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बुधवार, 8 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा के वरदान - 6


पुनःअवलोकन, निष्कर्ष, परमेश्वर की कार्य-विधि, और शैतान की भ्रामक युक्तियाँ  

पुनःअवलोकन:

मसीही जीवन और सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा द्वारा मसीही विश्वासियों को दिए गए वरदानों की इस अध्ययन शृंखला में हम अभी तक उन आधारभूत बातों को देखते आए हैं, जिनकी समझ और विचार रखना, पवित्र आत्मा के वरदानों के उपयोग के बारे में समझने के लिए अनिवार्य है। यदि परमेश्वर के वचन की इन मौलिक शिक्षाओं को ध्यान में रखे बिना हम पवित्र आत्मा के वरदानों और उपयोग को समझने के प्रयास करेंगे, तो बहुत सी गलतियों में पड़ सकते हैं, जो हमें सत्य से भटका देंगी। इस संदर्भ में हम अभी तक देख चुके हैं कि:

  • परमेश्वर स्वयं कार्यशील है और अपने लोगों को भी कार्यशील देखना चाहता है। 
  • परमेश्वर ने लोगों को मसीही विश्वास में निठल्ले होने तथा निष्क्रिय एवं निष्फल रहते हुए परमेश्वर की आशीषों को उपयोग करते रहने के लिए नहीं लिया है। 
  • परमेश्वर ने प्रत्येक मसीही विश्वासी द्वारा परमेश्वर के लिए करने के लिए कुछ न कुछ कार्य निर्धारित किए हैं। 
  • परमेश्वर द्वारा निर्धारित किए गए इन कार्यों को सुचारु रीति से करने के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा स्वतः ही प्रत्येक मसीही विश्वासी को उस कार्य के लिए उपयुक्त कोई न कोई वरदान अवश्य देता है। 

साथ ही हमने मसीही विश्वासी के जीवन और सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका के संदर्भ में यह भी देखा है कि मसीही विश्वास में आते ही तुरंत ही उसी पल से हर विश्वासी के अन्दर पवित्र आत्मा आकर निवास करने लगता है; इसके किसी को लिए कोई अलग से प्रार्थना या प्रयास नहीं करना पड़ता है। यह मसीही विश्वास में आने के साथ ही, परमेश्वर द्वारा निर्धारित की गई और स्वतः ही होने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है। इससे संबंधित जो दूसरी महत्वपूर्ण बात हमने देखी थी वह थी कि व्यक्ति में पवित्र आत्मा की उपस्थिति उस व्यक्ति के बदले हुए जीवन और उसमें दिखने वाले आत्मा के फलों (गलातीयों 5:22-23) के द्वारा प्रमाणित होती है, न कि बाइबल के बाहर की विचित्र हरकतों, उछल-कूद, शोर-शराबे आदि के व्यवहार से, अथवा चिह्न-चमत्कार आदि करने के द्वारा।

निष्कर्ष:

शैतान का उद्देश्य सदा ही परमेश्वर के कार्य में बाधाएं डालना और उसकी योजनाओं को असफल करने के प्रयास करना रहता है। क्योंकि परमेश्वर मसीही विश्वासियों में होकर संसार में और संसार के लोगों के समक्ष अपने कार्य करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्यों को बाधित करने के लिए शैतान मसीही विश्वासियों को व्यर्थ की बातों में उलझा कर रखता है जिससे वे अपने निर्धारित कार्य न कर सकें, और उसके द्वारा फैलाई जाने वाली भक्तिपूर्ण प्रतीत होने वाली किन्तु वास्तविकता में भरमाने वाली युक्तियों में उलझे रह कर समय बर्बाद करते रहें। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह मसीही विश्वासियों को जाने-अनजाने में परमेश्वर का अनाज्ञाकारी भी बना कर रखता है। यह समझते हुए कि वे परमेश्वर के लिए, या परमेश्वर की ओर से कार्य कर रहे हैं, वे अपनी ही धारणाओं, इच्छाओं, और मनुष्यों की मन-गढ़न्त बातों तथा गलत शिक्षाओं के अनुसार कार्य करते रहते हैं, और अन्ततः उनके सभी कार्य और प्रयास व्यर्थ एवं निष्फल होते हैं। शैतान की एक और कार्य-विधि है मसीही विश्वासी को उसके वरदानों और उनकी उपयोगिता के बारे में अनभिज्ञ रखना, या उन्हें ठीक से उपयोग नहीं करने देना, उनके बारे में उसे गलत शिक्षाओं में फंसा देना। 

परमेश्वर की कार्य-विधि:

परमेश्वर ने सदा ही समस्त मानवजाति की भलाई के लिए ही कार्य किया है। जब पृथ्वी पर पाप  बहुत बढ़ गया, और परमेश्वर ने जल-प्रलय के द्वारा पापी मनुष्यों के नाश की ठान ली, तब भी उसने उनके लिए जो पापों से पश्चाताप कर लें, उसकी चेतावनियों को मान लें, अपनी बुराई से पलट जाएं, उनके बचाए जाने के लिए नूह के द्वारा एक जहाज़ बनवाया; किन्तु नूह और उसके परिवार को छोड़ और किसी ने परमेश्वर की नहीं सुनी, संसार के लोगों ने परमेश्वर की चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया, और जल-प्रलय में नाश हो गए। जब परमेश्वर अब्राहम को मूर्तिपूजकों में से निकालकर कनान में लेकर आया, तो अब्राहम को दी गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा में भी समस्त पृथ्वी की भलाई की योजना थी। उस समय, “यहोवा ने अब्राम से कहा, अपने देश, और अपनी जन्मभूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा। और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम बड़ा करूंगा, और तू आशीष का मूल होगा। और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे” (उत्पत्ति 12:1-3)। जब परमेश्वर ने अब्राहम के वंशजों, इस्राएलियों को अपने लोग होने के लिए चुना, तो उनमें होकर सच्चे परमेश्वर के विमुख एवं अनाज्ञाकारी हो चुके संसार के लोगों के सामने अपनी भलाई, अपने लोगों की देखभाल, और उनमें होकर अपनी सामर्थ्य तथा सार्वभौमिकता को दिखाया। किन्तु उसके सभी प्रमाणों के बावजूद संसार ने इस्राएल के परमेश्वर को नहीं अपनाया, वरन उलटे इस्राएल ने ही संसार की बातों को अपना लिया और परमेश्वर से दूर चला गया। उसका हर रीति से तिरस्कार किए जाने के बावजूद, फिर भी परमेश्वर सभी की देखभाल करता रहता है, सभी मनुष्यों को उसकी सृष्टि का उपयोग करने देता है, सभी की आवश्यकताओं को पूरा करता रहता हैजिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है” (मत्ती 5:45)। प्रभु यीशु मसीह में होकर भी परमेश्वर ने किसी जाति-विशेष, अथवा कुछ विशेष लोगों के लिए नहीं, परंतु समस्त मानवजाति के पापों की क्षमा, उद्धार, और परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप कर लेने और अनन्तकाल के लिए परमेश्वर के साथ स्वर्ग के निवासी होने के लिए मार्ग बनाकर दिया। 

परमेश्वर के कार्यों और वरदानों के संबंध में यह एक बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत है, कि परमेश्वर का हर कार्य, हर आशीष, हर योजना, उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली हर सामर्थ्य, कभी भी किसी व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं होती है, वरन उस व्यक्ति में होकर सभी की भलाई और उन्नति के लिए, संसार के लोगों को परमेश्वर के बारे में बताने, उसकी ओर आकर्षित करने, और उसकी निकटता में लाने के लिए होती है। परमेश्वर द्वारा दी जाने वाली बातों और सामर्थ्य से संबंधित इस मौलिक सिद्धांत की कभी अनदेखी नहीं करनी चाहिए, अन्यथा बहुत सी गलतियों में पड़ जाएंगे। और पवित्र आत्मा द्वारा दिए जाने वाले वरदानों को लेकर शैतान ने बहुत से लोगों को, विशेषकर उनको जो पवित्र आत्मा के नाम से गलत शिक्षाओं को सिखाते और फैलाते हैं, इसी गलती में फंसा रखा है।

शैतान की भ्रामक युक्तियाँ:

यदि आप थोड़ा सा भी विचार करें तो यह तुरंत ही प्रकट हो जाता है कि ये गलत शिक्षाएं फैलाने वाले लोग जिन पवित्र आत्मा के वरदानों और सामर्थ्य की बातें करते हैं, जिन्हें मांगने और पाने के लिए सिखाते हैं, वे सभी व्यक्ति द्वारा अपने उपयोग के लिए या व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सामाजिक अथवा मण्डली में स्तर को बढ़ाने, लोगों से प्रशंसा पाने, व्यक्ति के अहम को बढ़ाने वाले होते हैं। दुख की बात यह है कि इन सभी वरदानों को भी परमेश्वर पवित्र आत्मा ने मण्डली तथा लोगों की भलाई के लिए दिया है, किन्तु जिस प्रकार से और जिस स्वरूप में ये लोग उन वरदानों को प्रस्तुत करते हैं, उससे उनकी वास्तविक उपयोगिता एवं दिए जाने का उद्देश्य भ्रष्ट हो जाता है। यह भक्ति और आत्मिकता के भेष में ढाँप कर, शैतान की कुटिलता और झूठ को लोगों में बैठा देने और फैला देने का तरीका है। शैतान के इस चंगुल में फँस कर वे लोग अपने इन वरदानों को व्यर्थ कर देते हैं, और जिनकी सेवकाई के लिए ये वरदान थे, वे लोग निष्क्रिय तथा निष्फल हो जाते हैं, अपनी आशीषों को गँवा देते हैं। उनके लिए वह दिन और समय कितना भयानक और हृदय-विदारक होगा, जब मत्ती 7:23 के अनुरूप, प्रभु यीशु मसीह उनसे कहेगा, “मैं ने तुम को कभी
नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ यदि उन्होंने परमेश्वर के वचन को गंभीरता से लिया होता, मनुष्यों की धारणाओं और मन-गढ़न्त बातों के अनुसार नहीं वरन बाइबल की बातों के अनुसार सीखा होता, स्वीकार करने से पहले सभी शिक्षाओं को बारीकी से जाँचा-परख होता, तो वे कभी शैतान की इन चालों में नहीं फँसते, परमेश्वर पवित्र आत्मा उन्हें वचन की सच्चाइयों को दिखाता, बताता, और समझाता। किन्तु उन्होंने परमेश्वर के वचन के स्थान पर मनुष्यों की बातों को अधिक महत्व दिया, और अपनी सेवकाई व्यर्थ कर ली, अपनी अनन्तकालीन आशीषें गँवा दीं। 

यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो पवित्र आत्मा के वरदानों से संबंधित अपने विचारों, मान्यताओं, और धारणाओं को परमेश्वर के वचन से जाँच-परख लें, और सुनिश्चित कर लें कि आप किसी गलत शिक्षा अथवा मनुष्य की गढ़ी हुई बातों में नहीं फंसे हुए हैं, वरन वचन की खराई और सही शिक्षा में ही स्थापित हैं। समय रहते सुधार न करने के परिणाम, वर्तमान में तथा अनन्तकाल के लिए, बहुत हानिकारक हो सकते हैं। प्रभु द्वारा मत्ती 7:23 में तथा उन पाँच मूर्ख कुँवारियों से कही गई बात को स्मरण कीजिए - बाद में सुधार का प्रयास करने से उन्हें कुछ लाभ नहीं हुआ, वे प्रभु से दूर ही रहे। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • दानिय्येल 8-10    
  • 3 यूहन्ना 1

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