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बुधवार, 24 अप्रैल 2013

वैध प्रवेश


   मैं अपनी पत्नि के साथ अमेरिका से बाहर के एक देश में शिक्षण कार्य के लिए निकला। जिस देश में हमें जाना था जब हम वहाँ पहुँचे तो हमारे वीसा (प्रवेश आज्ञा पत्र) में कुछ गड़बड़ के कारण हमें प्रवेश करने से रोक दिया गया। हम इस विश्वास में थे कि हमें बिलकुल सही वीसा मिले हैं, परन्तु जब उस देश में प्रवेश करने के लिए उन्हें जांचा गया तो उनमें त्रुटियाँ पाई गईं। कई लोगों, सरकारी और गैर-सरकारी ने, हमारे प्रवेश कर पाने के लिए बहुत प्रयास किए, हमारे भले उद्देश्य और अच्छे चरित्र की दुहाई दी, किंतु कुछ भी नहीं हो सका और हमें अमेरिका जाने वाले अगले ही वायु यान में बैठा कर वापस भेज दिया गया। किसी की ओर से कोई भी प्रयास इस तथ्य को बदल नहीं सका कि हमारे प्रवेश पत्र वैध नहीं थे और हमें उन अवैध प्रवेश पत्रों के आधार पर प्रवेश कदापि नहीं मिल सकता था। हमारे चरित्र, हमारे उद्देश्य, हमारे कार्य, हमारे लिए करी गई सिफारिशें आदि कुछ भी काम नहीं आए और हमें लौटना ही पड़ा। केवल एक ही उपाय था, एक नए कार्यक्रम के अन्तर्गत और वैध तथा सही प्रवेश पत्र लेकर हम पुनः वहाँ आएं।

   वीसा संबंधित यह अनुभव अति असुविधाजनक तो था, लेकिन इससे मेरा ध्यान एक और प्रकार के अवैध प्रवेशों के प्रयासों की ओर गया, जिनमें संसार का प्रायः अधिकांश लोग लिप्त रहते आए हैं और लिप्त हैं। मेरा तात्पर्य स्वर्ग में परमेश्वर के पास प्रवेश से है। अन्तिम क्षण पर जब फिर कभी कुछ नहीं हो सकता, स्वर्ग के द्वार से लौटना एक ऐसा दर्दनाक और भयावह अनुभव है जिसकी कल्पना भी हम मनुष्यों की बुद्धि से परे है और उस परदेश की सीमा से हमारे लौटने की असुविधा तो उसके सामने कुछ भी नहीं है। संसार के लोग इस बात को भूल जाते हैं या अन्देखा करते हैं कि स्वर्ग परमेश्वर का निवास स्थान है, कोई छुट्टी बिताने या सैलानियों के समान कुछ समय के लिए घूमने जाने का स्थान नहीं है जहां आप अपनी इच्छा, अपनी योजनाओं और अपनी सुविधानुसार पहुंच जाएं। परमेश्वर के निवास स्थान में जो प्रवेश पाएगा वह परमेश्वर की अनुमति से और परमेश्वर द्वारा निर्धारित शर्तों के आधार पर ही यह करने पाएगा; ना कि अपनी इच्छा, अपनी योजनाओं या अपनी किन्ही योग्यताओं के आधार पर।

   ऐसे असंख्य लोग हैं जो अपने धर्म-कर्म और भलाई के जीवन को इस प्रवेश के लिए वैध समझते हैं, किंतु परमेश्वर का वचन सभी मनुष्यों के लिए कहता है "जैसा लिखा है, कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं। इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं" (रोमियों 3:10, 11, 23)। बहुतेरे अपने अच्छे चरित्र और समाज में अच्छे नाम को प्रवेश के लिए वैध समझते हैं, किंतु परमेश्वर का वचन कहता है "हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है" (यशायाह 64:6)। कितने ही अपने पूर्वजों के नाम और अपनी उच्च वंशावली को अपने लिए स्वर्ग में प्रवेश का वैध आधार मानते हैं, लेकिन परमेश्वर का वचन सिखाता है कि "क्योंकि तुम जानते हो, कि तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो बाप दादों से चला आता है उस से तुम्हारा छुटकारा चान्दी सोने अर्थात नाशमान वस्‍तुओं के द्वारा नहीं हुआ" (1 पतरस 1:18 )। परमेश्वर की चेतावनी सब के  लिए है: "हे भाइयों, मैं यह कहता हूं कि मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते, और न विनाशी अविनाशी का अधिकारी हो सकता है" (1 कुरिन्थियों 15:50); "यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता। क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है" (यूहन्ना 3:3, 6)।

   परमेशवर के निवास स्थान अर्थात परमेश्वर के पास प्रवेश का केवल एक ही वैध प्रवेश मार्ग है: "यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता" (यूहन्ना 14:6)। केवल प्रभु यीशु ही है जिसने समस्त मानव जाति के पापों लिए अपने प्राणों के बलिदान और फिर मृत्कों में से पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर के पास प्रवेश का मार्ग संभव किया है और केवल वह ही परमेश्वर की उपस्थिति में आने के लिए हमें उस पर लाए गए विश्वास और उससे प्राप्त होने वाली पापों की क्षमा द्वारा वैध प्रवेश प्रदान कर सकता है।

   क्या आपने प्रभु यीशु पर विश्वास किया है, उससे पापों की क्षमा मांगी है? समय कब पूरा हो जाए और अन्तिम यात्रा कब करनी पड़ जाए, कोई नहीं जानता। अब और अभी ही स्वर्ग में अपने प्रवेश की वैधता को सुनिश्चित कर लीजिए। - बिल क्राउडर


केवल प्रभु यीशु के माध्यम से ही हम प्रमेश्वर पिता के समक्ष प्रवेश पा सकते हैं।

यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता। - यूहन्ना 14:6

बाइबल पाठ: यूहन्ना 14:1-10
John 14:1 तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो।
John 14:2 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं।
John 14:3 और यदि मैं जा कर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।
John 14:4 और जहां मैं जाता हूं तुम वहां का मार्ग जानते हो।
John 14:5 थोमा ने उस से कहा, हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहां जाता है तो मार्ग कैसे जानें?
John 14:6 यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
John 14:7 यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।
John 14:8 फिलेप्पुस ने उस से कहा, हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिये बहुत है।
John 14:9 यीशु ने उस से कहा; हे फिलेप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूं, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा।
John 14:10 क्या तू प्रतीति नहीं करता, कि मैं पिता में हूं, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूं, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 शमूएल 19-20 
  • लूका 18:1-23