ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 30 मई 2019

क्षमा



      मेरे साथ प्रति सप्ताह प्रार्थना करने वाली मेरी सहेली से मैं एक अन्य मित्र के बारे में बात कर रही थी कि कैसे उसके गलत निर्णय और चुनाव उसे पाप में और गहरा लिए जा रहे थे। मेरी सहेली ने मेरे हाथ के ऊपर हाथ रखते हुए कहा, “आओ हम अपने लिए प्रार्थना करें।” मैंने भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा, “अपने लिए?” उसने कहा “हाँ! क्या तुम ही नहीं कहती हो कि हमें प्रभु यीशु को पवित्रता का मानक बनाना चाहिए; इसलिए हमें अपने पापों की तुलना औरों के पापों के साथ नहीं करनी चाहिए।” मैंने उत्तर दिया, “यह सत्य है, और दुखदायी भी। मेरा आलोचनात्मक व्यवहार और आत्मिक घमण्ड करने का पाप उसके पाप से कम या अधिक नहीं है।” मेरी सहेली ने आगे कहा, “तुम्हारे उस मित्र के बारे में ऐसे बातें करने के द्वारा हम बकवाद कर रहे हैं; और यह भी...” और मैंने सिर झुका कर उसका वाक्य पूरा किया, “पाप है।” फिर मैंने अपनी सहेली से अनुरोध किया, “कृपया हम सब के लिए प्रार्थना करो।”

      परमेश्वर के वचन बाइबल में, लूका 18 अध्याय में प्रभु यीशु ने एक दृष्टांत दिया, दो व्यक्तियों के बारे में जो प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के मंदिर पर आए, किन्तु उनकी प्रार्थनाएं बिलकुल भिन्न थीं (पद 9-14)। उन दोनों में से एक फरीसी, अर्थात धार्मिक अगुआ था, और उसकी प्रार्थना उस दूसरे व्यक्ति, जो एक चुंगी लेने वाला था, के साथ उसके जीवन की तुलना थी। हम भी उस फरीसी के समान औरों के साथ अपने जीवन की तुलना करने के छलावे में फंस सकते हैं। तब हम अपने बारे में घमण्ड करने लगते हैं और ऐसे जीने लगते हैं मानो दूसरों का न्याय करने और उन्हें बदलने का अधिकार हमारे पास है।

      परन्तु जब पवित्रता के जीवन के लिए हम प्रभु यीशु को अपना मानक और उदाहरण बनाते हैं, तब हम स्वयं प्रभु की भलाई का अनुभव करते हैं; और जैसे उस चुंगी लेने वाले ने कहा, परमेश्वर के अनुग्रह के लिए हमारी आवश्यकता भी बढ़ जाती है। जब हम प्रभु के प्रेम भरे अनुग्रह और क्षमा का व्यक्तिगत रीति से अनुभव करते हैं, तो हम सदा के लिए बदल जाते हैं, और फिर किसी आलोचना को नहीं वरन उस क्षमा को औरों तक पहुँचाने वाले बन जाते हैं। - जोशील डिक्सन


जब प्रभु के अनुग्रहपूर्ण दया की हमारी गहरी आवश्यकता का हमें बोध होता है, 
तब ही हम औरों के प्रति भी उस दया को प्रदर्शित करने पाते हैं।

इसलिये यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्‍वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा। - मत्ती 6:14-15

बाइबल पाठ: लूका 18:9-14
Luke 18:9 और उसने कितनो से जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और औरों को तुच्‍छ जानते थे, यह दृष्‍टान्‍त कहा।
Luke 18:10 कि दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेने वाला।
Luke 18:11 फरीसी खड़ा हो कर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, कि हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों के समान अन्‍धेर करने वाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूं।
Luke 18:12 मैं सप्‍ताह में दो बार उपवास करता हूं; मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं।
Luke 18:13 परन्तु चुंगी लेने वाले ने दूर खड़े हो कर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी छाती पीट-पीटकर कहा; हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर।
Luke 18:14 मैं तुम से कहता हूं, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जा कर अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।

एक साल में बाइबल:  
  • 2 इतिहास 10-12
  • यूहन्ना 11:30-57



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें