ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

पीड़ा और आनन्द


   मैंने अपने कई मित्रों से पूछा कि उनके जीवन में सबसे कठिन और पीड़ादायक अनुभव क्या था। उनके उत्तरों में युध्द, तलाक, ऑपरेशन, किसी निकट जन का निधन आदि से संबंधित अनुभव सम्मिलित थे। मेरी पत्नि का उत्तर था, "हमारी पहली सन्तान का जन्म।" जन्म की यह प्रक्रिया एक एकाकी सैनिक अस्पताल में हुई थी तथा लंबी और कठिन रही थी। परन्तु अब जब पीछे मुड़कर हम उसके बारे में सोचते हैं तो मेरी पत्नि उसे आनन्द का कारण मानती है, "क्योंकि उस पीड़ा का एक बड़ा उद्देश्य था।"

   अपने क्रूस पर बलिदान होने से पहले, प्रभु यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे बड़ी पीड़ा और दुःख से निकलने वाले हैं। प्रभु ने उनके ऊपर आने वाले इस अनुभव की तुलना जच्चा की पीड़ा से की, जब बच्चे के पैदा होते ही वह पीड़ा आनन्द में परिवर्तित हो जाती है (यूहन्ना 16:20-21)। प्रभु ने अपने मारे जाने और फिर मृतकों में से जी उठने और उनसे पुनः मिलने के संदर्भ में कहा, "तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा" (यूहन्ना 16:22)।

   जीवन के मार्ग पर दुःख हम सब पर आता ही है। परन्तु प्रभु यीशु ने "...उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्ज़ा की कुछ चिन्‍ता न कर के, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा" (इब्रानियों 12:2)। अपने एक बलिदान के द्वारा प्रभु यीशु ने समस्त मानव जाति के लिए पापों की क्षमा, उद्धार और शैतान के चँगुल से स्वतंत्रता को खरीद लिया है, और जो कोई स्वेच्छा से अपना हृदय उसके लिए खोलता है, उसे स्वीकार करता है, वह प्रभु से इन बातों को भेंट स्वरूप प्राप्त कर लेता है। प्रभु यीशु के पीड़ा से भरे बलिदान ने मानव जाति के लिए परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा किया और परमेश्वर के साथ हमारी मित्रता तथा संगति का मार्ग उपलब्ध करवा दिया।

   हमारे उद्धारकर्ता प्रभु परमेश्वर का आनन्द उसके बलिदान की पीड़ा से कहीं बढ़कर था; उसमें लाए गए विश्वास और उससे मिलने वाली मुक्ति का आनन्द भी हमारे जीवन के सभी दुःखों तथा उसके पीछे चलने के कारण आने वाले सताव की पीड़ा से कहीं बढ़कर होता है। - डेविड मैक्कैसलैंड


दुःख एक चुंबक के समान हो सकते हैं, 
जिनसे एक मसीही विश्वासी प्रभु के और निकट आ जाता है।

इस कारण मैं उसे महान लोगों के संग भाग दूंगा, और, वह सामर्थियों के संग लूट बांट लेगा; क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया, वह अपराधियों के संग गिना गया; तौभी उसने बहुतों के पाप का बोझ उठ लिया, और, अपराधियों के लिये बिनती करता है। - यशायाह 53:12

बाइबल पाठ: यूहन्ना 16:17-24
John 16:17 तब उसके कितने चेलों ने आपस में कहा, यह क्या है, जो वह हम से कहता है, कि थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे? और यह इसलिये कि मैं कि मैं पिता के पास जाता हूं? 
John 16:18 तब उन्होंने कहा, यह थोड़ी देर जो वह कहता है, क्या बात है? हम नहीं जानते, कि क्या कहता है। 
John 16:19 यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझ से पूछना चाहते हैं, उन से कहा, क्या तुम आपस में मेरी इस बाते के विषय में पूछ पाछ करते हो, कि थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे। 
John 16:20 मैं तुम से सच सच कहता हूं; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा। 
John 16:21 जब स्त्री जनने लगती है तो उसको शोक होता है, क्योंकि उस की दु:ख की घड़ी आ पहुंची, परन्तु जब वह बालक जन्म चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती। 
John 16:22 और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा। 
John 16:23 उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे: मैं तुम से सच सच कहता हूं, यदि पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। 
John 16:24 अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं मांगा; मांगो तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 शमूएल 19-21
  • लूका 11:29-54


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें