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सोमवार, 1 जुलाई 2013

राय

   हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ लगभग हर बात के लिए लोगों के मत, राय और विचार जानने के लिए कोई ना कोई सर्वेक्षण होता रहता है और उन के परिणाम प्रसारण तथा चर्चा के विषय बने रहते हैं। ऐसे सर्वेक्षणों से हमें पता चलता रहता है कि लोगों के अनुभव किसी वस्तु अथवा उत्पाद के विषय में क्या हैं और हम उन्हें खरीदने तथा उपयोग करने के सम्बंध में बुद्धिमता के साथ निर्णय लेने पाते हैं। इन सर्वेक्षणों द्वारा सरकारी अधिकारी अपनी नीतियाँ भी निर्धारित कर सकते हैं और जनता द्वारा उन्हें स्वीकार करने के विषय में पूर्वानुमान भी लगा सकते हैं। हालाँकि एकत्रित सूचना और जानकारी प्रत्येक की अपनी अपनी राय ही है किंतु फिर भी यह कई स्तरों पर निर्णय लेने में उपयोगी होती है क्योंकि बहुत से निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं, और यह अच्छा भी होता है।

   प्रभु यीशु ने अपने विषय में जनमत को ले कर अपने चेलों से एक प्रश्न पूछा: "यीशु कैसरिया फिलिप्पी के देश में आकर अपने चेलों से पूछने लगा, कि लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?" (मत्ती 16:13); उत्तर अनेक थे, सभी उत्तर उसके लिए सम्मानदायक भी थे, लेकिन कोई भी उत्तर यथोचित तथा प्रभु यीशु को स्वीकारयोग्य नहीं था। फिर प्रभु यीशु ने यही प्रश्न अपने चेलों से पूछा: "उसने उन से कहा; परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?" (मत्ती 16:15); और उसके चेले पतरस ने सही उत्तर दिया: "शमौन पतरस ने उत्तर दिया, कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है" (मत्ती 16:16), जिसके लिए प्रभु यीशु ने पतरस को धन्य कहा और बताया कि यह पहचान और समझ-बूझ किसी मान्वीय क्षमता से नहीं वरन परमेश्वर पिता से प्राप्त होती है।

   लोकमत कुछ प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं, लेकिन जब प्रश्न आता है जीवन के सबसे महत्वपूर्ण और सबसे अधिक दूरगामी प्रभाव रखने वाले प्रश्न के उत्तर और संबंधित निर्णय का तो जनमत और बहुमत इसमें कतई सहायक नहीं है - इसका निर्णय तो हम में से प्रत्येक जन को व्यक्तिगत रीति से ही करना है; यहाँ किसी अन्य की राय अथवा मत हमारे लिए लागू नहीं हो सकता। यह प्रश्न है इस पृथ्वी के जीवन के बाद के अनन्त जीवन का - हम उस अनन्त जीवन को कहाँ बिताएंगे? यदि अभी उस अनिवार्यतः आने वाले अनन्त जीवन के बारे में विचार नहीं किया और सही निर्णय नहीं लिया, तो बाद में सही निर्णय की ओर लौट आने का कोई मार्ग नहीं होगा। हम इस पृथ्वी पर जो अनन्त अपने लिए निर्धारित कर लेंगे, वही पृथ्वी छोड़ने के बाद हमारे लिए लागू हो जाएगा - सदा सदा के लिए।

   आज आपकी राय प्रभु यीशु के बारे में क्या है? आप क्या कहते हैं कि प्रभु यीशु कौन है? स्मरण रखिए कि पतरस के उत्तर को छोड़, प्रभु यीशु को अन्य कोई भी उत्तर स्वीकार नहीं था। यदि आप पतरस और परमेश्वर के वचन बाइबल से प्रभु यीशु के विषय में सहमत हैं तो उसे अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करके अनन्त आशीषों और स्वर्ग में निवास के अधिकारी बन जाईये; अन्यथा विकल्प बहुत भयानक और वर्णन तथा समझ से बाहर कष्टदायक होगा। जो आप अपने लिए यहाँ चुनेंगे वही आपको वहाँ मिलेगा। - बिल क्राउडर


लोकमत परमेश्वर के वचन बाइबल की सच्चाई को बदल नहीं सकता।

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। - यूहन्ना 1:12 

बाइबल पाठ: मत्ती 16:13-19
Matthew 16:13 यीशु कैसरिया फिलिप्पी के देश में आकर अपने चेलों से पूछने लगा, कि लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?
Matthew 16:14 उन्होंने कहा, कितने तो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते हैं और कितने एलिय्याह, और कितने यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।
Matthew 16:15 उसने उन से कहा; परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?
Matthew 16:16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।
Matthew 16:17 यीशु ने उसको उत्तर दिया, कि हे शमौन योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि मांस और लोहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है।
Matthew 16:18 और मैं भी तुझ से कहता हूं, कि तू पतरस है; और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा: और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।
Matthew 16:19 मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियां दूंगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बान्‍धेगा, वह स्वर्ग में बन्‍धेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • अय्युब 20-21 
  • प्रेरितों 10:24-48