ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

सीखो और बढ़ो

 

          मेरे एक मित्र ने मुझे, अपने जीवन और अनुभवों के आधार पर, एक बहुत उपयोगी और बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह दी। अपने व्यावसायिक जीवन के आरंभिक वर्षों में, जब मेरा मित्र, आलोचना तथा प्रशंसा, दोनों ही से व्यवहार करना सीखने में संघर्ष कर रहा था, तो उसे लगा कि परमेश्वर उससे कह रहा ही कि वह दोनों ही को पीछे छोड़ते हुए आगे ही बढ़ता जाए। जो बात उसने सीखी, उसका सार यही था कि वह आलोचना और प्रशंसा से जो भी सीख सकता है, उसे सीख कर, दोनों ही को पीछे छोड़ दे, और परमेश्वर के अनुग्रह में दीन होकर आगे बढ़ता जाए।

          आलोचना और प्रशंसा, दोनों ही हमारे अन्दर प्रबल भावनाएँ जगाते हैं, और यदि इन दोनों ही प्रकार की भावनाओं को नियंत्रण में नहीं रखा गया, तो ये या तो हमें अत्यधिक आत्म-ग्लानि में अथवा अत्यधिक घमण्ड में ले जाएँगी। परमेश्वर के वचन बाइबल में, नीतिवचन की पुस्तक में हम औरों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह देने के लाभ के बारे में पढ़ते हैं: “अच्छे समाचार से हड्डियां पुष्ट होती हैं ... जो शिक्षा को सुनी-अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डांट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है” (15:30, 32)।

          यदि हमें किसी से फटकार सुननी पड़ रही है, तो हम यह ठान लें कि हम उस से अपने अन्दर उचित सुधार लाएँगे। नीतिवचन में लिखा है,जो जीवनदायी डांट कान लगा कर सुनता है, वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है” (पद 31)। और यदि हमें प्रशंसा के शब्दों से आशीषित किया जा रहा है, तो हम उन से तरोताजा होकर कृतज्ञ भी हो जाएँ। जब हम परमेश्वर के साथ नम्रता पूर्वक चलते हैं, तो वह हमें आलोचना और प्रशंसा, दोनों ही से सीखने वाला बना सकता है। और फिर परमेश्वर के मार्गदर्शन में हम उन्हें वहीं छोड़कर और आगे बढ़ते जा सकते हैं (पद 33)। - रूथ ओ-रियली-स्मिथ

 

आलोचना अथवा प्रशंसा पर रुक कर न बैठें, वरन उन्हें सीढ़ी बनाकर और आगे बढ़ जाएँ।


इसलिये परमेश्वर के बलवन्‍त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। - 1 पतरस 5:6

बाइबल पाठ: नीतिवचन 15:30-33

नीतिवचन 15:30 आंखों की चमक से मन को आनन्द होता है, और अच्छे समाचार से हड्डियां पुष्ट होती हैं।

नीतिवचन 15:31 जो जीवनदायी डांट कान लगा कर सुनता है, वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है।

नीतिवचन 15:32 जो शिक्षा को सुनी-अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डांट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है।

नीतिवचन 15:33 यहोवा के भय मानने से शिक्षा प्राप्त होती है, और महिमा से पहिले नम्रता होती है।

 

एक साल में बाइबल: 

  • लैव्यव्यवस्था 25
  • मरकुस 1:23-45