ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

चित्रण



      लंडन शहर की नैशनल पोर्टरेट गैलरी में बीती सदियों के लोगों के चित्रों का खज़ाना है। उन चित्रों में विंस्टन चर्चिल के 166, विलियम शेक्सपीयर के 94, और जॉर्ज वॉशिंगटन के 20 चित्र भी हैं। प्राचीन चित्रों को देखकर हम विचार कर सकते हैं कि क्या वे लोग वास्तव में वैसे ही दिखते होंगे?

       उदाहरण के लिए, स्कॉटिश देश-भक्त विलियम वॉलेस (c. 1270-1305) के 8 चित्र हैं, परन्तु हमारे पास उनकी कोई फोटो नहीं है जिससे तुलना कर के यह जाना जा सके कि वे वैसे ही दीखते थे जैसे कि चित्रकार ने उन्हें दिखाया है। हम कैसे जाने कि चित्रकार ने व्यक्ति को सही रीति से चित्रित किया है?

      कुछ ऐसा ही प्रभु यीशु के चित्रण के साथ भी संभव है। बिना इस बात का एहसास किए हुए, उस पर विश्वास करने वाले, प्रभु के विषय औरों पर एक छाप छोड़ते जा रहे हैं – रंग और कूची से नहीं वरन अपने व्यवहार, कार्यों, और संबंधों आदि के द्वारा। क्या हम मसीही विश्वासी सँसार के समक्ष अपने जीवनों के द्वारा अपने प्रभु का वास्तविक चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं? परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रेरित पौलुस की यही चिंता थी; उसने फिलिप्पी की मसीही मण्डली को लिखी अपनी पत्री में लिखा, “जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो” (फिलिप्पियों 2:5)। सारे जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु का सही चित्रण प्रस्तुत करने की लालसा के अन्तर्गत, उसने प्रभु के अनुयायियों से आग्रह किया कि वे प्रभु की दीनता, आत्म-बलिदान, और करुणा को लोगों के सामने अपने जीवनों के द्वारा दिखाएँ।

      किसी ने कहा है, “संभव है कि हम ही वह ‘यीशु मसीह’ हों जिसे कुछ लोग कभी देखने पाएँगे”; ऐसे में वे हम में होकर हमारे प्रभु के बारे में क्या देखेंगे और जानेंगे? सँसार के सामने प्रभु यीशु की वास्तविकता को प्रगट करने के लिए “विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो” (2:3) का पालन करें। - बिल क्राउडर


मसीह यीशु का आत्म-बलिदान हमें औरों के लिए अपने आप को दे देने के लिए प्रेरित करता है।

इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो। - रोमियों 12:1-2

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्‍ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्‍वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।  


एक साल में बाइबल:  
  • व्यवस्थाविवरण 5-7
  • मरकुस 11:1-18



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें