ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

प्रार्थना



      मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि अपनी माँ के ल्यूकीमिया (बल्ड कैंसर) के साथ संघर्ष और इलाज के समय मैं उनकी देखभाल के लिए उनके साथ हो सकी। जब दवाईयां लेने से सहायता कम और तकलीफ अधिक होने लगी तो माँ ने उन्हें लेना बन्द कर देने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा, “मैं और तकलीफ नहीं उठाना चाहती हूँ; मैं बस अपने अंतिम दिन अपने परिवार के साथ आनन्दित रहना चाहती हूँ। परमेश्वर जानता है कि मैं अब घर जाने के लिए तैयार हूँ।”

      मैंने प्रार्थनाओं में हमारे प्रेमी स्वर्गीय पिता परमेश्वर से उनके लिए विनती की – कि वो उन्हें चंगाई प्रदान करे। परन्तु परमेश्वर यदि मेरी माँ की प्रार्थना के लिए ‘हाँ’ करता, तो उसे मेरी प्रार्थनाओं के लिए ‘नहीं’ कहना पड़ता। इसलिए रोते हुए मैंने परमेश्वर के सामने समर्पण कर दिया, कि मेरी नहीं वरन उसकी इच्छा पूरी हो। कुछ ही समय के बाद प्रभु यीशु ने मेरी माँ का दुख-तकलीफ से बाहर उनके अनन्त घर में स्वागत कर लिया।

      पाप में गिरे हुए इस सँसार में हम प्रभु यीशु के दोबारा आगमन तक दुखों का अनुभव करते रहेंगे (रोमियों 8:22-25)। हमारा पापी स्वभाव, हमारी सीमित दृष्टि, और पीड़ा का भय हमारी प्रार्थनाओं के स्वरूप को प्रभावित करता तथा बिगाड़ता रहेगा। परन्तु हम धन्यवादी हो सकते हैं कि परमेश्वर का आत्मा हमारी सहायता करता है और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार प्रार्थना करने में हमारा मार्गदर्शन करता है (पद 27), हमें स्मरण करवाता है कि हमारी प्रत्येक परिस्थिति और अनुभव अन्ततः हमारे लिए भलाई ही को उत्पन्न करेगा (पद 28)।

      जब परमेश्वर के महान उद्देश्य में हम अपनी छोटे सी भूमिका को स्वीकार कर लेते हैं, तो हम मेरी माँ के शब्दों “परमेश्वर भला है और बस इतना काफी है। वह जो भी निर्णय करे, मुझे स्वीकार है, मैं शान्ति से हूँ” की पुष्टि करते हैं। परमेश्वर की भलाई में भरोसा रखते हुए, हम विश्वास रख सकते हैं कि हमारी प्रार्थनाओं का वह जो भी उत्तर देगा, वह उसकी इच्छा के अनुसार और महिमा के लिए होगा। - डिक्सन


परमेश्वर के उत्तर हमारी प्रार्थनाओं से अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण होते हैं।

संकट के समय मैं ने यहोवा को पुकारा, और उसने मेरी सुन ली। - भजन 120:1

बाइबल पाठ: रोमियों 8:19-30
Romans 8:19 क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है।
Romans 8:20 क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर आधीन करने वाले की ओर से व्यर्थता के आधीन इस आशा से की गई।
Romans 8:21 कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।
Romans 8:22 क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।
Romans 8:23 और केवल वही नहीं पर हम भी जिन के पास आत्मा का पहिला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की, अर्थात अपनी देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं।
Romans 8:24 आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहां रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उस की आशा क्या करेगा?
Romans 8:25 परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उस की आशा रखते हैं, तो धीरज से उस की बाट जोहते भी हैं।
Romans 8:26 इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये बिनती करता है।
Romans 8:27 और मनों का जांचने वाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है।
Romans 8:28 और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।
Romans 8:29 क्योंकि जिन्हें उसने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे।
Romans 8:30 फिर जिन्हें उसने पहिले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।

एक साल में बाइबल:  
  • न्यायियों 13-15
  • लूका 6:27-49



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें