली पार्थिव आवश्यक्ताओं की पूर्ति को चाहते थे; उनके मन प्रभु यीशु पर नहीं वरन उसकी सामर्थ से संभव स्वार्थ-सिद्धी पर लगे हुए थे।

   प्रभु यीशु ने एक आश्चर्यकर्म करके उन्हें मछली और रोटी खिलाई थी, और उन्हें निश्चय हो गया था कि प्रभु उनके लिए अपनी इस विलक्षण सामर्थ से बहुत कुछ कर सकता है और वे उसे अपना राजा बनाने का विचार करने लगे। प्रभु यीशु भी उनकी मनसा जान गया था इसलिए वह उन से अलग होकर एकांत में चला गया (यूहन्ना ६:१४-१५)। अगले दिन लोग उसे ढूंढते हुए आए और उसके साथ रहने की इच्छा दिखाने लगे, लेकिन प्रभु यीशु ने उनकी मुफ्तख़ोरी के जीवन जीने की मनसाओं पर पानी फेरते हुए उनके सामने अपने आप को जीवन की रोटी और अनन्त जीवन के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया और उनसे अपने प्रति समर्पण को रखा। समर्पित जीवन की बात सुनकर बहुतेरे जो उसके अनुयायी होने का दावा कर रहे थे, उसे छोड़कर चले गए।

   प्रभु यीशु के पीछे अवश्य चलें, उसके अनुयायी अवश्य बने, किंतु सही मनसा और दृष्टीकोण के साथ। इसलिए नहीं क्योंकि उसमें आपकी पार्थिव आवश्यक्ताओं को पूरा करने की सामर्थ है, वरन इसलिए क्योंकि पापों की क्षमा और अनन्त जीवन उसी में है। - मार्विन विलियम्स


यदि आपने मसीह को समर्पण करके उसे भरपूरी से अपने जीवन में स्थान दिया है, तो स्वतः ही मसीह की भरपूरी भी आपके जीवन में बनी रहेगी।

यीशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, तुम मुझे इसलिये नहीं ढूंढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्‍तु इसलिये कि तुम रोटियां खाकर तृप्‍त हुए। - यूहन्ना ६:२६

बाइबल पाठ: यूहन्ना ६:२५-३६
Joh 6:25  और झील के पार उस से मिल कर कहा, हे रब्‍बी, तू यहां कब आया? 
Joh 6:26  यीशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, तुम मुझे इसलिये नहीं ढूंढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्‍तु इसलिये कि तुम रोटियां खाकर तृप्‍त हुए। 
Joh 6:27  नाशमान भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्‍तु उस भोजन के लिये जो अनन्‍त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्‍योंकि पिता, अर्थात परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है। 
Joh 6:28  उन्‍होंने उस से कहा, परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्‍या करें?
Joh 6:29  यीशु ने उन्‍हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो। 
Joh 6:30  तब उन्‍होंने उस से कहा, फिर तू कौन का चिन्‍ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तेरी प्रतीति करें, तू कौन सा काम दिखाता है? 
Joh 6:31  हमारे बापदादों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है, कि उस ने उन्‍हें खाने के लिये स्‍वर्ग से रोटी दी। 
Joh 6:32  यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्‍वर्ग से न दी, परन्‍तु मेरा पिता तुम्हें सच्‍ची रोटी स्‍वर्ग से देता है। 
Joh 6:33  क्‍योंकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्‍वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है। 
Joh 6:34  तब उन्‍होंने उस से कहा, हे प्रभु, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर। 
Joh 6:35   यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। 
Joh 6:36  परन्‍तु मैं ने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते।

एक साल में बाइबल: 
  • यर्मियाह ५१-५२ 
  • इब्रानियों ९

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें