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शनिवार, 5 जुलाई 2014

'विलियम'


   जब मैं और मेरा दल जैमाइका में एक विकलांग बच्चों की देखभाल करने वाले बाल-गृह में गए तो मुझे कदापि यह आशा नहीं थी कि वहाँ मुझे एक फुटबॉल खिलाड़ी मिलेगा। हमारी बस के रुकते ही मेरे साथ के लोग उस बाल-गृह में बच्चों से मिलने और उनके साथ खेलने, उनका मनोरंजन करने, उनसे प्रेम बाँटने के लिए अन्दर चले गए, लेकिन मुझे बाहर एक युवा व्यक्ति - विलियम मिल गया। मैं निश्चित नहीं जानता कि विलियम को क्या चिकित्सीय समस्या थी, लेकिन मुझे लगा कि उसे सेरिब्रल पाल्सी अर्थात मस्तिष्क के पूरी तरह ना विकसित हो पाने और शरीर के कुछ भागों को भली भांति नियंत्रित ना करने की समस्या थी।

   अपनी बस से उतरने से पहले मैंने एक फुटबॉल उठा ली थी, इसलिए मैंने धीरे से उसे विलियम की ओर उछाल दिया, किंतु विलियम उसे पकड़ नहीं पाया और गिरा दिया। लेकिन जब मैंने फुटबॉल को उठाकर उसके हाथ में रखा तो वह धीरे धीरे उसे घुमा कर अपनी इच्छानुसार स्थिति में लाया, फिर साथ के जंगले का सहारा लेकर अपना सन्तुलन स्थापित किया और तब फुटबॉल को एक स्थापित खिलाड़ी के समान बिलकुल सही रीति से दूर तक उछाल दिया। अगले 45 मिनिट तक मैं और विलियम खेलते रहे - वह गेंद उछालता था, मैं पकड़ता था और उसके पास ले आता था। यह सब करते हुए विलियम खूब हंसता रहा और मेरा दिल जीत लिया। उस दिन उसने मुझ पर उतना ही प्रभाव डाला जितना मैंने उसपर। विलियम ने मुझे सिखाया कि हमारी रचना चाहे जैसी हो किंतु मसीह यीशु की देह अर्थात उसकी मण्डली में हम सबकी बराबर आवश्यकता है, स्थान है (1 कुरिन्थियों 12:20-25)।

   अकसर लोग उन्हें नज़रन्दाज़ और अलग कर देते हैं जो उनसे भिन्न हैं। लेकिन इस संसार के ’विलियम’ ही हमें सिखाते हैं कि जब हम दूसरों को स्वीकार करके उनके साथ प्रेम का व्यवहार करते हैं तो यह आनन्दायक होता है, मसीह यीशु के प्रेम का प्रकटीकरण एवं प्रदर्शन होता है।

   क्या आज आपके आस-पास कोई ’विलियम’ है जिसे आपकी मित्रता की आवश्यकता है? - डेव ब्रैनन


जैसा परमेश्वर हमें देखना चाहता है वैसा बनने के लिए हमें एक दूसरे की आवश्यकता है।

विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे। - फिलिप्पियों 2:3-4

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 12:18-27
1 Corinthians 12:18 परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगो को अपनी इच्छा के अनुसार एक एक कर के देह में रखा है। 
1 Corinthians 12:19 यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहां होती? 
1 Corinthians 12:20 परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है। 
1 Corinthians 12:21 आंख हाथ से नहीं कह सकती, कि मुझे तेरा प्रयोजन नहीं, और न सिर पांवों से कह सकता है, कि मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं। 
1 Corinthians 12:22 परन्तु देह के वे अंग जो औरों से निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं। 
1 Corinthians 12:23 और देह के जिन अंगो को हम आदर के योग्य नहीं समझते हैं उन्‍ही को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं। 
1 Corinthians 12:24 फिर भी हमारे शोभायमान अंगो को इस का प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो। 
1 Corinthians 12:25 ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्‍ता करें। 
1 Corinthians 12:26 इसलिये यदि एक अंग दु:ख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दु:ख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साथ सब अंग आनन्द मनाते हैं। 
1 Corinthians 12:27 इसी प्रकार तुम सब मिल कर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 124-128