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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

धन्य


     उस निराश विद्यार्थी ने दुखी होकर कहा, “यह मुझ से नहीं होगा।” उसे उस पृष्ठ पर केवल छपे हुए छोटे अक्षर, कठिन विचार, और कार्य पूरा करने की बेरहम सीमा ही दिखाई दे रही थी। उसे अपने शिक्षक की सहायता की आवश्यकता थी।

     जब हम परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रभु यीशु द्वारा प्रचार किया गया पहाड़ी उपदेश पढ़ते हैं, तो हमें भी ऐसी ही निराशा का अनुभव हो सकता है। जब प्रभु हम से कहता है, “अपने शत्रुओं से प्रेम करो” (मत्ती 5:44); क्रोध करना हत्या करने के समान ही बुरा है (पद 22); कुदृष्टि व्यभिचार ही के बराबर है (पद 28); और यदि हम यह सोचने भी लग जाएं कि हम इन मानकों को निभा लेंगे, तो हमारा सामना “इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्‍वर्गीय पिता सिद्ध है ” (पद 48) से होता है।

     सुप्रसिद्ध प्रचारक ओस्वौल्ड चैम्बर्स ने कहा, “पहाड़ी उपदेश की शिक्षाएँ निराशा उत्पन्न करती हैं।” परन्तु उन्होंने इसे अच्छा ही समझा, क्योंकि “निराश होने पर ही हम, मानों कंगाल बनकर, उसी से प्राप्त करने के लिए प्रभु यीशु के पास आने के लिए तैयार होते हैं।” परमेश्वर कभी-कभी सहजज्ञान से उलट मार्ग के द्वारा कार्य करता है, जिससे वे जो यह जानते हैं कि वो अपने आप से कुछ नहीं कर सकते हैं, वे ही परमेश्वर के अनुग्रह प्राप्त करने के पात्र बन जाते हैं। जैसा प्रेरित पौलुस ने लिखा, “हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञान वालों को लज्ज़ित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्ज़ित करे” (1 कुरिन्थियों 1:26-27)।

     परमेश्वर की बुद्धिमता में, हमारा शिक्षक ही हमारा उद्धारकर्ता भी है। हम जब भी उसके पास विश्वास के साथ आते हैं, तो उसकी आत्मा के द्वारा हम उसकी धार्मिकता, पवित्रता, और छुटकारे का आनन्द लेने पाते हैं (पद 30), और उसके लिए जीवन जीने का अनुग्रह और सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। इसी लिए प्रभु ने कहा, “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है” (मत्ती 5:3)। - टिम गुस्ताफसन

 

परमेश्वर के पुत्र में होकर हम उसके राज्य में जीवन का आनन्द ले सकते हैं।


इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें। - गलतियों 3:24

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 1:26-31

1 कुरिन्थियों 1:26 हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए।

1 कुरिन्थियों 1:27 परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञान वालों को लज्ज़ित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्ज़ित करे।

1 कुरिन्थियों 1:28 और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्‍छों को, वरन जो हैं भी नहीं उन को भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए।

1 कुरिन्थियों 1:29 ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के साम्हने घमण्‍ड न करने पाए।

1 कुरिन्थियों 1:30 परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा।

1 कुरिन्थियों 1:31 ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जो घमण्‍ड करे वह प्रभु में घमण्‍ड करे।    

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 18-19
  • प्रेरितों 20:17-38