ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 21 दिसंबर 2020

डर

 

          परमेश्वर के वचन बाइबल में जब भी कहीं कोई स्वर्गदूत प्रगट होता है, लगभग हर बार जो पहला वाक्य वह कहता है, होता है “डरो मत!” और इसमें कोई अचरज की बात नहीं है। जब भी कुछ अलौकिक पृथ्वी के लोगों के साथ संपर्क में आता है, पृथ्वी के लोग डर में मारे औंधे मुँह गिर पड़ते हैं। परन्तु लूका परमेश्वर के एक ऐसे स्वरूप में प्रगट होने के बारे में बताता है जिससे डर नहीं लगता है। प्रभु यीशु को जन्म के बाद चरनी में लेटाया गया, और इसमें डरने की क्या बात हो सकती है? एक नवजात शिशु से कोई क्यों डरेगा?

          पृथ्वी पर यीशु परमेश्वर और मनुष्य दोनों ही हैं। परमेश्वर होने के नाते वे आश्चर्यकर्म कर सकते हैं, पापों को क्षमा कर सकते हैं, मृत्यु पर जय पा सकते हैं, और भविष्य बता सकते हैं। परन्तु यहूदियों के लिए जिनके मन में परमेश्वर एक चमकीले बादल या आग के खम्भे के समान था, यीशु बहुत असमंजस का कारण हैं। उनके विचारों के सन्दर्भ में, बैतलहम का एक शिशु, एक बढ़ई का पुत्र, नासरत का एक व्यक्ति, कैसे परमेश्वर का उद्धारकर्ता मसीहा हो सकता था?

          परमेश्वर ने मनुष्य का स्वरूप क्यों लिया? बारह वर्षीय प्रभु यीशु के मंदिर में रब्बियों के साथ चर्चा करने का दृश्य हमने एक संकेत देता है। लूका बताता है, और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे” (लूका 2:47)। यह पहली बार था कि सामान्य लोग, सीधे से परमेश्वर के प्रत्यक्ष स्वरूप के साथ बात तथा संपर्क कर सकते थे।

          प्रभु यीशु आज भी हम सभी से बात करता है, उसे कभी भी “डरो मत!” कहने की आवश्यकता नहीं होती है। जितने उसके पास नम्रता में विश्वास तथा समर्पण के साथ आते हैं, वह उन सभी से बात करता है। जब हम सच्चे और खरे मन से उसके पास आते हैं, तो हमें उससे बात करने से डरने की आवश्यकता नहीं है। - फिलिप यैन्सी

 

यीशु एक ही व्यक्तित्व में परमेश्वर और मनुष्य दोनों थे, 

जिससे परमेश्वर और मनुष्य दोनों फिर से 

एक साथ आनन्दित रह सकें। - जॉर्ज वाइटफील्ड


जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, उसे मैं कभी न निकालूंगा। - यूहन्ना 6:37

बाइबल पाठ: लूका 2:42-52

लूका 2:42 जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए।

लूका 2:43 और जब वे उन दिनों को पूरा कर के लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे।

लूका 2:44 वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचानों में ढूंढ़ने लगे।

लूका 2:45 पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए।

लूका 2:46 और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया।

लूका 2:47 और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे।

लूका 2:48 तब वे उसे देखकर चकित हुए और उस की माता ने उस से कहा; हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे।

लूका 2:49 उसने उन से कहा; तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?

लूका 2:50 परन्तु जो बात उसने उन से कही, उन्होंने उसे नहीं समझा।

लूका 2:51 तब वह उन के साथ गया, और नासरत में आया, और उन के वश में रहा; और उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं।

लूका 2:52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया।

 

एक साल में बाइबल: मीका 4-5; प्रकाशितवाक्य 12