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रविवार, 3 अगस्त 2014

कार्यकारी विश्वास


   रॉजर गठिया रोग से पीड़ित था, जो सर्दियों में और अधिक कष्टदायी हो जाता था, इसलिए वह गर्म इलाके में रहने के लिए थाईलैंड के शहर बैंगकॉक आ गया। एक दिन उसे अपनी दादी का एक प्रीय गीत, "आप क्या हैं?" स्मरण हो आया, जिसके शब्द थे: "आप जो हैं वह आपके व्यवहार से इतने ऊँचे शब्दों में बयान होता है कि इस संबंध में आपके मूँह से कही बात किसी को सुनाई नहीं दे पाती; सब आपके चाल-चलन को देखते हैं आपकी आवाज़ सुनने में रुचि नहीं रखते; वे प्रतिदिन आपको आपके व्यवहार से आँकते हैं।"

   इस गीत को स्मरण कर रॉजर अपने घर के पास आधा मील तक सड़क के दोनों ओर रहने वाले बेघर लोगों को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए प्रेरित हुआ और प्रति प्रातः वह 45 परिवारों को गर्म भोजन परोसने लगा। कई वर्षों के पश्चात, उन बेघर लोगों में से एक महिला ने प्रभु यीशु को जाना और अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया, और वह रॉजर के पास आई कि उसे प्रभु यीशु के प्रेम से अवगत करवाने के लिए धन्यवाद करे।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में याकूब की पत्री में स्पष्ट लिखा है कि कर्म बिना विश्वास मरा हुआ है (याकूब 2:17)। इस कथन का यह तात्पपर्य नहीं है कि कर्मों से विश्वास आ जाएगा, वरन यह कि बिना किसी प्रतिफल की चिन्ता किए, प्रभु यीशु के प्रेम में होकर निस्वार्थ रीति से करे गए भले कार्य, प्रभु यीशु में आपके विश्वास की वास्तविकता को प्रमाणित करेंगे। यह कहना बहुत सरल है कि "मैं प्रभु यीशु में विश्वास रखता हूँ" लेकिन केवल हमारे कार्य और व्यवहार ही हमारे इस कथन की खराई को प्रमाणित कर सकते हैं। बाइबल का एक नायक, इब्राहीम, इसका उत्तम उदाहरण है। इब्राहीम ने केवल अपने विश्वास के बारे में बात ही नहीं करी, वरन वह परमेश्वर की आज्ञाकारिता में होकर अपने एकलौते पुत्र इसहाक को भी बलिदान करने के लिए तैयार हो गया (याकूब 2:21-24; उत्पत्ति 22:1-18); और परमेश्वर ने इसहाक को बलि होने से बचा भी लिया।

   आज हम अपने मसीही विश्वास को, परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम एवं उसमें अपने भरोसे को कार्यकारी रीति से कैसे संसार के समक्ष रख सकते हैं? संसार के लोगों के सामने केवल मूँह से कही बातें नहीं, वरन उन बातों को अपने निज जीवन में कार्यकारी रीति से दिखाना ही प्रभु यीशु में हमारे विश्वास की सच्चाई को प्रमाणित करेगा। - एलबर्ट ली


ना तो विश्वास एवं कार्य अर्थ रखते हैं, ना ही विश्वास अथवा कार्य का महत्व है; जो चाहिए वह है ऐसा मसीही विश्वास जो जीवनों में कार्यकारी हो।

इसलिये जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। - मत्ती 7:24

बाइबल पाठ: याकूब 2:14-26
James 2:14 हे मेरे भाइयों, यदि कोई कहे कि मुझे विश्वास है पर वह कर्म न करता हो, तो उस से क्या लाभ? क्या ऐसा विश्वास कभी उसका उद्धार कर सकता है? 
James 2:15 यदि कोई भाई या बहिन नगें उघाड़े हों, और उन्हें प्रति दिन भोजन की घटी हो। 
James 2:16 और तुम में से कोई उन से कहे, कुशल से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्‍त रहो; पर जो वस्तुएं देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे, तो क्या लाभ? 
James 2:17 वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्‍वभाव में मरा हुआ है।
James 2:18 वरन कोई कह सकता है कि तुझे विश्वास है, और मैं कर्म करता हूं: तू अपना विश्वास मुझे कर्म बिना तो दिखा; और मैं अपना विश्वास अपने कर्मों के द्वारा तुझे दिखाऊंगा। 
James 2:19 तुझे विश्वास है कि एक ही परमेश्वर है: तू अच्छा करता है: दुष्टात्मा भी विश्वास रखते, और थरथराते हैं। 
James 2:20 पर हे निकम्मे मनुष्य क्या तू यह भी नहीं जानता, कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है? 
James 2:21 जब हमारे पिता इब्राहीम ने अपने पुत्र इसहाक को वेदी पर चढ़ाया, तो क्या वह कर्मों से धामिर्क न ठहरा था? 
James 2:22 सो तू ने देख लिया कि विश्वास ने उस के कामों के साथ मिल कर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ। 
James 2:23 और पवित्र शास्त्र का यह वचन पूरा हुआ, कि इब्राहीम ने परमेश्वर की प्रतीति की, और यह उसके लिये धर्म गिना गया, और वह परमेश्वर का मित्र कहलाया। 
James 2:24 सो तुम ने देख लिया कि मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं, वरन कर्मों से भी धर्मी ठहरता है। 
James 2:25 वैसे ही राहाब वेश्या भी जब उसने दूतों को अपने घर में उतारा, और दूसरे मार्ग से विदा किया, तो क्या कर्मों से धामिर्क न ठहरी? 
James 2:26 निदान, जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।

एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह 22-24