ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 28 मार्च 2019

फल



      वायु-यान की खिड़की से दिखने वाला वह दृश्य ध्यान आकर्षित करने वाला था: दो बंजर पहाड़ों के बीच की उस वादी में पकते हुए गेहूँ के खेत और फलों के बगीचे का एक पतला सा इलाका दिखाई दे रहा था, और एक जीवन-दायी जल की नदी बह रही थी। यदि वह नदी नहीं होती तो वहाँ कोई फल भी नहीं होता।

      जैसे भरपूरी की फसल स्वच्छ जल के स्त्रोत के विद्यमान होने पर निर्भर है, उसी प्रकार मेरे मसीही जीवन, मेरे शब्दों, मेरे कार्यों, और मेरे रवैये से उत्पन्न होने वाले “फल” भी मुझ में प्रवाहित होने वाले आत्मिक ‘जल’ पर निर्भर हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल में भजनकार ने लिखा कि जो व्यक्ति परमेश्वर की व्यवस्था में मगन रहता है वह ऐसे फलवन्त होगा मानो बहती नालियों के के किनारे लगा हुआ वृक्ष हो जो अपनी ऋतु में फलदाई होता है (भजन 1:1-3)। प्रेरित पौलुस ने भी लिखा कि जो परमेश्वर की पवित्र-आत्मा के चलाए चलते हैं उनके जीवनों में आत्मा के गुणों के फल बने रहेंगे (गलातियों 5:22-23)।

      कभी-कभी मेरा दृष्टिकोण या मेरी परिस्थितियाँ अप्रिय हो जाते हैं, और तब मेरे शब्द तथा मेरे कार्य भी कठोर हो जाते हैं। मेरे जीवन से अच्छा फल नहीं आता, और मुझे एहसास होता है कि मैंने परमेश्वर और उसके वचन के साथ उपयुक्त समय नहीं बिताया है, उस जीवन-दायी जल को अपने में से प्रवाहित होकर उसे मुझे स्वच्छ और फलवन्त करने नहीं दिया है। परन्तु जब मेरे दिन की प्रत्येक गतिविधि परमेश्वर के वचन के अनुसार और उस पर आधारित हो कर होती है, तब मैं अच्छा फल लाने लगता हूँ; तब धैर्य और नम्रता मेरे व्यवहार का अंग होते हैं, और मेरे लिए कुड़कुड़ाने के स्थान पर कृतज्ञ रहना सहज रहता है।

      जिस परमेश्वर ने अपने आप को समस्त सँसार पर प्रभु यीशु मसीह में होकर प्रगट किया है वह हमारे लिए सामर्थ्य, बुद्धि, आनन्द, समझ-बूझ, और शान्ति का स्त्रोत है (भजन 119: 28, 98, 111, 144, 165)। जब हम अपने आप को प्रभु यीशु मसीह के प्रति समर्पित होकर परमेश्वर के वचन से ओत-प्रोत कर लेते हैं, तब जीवन-दायी जल के प्रभाव के समान, परमेश्वर की पवित्र-आत्मा के फल भी हमारे जीवनों से प्रगट होने लगते है। - पीटर चिन, अतिथि लेखक


परमेश्वर का आत्मा उसके लोगों में निवास करता है, जिससे उनमें होकर अपना कार्य करे।

पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं। - गलतियों 5:22-23

बाइबल पाठ: भजन 1
Psalms 1:1 क्या ही धन्य है वह पुरूष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करने वालों की मण्डली में बैठता है!
Psalms 1:2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है।
Psalms 1:3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरूष करे वह सफल होता है।
Psalms 1:4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है।
Psalms 1:5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे;
Psalms 1:6 क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा।

एक साल में बाइबल: 
  • न्यायियों 4-6
  • लूका 4:31-44