ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

ध्येय


   आज के इलैक्ट्रौनिक उपकरणों और अन्य ध्यान बंटाने वाली वस्तुओं के आने से पहले, मेरे लड़कपन के ग्रीष्मावकाश के लंबे दिन प्रति सप्ताह आने वाले चलते-फिरते पुस्तकालय के आगमन से आनन्दमय हो जाते थे। वह पुस्तकालय एक बस थी जिसमें अन्दर बैठने के स्थान की बजाए शेल्फ बनी हुईं थी और उन शेल्फों पर पुस्तकें भरी हुई थीं जो कि स्थानीय पुस्तकाअलय से लाई जाती थीं जिससे वे लोग जो पुस्त्कालय तक नहीं जा पाते, पुस्तकें पढ़ सकें। उस चलते-फिरते पुस्त्कालय के कारण मैंने बहुत से दिन ऐसी पुस्तकों को पढ़ते हुए बिताए जो मुझे अन्यथा नहीं मिल पातीं। मैं आज भी उस पुस्त्कालय का धन्यवादी हूँ जिसने मेरे अन्दर पुस्तकों के प्रति प्रेम जगाया।

   परमेश्वर के वचन बाइबल के कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि प्रेरित पौलुस को भी पुस्तकों से प्रेम था, और वह अपने जीवन के अन्त तक उन्हें पढ़ता रहा था। कैदखाने से लिखी अपनी अन्तिम पत्री में, जिसके लिखे जाने के कुछ समय पश्चात उसका अन्त मृत्युदण्ड द्वारा करवा दिया गया था, पौलुस ने तिमुथियुस को लिखा, "जो बागा मैं त्रोआस में करपुस के यहां छोड़ आया हूं, जब तू आए, तो उसे और पुस्‍तकें विशेष कर के चर्मपत्रों को लेते आना" (2 तिमुथियुस 4:13)। जिन पुस्तकों और चमर्पत्रों का उल्लेख पौलुस यहाँ कर रहा है वे परमेश्वर के वचन के पुराने नियम के खण्ड तथा/या उसकी लिखी हुई रचानाएं थीं।

   पौलुस का पुस्तकों के प्रति यह प्रेम क्या महज़ ज्ञानवर्धन के शौक या मनोरंजन पाने के लिए था? पुस्तकों के अलावा पौलुस का एक प्रेम और भी था, जो पुस्तकों के प्रति उसके प्रेम का आधार था - अपने तथा जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु को और अधिक गहराई एवं निकटता से जानते रहने का प्रेम। पौलुस ने फिलिप्पी के मसीही विश्वासियों के नाम अपनी पत्री में उन्हें इस संबंध में लिखा कि उसके जीवन का ध्येय था, "मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं" (फिलिप्पियों 3:10)।

   मेरी प्रार्थना है कि जैसा पौलुस का ध्येय प्रभु यीशु को लगातार और भी अधिक निकटता तथा गहराई से जानते रहने का था, वैसे ही हमारे जीवनों का भी यही ध्येय हो और हम प्रभु यीशु की निकटता में बढ़ते चले जाएं। - बिल क्राउडर


सभी ज्ञान से उत्तम ज्ञान है प्रभु यीशु मसीह की पहचान में बढ़ते जाना।

परमेश्वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शान्‍ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए। क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्‍ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिसने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है। - 2 पतरस 1:2-3

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 3:7-14
Philippians 3:7 परन्तु जो जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्‍हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है। 
Philippians 3:8 वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्‍तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं। 
Philippians 3:9 और उस में पाया जाऊं; न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है। 
Philippians 3:10 और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं। 
Philippians 3:11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं। 
Philippians 3:12 यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था। 
Philippians 3:13 हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ। 
Philippians 3:14 निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 कुरिन्थियों 4-6