ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

प्रभु-भोज


   मेज़ के आकार से, चाहे वह गोल हो या चौकोर, इसका कोई संबंध नहीं है। कुर्सियाँ, चाहे वे लकड़ी की हों या प्लास्टिक की, उनसे भी उसका कोई संबंध नहीं है। भोजन की मात्रा से भी उसका कोई संबंध नहीं है, परन्तु यदि भोजन सप्रेम बनाकर परोसा गया हो तो सहायक होता है। भोजन का आनन्द तो तब ही आता है जब हम अपने टी.वी. तथा फोन को बन्द कर के, उन की ओर ध्यान दें जिनके साथ हम बैठें हैं। मुझे मेज़ पर लोगों के साथ बैठकर, मित्रों और परिवार जनों के साथ भिन्न विषयों पर वार्तालाप करना बहुत अच्छा लगता है। परन्तु आज की त्वरित तकनीकी ने इसे कठिन बना दिया है; क्योंकि आज भोजन के समय पर भी हम बहुधा उसके प्रति अधिक आकर्षित और चिंतित होते हैं जो हमसे अनेकों मील दूर हो रहा है, ना कि उनके प्रति जो हमारे साथ भोजन करने मेज़ पर बैठे हैं, और हम से कुछ कहना चाह रहे हैं।

   हमारे प्रभु परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को एक अन्य भोज के लिए भी आमंत्रित किया है; उसकी लालसा है कि उसके जन प्रेम में एक साथ एकत्रित होकर, उसके प्रभु-भोज में सम्मिलित हों। इस भोज में सम्मिलित होने के लिए चर्च के बड़ा या छोटा होने से कोई संबंध नहीं है; और ना ही वहाँ रखी गई रोटी के प्रकार से है। प्रभु भोज में सरोकार है प्रभु और उसके लोगों के साथ संगति करने से; हम संसार की अन्य प्रत्येक बात से अपना ध्यान हटाकर, केवल प्रभु और उसके लोगों के साथ अपने संबंध के बारे में विचार करें और उन संबंधों में आई खामियों का निवारण करें।

   क्या प्रभु भोज में सम्मिलित होते समय हम प्रभु की उपस्थिति का आनन्द लेते हैं, या फिर उसके बारे में सोचते रहते, या चिंता करते रहते हैं जो कहीं और हो रहा है? वह अन्तिम अवसर कब था जब आपने प्रभु भोज में भाग लेते समय वास्तव में प्रभु के साथ संगति की थी; दिल खोल कर उससे बात की थी, उसकी संगति का आनन्द लिया था और परिणामस्वरूप एक प्रसन्न चित तथा हलके मन के साथ उस भोज से आए थे? यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि, "जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने, वह इस खाने और पीने से अपने ऊपर दण्‍ड लाता है। इसी कारण तुम में से बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए। यदि हम अपने आप में जांचते, तो दण्‍ड न पाते" (1 कुरिन्थियों 11:29-32)। - कीला ओकोआ


मसीह यीशु की मृत्यु को स्मरण करने से 
हम आज के लिए सामर्थ तथा आने वाले समय के लिए आशा प्राप्त करते हैं।

जीवन की रोटी मैं हूं। तुम्हारे बाप दादों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए। यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उस में से खाए और न मरे। जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है। - यूहन्ना 6:48-51

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 11:23-34
1 Corinthians 11:23 क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया रोटी ली। 
1 Corinthians 11:24 और धन्यवाद कर के उसे तोड़ी, और कहा; कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो। 
1 Corinthians 11:25 इसी रीति से उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया, और कहा; यह कटोरा मेरे लोहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो। 
1 Corinthians 11:26 क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो। 
1 Corinthians 11:27 इसलिये जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा। 
1 Corinthians 11:28 इसलिये मनुष्य अपने आप को जांच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए। 
1 Corinthians 11:29 क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने, वह इस खाने और पीने से अपने ऊपर दण्‍ड लाता है। 
1 Corinthians 11:30 इसी कारण तुम में से बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए। 
1 Corinthians 11:31 यदि हम अपने आप में जांचते, तो दण्‍ड न पाते। 
1 Corinthians 11:32 परन्तु प्रभु हमें दण्‍ड देकर हमारी ताड़ना करता है इसलिये कि हम संसार के साथ दोषी न ठहरें। 
1 Corinthians 11:33 इसलिये, हे मेरे भाइयों, जब तुम खाने के लिये इकट्ठे होते हो, तो एक दूसरे के लिये ठहरा करो। 
1 Corinthians 11:34 यदि कोई भूखा हो, तो अपने घर में खा ले जिस से तुम्हार इकट्ठा होना दण्‍ड का कारण न हो: और शेष बातों को मैं आकर ठीक कर दूंगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 शमूएल 22-24
  • लूका 12:1-31


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें