बुधवार, 16 दिसंबर 2020

दर्पण

 

          मैं जब अपने होटल से बाहर निकला, तो मुझे देखकर मेरी सहायिका, जो मुझे सेमिनार के स्थान को ले जाने के लिए आई थी, के चेहरे पर एक विचित्र सी मुस्कराहट आ गई। मैंने उस से पूछा, “हास्यास्पद क्या है?” तो वह हंस पड़ी और मुझ से पूछा, “क्या आप ने अपने बाल बनाए हैं?” अब हंसने की मेरी बारी थी, क्योंकि मैं वास्तव में बाल बनाना भूल गया था। मैंने होटल के दर्पण में अपने आप को देखा तो था, लेकिन फिर भी जो मुझे दिखाई दिया, न जाने क्यों मैंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया था।

          परमेश्वर के वचन बाइबल में याकूब अपनी पत्री में इसी दिखाई देने वाली बात पर ध्यान न देने का एक व्यावहारिक उदाहरण लिखता है। परमेश्वर का पवित्र शास्त्र एक दर्पण के समान है। हम तैयार होते समय अपने आप को दर्पण में देखते हैं, कि हमारे स्वरूप में कहीं कोई ऐसी बात तो नहीं है हमें जिसे ठीक कर लेना चाहिए? क्या हमारे बाल ठीक से बने हुए, चेहरा धुला हुआ, कमीज़ के बटन ठीक से लगे हुए, और कमीज़ ठीक से पैंट में की गई है कि नहीं? दर्पण के समान ही बाइबल भी हमें अपने चरित्र, रवैये, विचारों, और व्यवहार को जाँचने में सहायता करती है (याकूब 1:23-24)। ऐसा करने से हम परमेश्वर द्वारा दिए गए जीवन के सिद्धांतों के साथ अपने आप को अनुकूलित करने और उनके अनुसार जीवन जीने के लिए जाँच-परख सकते हैं। तब हम अपनी जीभ पर लगाम (पद 26), तथा विधवाओं और अनाथों की सुधि (पद 27) रख सकते हैं। तब हम अपने अन्दर निवास करने वाले परमेश्वर पवित्र आत्मा की बातों का पालन करेंगे, और अपने आप को संसार से दूषित होने (पद 27) से बचाए रखेंगे।

          जब हम परमेश्वर की सिद्ध व्यवस्था पर, जो हमें पाप के दासत्व से स्वतंत्र करती है, ध्यान देंगे, और उसे अपने जीवनों में लागू करेंगे, तो हम जो करेंगे उसमें आशीष पाएँगे (पद 25)। परमेश्वर के पवित्र शास्त्र में अपने आप का निरीक्षण करते रहने के द्वारा हम उस वचन को जो हमारे हृदयों में बोया गया है, नम्रता से ग्रहण भी कर सकेंगे (पद 21)। - लॉरेंस दर्मानी

 

दर्पण के समान बाइबल हमारे भीतरी मनुष्यत्व को प्रतिबिंबित करती है।


क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं! - भजन 119:1

बाइबल पाठ: याकूब 1:16-27

याकूब 1:16 हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ।

याकूब 1:17 क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है।

याकूब 1:18 उसने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उस की सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल हों।

याकूब 1:19 हे मेरे प्रिय भाइयों, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।

याकूब 1:20 क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता है।

याकूब 1:21 इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर कर के, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।

याकूब 1:22 परन्तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।

याकूब 1:23 क्योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है।

याकूब 1:24 इसलिये कि वह अपने आप को देख कर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि मैं कैसा था।

याकूब 1:25 पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर नहीं, पर वैसा ही काम करता है।

याकूब 1:26 यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है।

याकूब 1:27 हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें।

 

एक साल में बाइबल: 

  • आमोस 4-6
  • प्रकाशितवाक्य 7

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