ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

वार्तालाप


   संभवतः आप इस प्रसिद्ध कथन को जानते हों: "महान लोग विचारों के बारे चर्चा करते हैं; साधारण लोग घटनाओं के बारे चर्चा करते हैं और छोटे लोग व्यक्तियों के बारे में चर्चा करते हैं।" इसमें कोई असंगत बात नहीं कि लोगों के बारे में बात करने का भी तरीका होता है जिससे उन्हें सम्मान मिल सके, लेकिन उपरोक्त कथन सामान्यतः चर्चा करने वाले लोगों की मानसिकता पर एक टिप्पणी है जो उनके व्यक्तित्व का परिचय देती है। आज के संसार में सभी पर सामाजिक या व्यवसायिक मीडिया की लगातार बनी रहने वाली नज़र के कारण हमें लोगों के जीवनों को ऐसी अन्तरंगता से देखने को मिलता रहता है जो अनुपयुक्त हो सकता है।

   यह और भी बुरा तब हो जाता है जब दुसरों के जीवनों के बारे में अनुपयुक्त सूचनाओं की यह बाढ़ हमारी बातचीत का ऐसा विषय बन जाती है जहाँ व्यर्थ की कानफूसी अपवाद नहीं वरन सामान्य लगने लगती है, और यह केवल प्रसिद्ध और गणमान्य लोगों को लेकर ही हो ऐसा भी नहीं। हमारे कार्यस्थल, चर्च, पड़ौस, मित्र-मण्डली और परिवार के लोग भी इस व्यर्थ कानाफूसी के विषय बनते चले जाते हैं और फिर लोगों की तेज़ ज़ुबानों के लक्ष्य बनकर उन्हें ऐसी चर्चाओं की पीड़ा सहनी पड़ती है जिन चर्चाओं को कभी होना ही नहीं चाहिए था।

   हम अपने वार्तालापों में ऐसे शब्दों के प्रयोग को कैसे रोक सकते हैं जिन से दूसरों को कष्ट होता है? यह ध्यान रखने के द्वारा कि परमेश्वर भी हमारे प्रत्येक वार्तालाप को सुनता है और उसका हिसाब रखता है और एक दिन उन सब बातों का हमसे हिसाब अवश्य लेगा (मत्ती 12:36)। हमारा परमेश्वर पिता हम मसीही विश्वासियों से चाहता है कि हम अपने शब्दों का बहुत सावधानी से प्रयोग करें, ऐसा करें जिससे उसे किसी प्रकार की कोई शर्मिंदगी ना हो और हम भी भजनकार के साथ कह सकें: "मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करने वाले!" (भजन 19:14)

   जब हम दूसरों के बारे में अपने वार्तालाप और शब्दों के द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, तब हम परमेश्वर को आदर देते हैं। उसकी सहायता से हम अपने वार्तालाप को संसार के लोगों में उसे महिमा देने और उसका आदर करने का माध्यम बना सकते हैं। होने दें कि आपके शब्द, आपका वार्तालाप आपके पिता परमेश्वर के लिए महिमा और आदर का कारण बने। - बिल क्राउडर


शब्दों से किसी को आहत करने से बेहतर है कि हम अपनी ज़ुबान को ही दबा लें।

और मैं तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। - मत्ती 12:36

बाइबल पाठ: भजन 19
Psalms 19:1 आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। 
Psalms 19:2 दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है। 
Psalms 19:3 न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहां उनका शब्द सुनाई नहीं देता है। 
Psalms 19:4 उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूंज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं। उन में उसने सूर्य के लिये एक मण्डप खड़ा किया है, 
Psalms 19:5 जो दुल्हे के समान अपने महल से निकलता है। वह शूरवीर की नाईं अपनी दौड़ दौड़ने को हर्षित होता है। 
Psalms 19:6 वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सब को पहुंचती है।
Psalms 19:7 यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं; 
Psalms 19:8 यहोवा के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखों में ज्योति ले आती है; 
Psalms 19:9 यहोवा का भय पवित्र है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं। 
Psalms 19:10 वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकने वाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं। 
Psalms 19:11 और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है। 
Psalms 19:12 अपनी भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्र कर। 
Psalms 19:13 तू अपने दास को ढिठाई के पापों से भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधों से बचा रहूंगा।। 
Psalms 19:14 मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करने वाले!

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 18-19
  • प्रेरितों 20:17-38