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सोमवार, 22 जुलाई 2013

सर्वोत्तम तर्क

   मुझे एक आठ घंटे लंबी रेल यात्रा करनी थी, और संयोग से मेरे साथ वाली सीट पर एक सेवा-निवृत अमेरीकी राजदूत बैठा हुआ था। यात्रा के समय पढ़ने के लिए जैसे ही मैंने अपनी बाइबल निकाली, उसने एक लंबी ठंडी साँस ली, और वहीं से हमारी तकरार आरंभ हो गई। पहले तो हम आपस में एक दूसरे पर उत्तर-प्रत्युत्तर द्वारा ताने कसते रहे, लेकिन धीरे धीरे इस टीका-टिपण्णी और बातचीत में हमारे अपने अपने जीवन के अंश तथा व्यक्तिगत अनुभव भी सम्मिलित होने लगे और हमारा वार्तालाप ताने मारने से हटकर चर्चा करने की ओर मुड़ गया। फिर एक दूसरे के कार्य जीवन तथा संबंधित अनुभवों की जिज्ञासा के कारण हम एक दूसरे के कार्य के बारे में सवाल-जवाब करने लगे - वह राजनीति शास्त्र का अनुभवी और दो महत्वपूर्ण स्थानों पर राजदूत का पद संभाल चुका विद्वान था और मैं राजनीति में हलकी-फुलकी शौकिया रुचि रखने वाला साधारण सा व्यक्ति।

   फिर हमारी बात एक दूसरे के व्यक्तिगत जीवन और अनुभवों की ओर मुड़ी और हम एक दूसरे के बारे में और अधिक जानने का प्रयास करने लगे। मैंने देखा कि उसकी रुचि मेरे जीवन में कम किंतु मेरे मसीही विश्वास में अधिक थी; उसकी सबसे बड़ी जिज्ञासा थी यह जानना कि मैं एक मसीही विश्वासी कैसे बना। तानेबाज़ी से आरंभ हुआ यह वार्तालाप रेल यात्रा समाप्त होते समय मित्रभाव के साथ अन्त हुआ और हमने विदा होते समय एक दूसरे के साथ अपने परिचय कार्ड भी अदला-बदली किए। जाते जाते वह मेरी ओर मुड़कर बोला, "आपके तर्क और बातचीत का सब से उत्त्म भाग यह नहीं है कि मसीह यीशु मेरे लिए क्या कर सकता है, वरन यह कि उसने आपके लिए और आपके जीवन में क्या किया है।"

   उस राजनितिज्ञ की यह बात बहुत सार्थक है, शायद वह जानता भी नहीं था कि उसकी यह बात परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार भी है - हमारे मसीही विश्वास की हमारी गवाही ही हमें पाप तथा शैतान की बातों पर जयवन्त करती है (प्रकाशितवाक्य 12:11) और हमें हमारे उद्धाकर्ता प्रभु के लिए प्रभावी बनाती हैं। हमारे मसीही जीवन की सबसे प्रभावी बात हमारा बाइबल ज्ञान नहीं वरन प्रभु यीशु के साथ हुआ हमारा साक्षात्कार और उसके फलस्वरूप हमारे जीवन में आया परिवर्तन है। यह वह अनुभव है जिसे किसी को हमें सिखाने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि हम से अधिक इस के बारे में कोई नहीं जानता और आपके जीवन परिवर्तन का तर्क ही आपका सबसे प्रभावी तर्क है, क्योंकि उसका किसी रीति से इन्कार हो ही नहीं सकता।

   क्या आप एक मसीही विश्वासी हैं, और अपने उद्धारकर्ता प्रभु के लिए उपयोगी तथा प्रभावी होना चाहते हैं? अपने जीवन की गवाही बाँटना, अर्थात, मसीह यीशु द्वारा आपके जीवन में किए गए कार्यों का बयान करना आरंभ कर दीजिए। परिणाम आपको भी अचंभित कर देंगे। - रैन्डी किल्गोर


लोग विश्वास की सच्ची कहानियों को पहचानना जानते हैं और पहचानते भी हैं।

और वे मेम्ने के लोहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्‍त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली। - प्रकाशितवाक्य 12:11 

बाइबल पाठ: मरकुस 5:1-20
Mark 5:1 और वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुंचे।
Mark 5:2 और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिस में अशुद्ध आत्मा थी कब्रों से निकल कर उसे मिला।
Mark 5:3 वह कब्रों में रहा करता था। और कोई उसे सांकलों से भी न बान्‍ध सकता था।
Mark 5:4 क्योंकि वह बार बार बेडिय़ों और सांकलों से बान्‍धा गया था, पर उसने सांकलों को तोड़ दिया, और बेडिय़ों के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था।
Mark 5:5 वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ो में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
Mark 5:6 वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया।
Mark 5:7 और ऊंचे शब्द से चिल्लाकर कहा; हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूं, कि मुझे पीड़ा न दे।
Mark 5:8 क्योंकि उसने उस से कहा था, हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।
Mark 5:9 उसने उस से पूछा; तेरा क्या नाम है? उसने उस से कहा; मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत हैं।
Mark 5:10 और उसने उस से बहुत बिनती की, हमें इस देश से बाहर न भेज।
Mark 5:11 वहां पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था।
Mark 5:12 और उन्होंने उस से बिनती कर के कहा, कि हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं।
Mark 5:13 सो उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर पैठ गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाडे पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा।
Mark 5:14 और उन के चरवाहों ने भागकर नगर और गांवों में समाचार सुनाया।
Mark 5:15 और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। और यीशु के पास आकर, वे उसको जिस में दुष्टात्माएं थीं, अर्थात जिस में सेना समाई थी, कपड़े पहिने और सचेत बैठे देखकर, डर गए।
Mark 5:16 और देखने वालों ने उसका जिस में दुष्टात्माएं थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उन को कह सुनाया।
Mark 5:17 और वे उस से बिनती कर के कहने लगे, कि हमारे सिवानों से चला जा।
Mark 5:18 और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिस में पहिले दुष्टात्माएं थीं, उस से बिनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे।
Mark 5:19 परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, अपने घर जा कर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया कर के प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।
Mark 5:20 वह जा कर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 31-32 
  • प्रेरितों 23:16-35


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