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रविवार, 22 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान – 10


बाइबल और जीव-विज्ञान -

       इस शीर्षक के अंतर्गत पिछले दो लेखों में हम देख चुके हैं कि किस प्रकार से सारे संसार भर के ऊंचे पर्वतों की ऊंचाइयों पर पाए जाने वाले जल-जंतुओं के जीवाश्म (fossils) विद्यमान हैं, किन्तु थल के जंतुओं के जीवाश्म वहाँ विद्यमान नहीं हैं। यह तथा कुछ अन्य प्रश्न कि कब और कैसे रासायनिक एवं भौतिक क्रियाओं (chemical and physical reactions) द्वारा बने पदार्थों मेंजीवनआया; जीवन क्या है; और मृत्यु के समय शरीर से ऐसा क्या चला जाता है जिससे शरीर मृत कहा जाता है जबकि उसी मृत शरीर से लिए गए अंग, किसी अन्य में प्रत्यारोपित करके उस दूसरे शरीर के जीवन को बचाया जा सकता है, आदि - क्रमिक विकासवाद (evolution) के मानने वालों के लिए बड़ा और बिना समाधान का सिरदर्द बने हुए हैं, और उनके पास इनका कोई संतोषजनक उत्तर, वास्तव में कोई उत्तर ही नहीं है।

       क्रमिक विकासवाद का दावा है कि समय के साथ, जीव-जंतुओं में होनी वाली आकस्मिक क्रियाएं उन्हें धीरे-धीरे विकसित करती चली गईं; कुछ आकस्मिक रीति से बने विशिष्ट रासायनिक पदार्थों के स्वतः ही आकस्मिक रीति से एकत्रित होने से उन्होंने आरंभिक अपक्क (crude) जीवों का रूप लिया, और फिर इसी आकस्मिक, अनियोजित, अनियंत्रित (sudden, unorganised, uncontrolled) क्रियाओं के होते चले जाने से वे अपक्क जीव उन्नत होते चले गए और अन्ततः इस वर्तमान स्वरूप में आ गए जैसे हम आज उन्हें देखते हैं। हम पिछले लेख में देख चुके हैं कि किसी भी उत्पाद के बनाए जाने में प्रयोग की जाने वाली रासायनिक क्रियाओं को कितनी बारीकी और ध्यान से नियोजित, नियंत्रित, और संचालित (plan and control) करना पड़ता है, अन्यथा कभी भी कोई भी दुर्घटना हो सकती है, सारी प्रक्रिया खराब हो सकती है। असमंजस की बात तो यह है कि कितने ही वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी जो जीव-जंतुओं में होने वाली क्रियाओं से बहुत कम जटिल पदार्थों का उत्पादन करने वाली इन क्रियाओं को स्वयं योजनाबद्ध तरीकों से नियंत्रित और संचालित करते हैं, उन्हें यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होता है कि जीव-जंतुओं में होने और उन्हें उन्नत करने वाली ये क्रियाएं स्वतः ही अनियोजित और बिना नियंत्रण अथवा संचालन के संभव होती चली गईं!

साथ ही क्रमिक विकासवाद का यह भी दावा है कि यह उन्नत होते चले जाने की प्रक्रिया आज भी ज़ारी है, किन्तु क्योंकि यह बहुत धीमी और अप्रत्यक्ष है, इसलिए हमें दिखाई नहीं देती है।बहुतसमय के बाद मनुष्यों तथा अन्य जीव-जंतुओं में होने वाली यहउन्नतिदिखाई देगी। चलिए एक बार को, केवल तर्क के लिए, उनके इस स्पष्टीकरण को मान लेते हैं। यह एक साधारण समझ और सामान्य-ज्ञान की बात है कि किसी भी स्वतः ही होने वाली अनियोजित, अनियंत्रित, असंचालित क्रिया द्वारा, तुलनात्मक रीति से, चल रही प्रक्रिया को बाधित करने वाले या उसमें हानि उत्पन्न करने वाले कार्य अधिक, किन्तु लाभ उत्पन्न करने वाले कार्य कम ही मात्रा में होंगे। इसलिए संसार भर में सभी स्थानों पर ऐसे अविकसित और अपक्क जीव-जंतुओं के जीवाश्म बहुतायत से बिखरे हुए होने चाहिएं जिन में ये स्वतः होने वाली आकस्मिक, अनियोजित, अनियंत्रित, असंचालित क्रियाएं कुछ ऐसे परिवर्तन ले आईं जो उन्हें फिर जीवित नहीं रख सके या जिनसे उनकी आयु घट गई और वे बिना और उन्नत हुए शीघ्र ही समाप्त हो गए। यदि क्रमिक विकासवाद का यह सिद्धांत सही है, तो एक से दूसरी प्रजाति की ओर विकसित होते जाने वाले अपूर्ण जंतुओं के जीवाश्म भी बहुतायत से, पूर्ण जंतुओं के जीवाश्मों से अधिक, होने चाहिएँ, क्योंकि धीरे-धीरे एक पूर्णतः विकसित से दूसरी पूर्णतः विकसित प्रजाति में परिवर्तित होने में उन जंतुओं को अनेकों अपूर्ण, अपक्क स्वरूपों से होकर निकालना पड़ेगा। 

     किन्तु, इसके विपरीत, न केवल संसार भर में बहुत कम स्थानों में जीवाश्म पाए जाते हैं, और उन स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाश्मों की संख्या भी अधिक नहीं होती है; वरन जो जीवाश्म पाए भी जाते हैं, वे पूर्णतः विकसित और सटीक जीवित रह सकने वाले जंतुओं के होते हैं। आज तक कभी कोई पूर्णतः अविकसित या अपक्क जन्तु का जीवाश्म नहीं मिला है, और न ही एक से दूसरी प्रजाति में परिवर्तित होते जा रहे किसी जन्तु का जीवाश्म मिला है। अपनी इस हताशा और कुंठा को छुपाने के लिए कुछ तथाकथितवैज्ञानिकोंने ऐसे अपूर्ण और अपक्क जीवाश्म स्वयं बनाकर संसार के सामने उनकी खोज का दावा करा है, जिनमें बंदरों और मनुष्यों के मध्य की कड़ी माने जाने वाले पिल्टडाउन मैन (Piltdown Man) के मानव निर्मित होने की बात जानी-मानी है (https://en.wikipedia.org/wiki/Piltdown_Man)। ऐसा ही एक प्रसिद्ध जीवाश्म है रेंगने वाले सरीसृप (reptiles) और पक्षियों के मध्य के जीव आर्कियोपटेरिक्स का जीवाश्म, जिसे पहले एकमध्य-कड़ीका जीवाश्म माना जाता था, किन्तु अब उसे, तथा अन्य स्थानों पर उसके समान जंतुओं के जीवाश्मों को अपने आप में पूर्णतः विकसित एक प्रकार के थोड़ा सा उड़ पाने वाले डायनोसौर की प्रजाति स्वीकार किया गया है (https://www.nationalgeographic.com/science/article/archaeopteryx-flight-dinosaurs-birds-paleontology-science)। 

      आज लोगविज्ञानके नाम पर ऐसी असंभव और काल्पनिक बातों को तो सहज स्वीकार करने को तैयार हैं किन्तु हजारों वर्ष पूर्व लिखी गई परमेश्वर के वचन बाइबल की बात, “फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात घरेलू पशु, और रेंगने वाले जन्तु, और पृथ्वी के वन-पशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया” (उत्पत्ति 1:24) को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं; यद्यपि वे प्रत्यक्ष अपने सामने देखते हैं कि हर एक जाति अपनी ही जाति के जीव-जंतुओं को उत्पन्न करती है। उस जाति के अन्तर्गत स्वरूप की भिन्नताएँ हो सकती हैं, किन्तु मुख्य जाति नहीं बदलती है। संसार भर में अनेकों स्वरूपों के कुत्ते, बिल्ली, घोड़े, बंदर आदि हैं; कोई भी जन उन्हें देखकर पहचान लेता है कि वे किस जाति के हैं, चाहे उनका स्वरूप कैसा भी हो। उनमें से उत्पन्न होने वाली अगली पीढ़ी भी अपनी ही जाति के अनुसार ही रहती है, बदलती नहीं है; एक से दूसरी जाति उत्पन्न नहीं होती है। मनुष्य ने कृत्रिम तरीकों से जातियों को मिश्रित करके नई जातियों को बनाने के प्रयास किए हैं, किन्तु सभी असफल रहे हैं। मूल जाति कभी नहीं बदलती है। परमेश्वर के नियम स्थापित, अपरिवर्तनीय और अकाट्य हैं। प्रमाण प्रत्यक्ष हैं, सर्व-विदित हैं, सहज स्वीकार्य हैं; किन्तु मनुष्य का दंभ उसे अपने ऊपर परमेश्वर की सार्वभौमिकता को स्वीकार नहीं करने देता है। 

      विज्ञान आज भी यह निर्णीत नहीं करने पाया है पहले मुर्गी आई या अंडा? किन्तु बाइबल के पहले ही अध्याय में, जो सृष्टि की रचना का संक्षिप्त इतिहास है, परमेश्वर ने बता दिया है कि पहले जीव-जन्तु बनाए गए, और फिर उन्हें अपनी जाति के अनुसार अगली पीढ़ी उत्पन्न करने की आशीष, क्षमता, और गुण दिया गयाफिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें। इसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्टि की: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। और परमेश्वर ने यह कह के उनको आशीष दी, कि फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें” (उत्पत्ति 1:20-22)। किन्तु फिर भी मनुष्य इस सीधी-सच्ची बात को स्वीकार करने के स्थान पर अपनी समझ का सहारा लेकर उलझन में फंसा पड़ा है, लेकिन परमेश्वर और उसके वचन बाइबल की सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। 

     बाइबल में हजारों वर्ष पहले लिखे गए सृष्टि के इसी इतिहास में परमेश्वर ने यह भी बता दिया कि उसने मनुष्य की रचना मिट्टी से कीऔर यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया” (उत्पत्ति 2:7), तथा यह भी निर्धारित कर दिया कि मनुष्य परिश्रम की रोटी खाएगा तथा मृत्यु के बाद वापस मिट्टी में मिल जाएगाऔर अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा” (उत्पत्ति 3:19)। आज विज्ञान भी यह जानता और मानता है कि मनुष्य के शरीर की रचना करने वाले मूल तत्व (elements) सभी मिट्टी में ही पाए जाते हैं; और यह सभी का सामान्य प्रत्यक्ष अनुभव है कि मृत्यु के बाद, यदि उसके शव को स्वतः ही समाप्त होने दिया जाए तो शरीर गल कर मिट्टी ही बन जाता है; किन्तु फिर भी मनुष्य को परमेश्वर के वचन बाइबल की बातों पर विश्वास करना कठिन होता है। 

      परमेश्वर और उसके वचन के प्रति इस अविश्वास का मूल कारण है मनुष्य के स्वभाव और व्यवहार में बसा हुआ पाप - परमेश्वर और उसकी आज्ञाओं के प्रति विद्रोह और अनाज्ञाकारिता की भावना। पाप वह नहीं है जिसे हम सामान्यतः पाप समझते हैं, जैसे झूठ बोलना, चोरी करना, धोखा देना, व्यभिचार, कुदृष्टि, लालच, हत्या, आदि - ये और ऐसे सभी कार्य तो पाप के फल, उसके परिणाम हैं, जो प्रवृत्ति, समय, मनसा, और अवसर के अनुसार प्रकट होते रहते हैं। इन बातों को दबाने और हटाने के प्रयास करना झाड़ियों के पत्तों और डालियों के छँटाई करने किन्तु जड़ को वहीं छोड़ देने के समान है; उस जड़ में से फिर से उपयुक्त समय और परिस्थितियों में से वही झाड़ी फिर से बाहर आ जाएगी और फिर से वही दुष्कर्म करवाएगी।

      किन्तु प्रभु यीशु पर लाया गया विश्वास, उसे स्वेच्छा और सच्चे मन से समर्पित किया गया जीवन, प्रभु को उस व्यक्ति के जीवन से इस पाप की झाड़ी की जड़ उखाड़ने की अनुमति दे देता है, और फिर प्रभु उस व्यक्ति के जीवन में से पाप करने की प्रवृत्ति को नाश करके, उस को अंश-अंश करके अपने स्वरूप में बदलने लग जाता है, उसके जीवन को अपनी अनन्तकालीन आशीषों से परिपूर्ण करने लग जाता है। यह एक जीवन भर चलती रहने वाली प्रक्रिया है, किन्तु प्रभु को समर्पित जन पाप को पाप मानने लगता है, उसके लिए बहाने नहीं बनाता है, और न ही किसी और को दोषी ठहराता है, वरन पाप होने पर उसे प्रभु के सामने मान लेता है, प्रभु से उसकी क्षमा भी माँग लेता है, उस पाप में बना नहीं रहता है।

     क्या आप आज, अभी, स्वेच्छा और सच्चे मन से एक छोटी प्रार्थनाहे प्रभु यीशु मैं आप पर तथा मेरे पापों की कीमत चुकाने के लिए क्रूस पर आपके द्वारा दिए गए बलिदान पर विश्वास करता हूँ। कृपया मेरे पाप क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और अपना आज्ञाकारी, समर्पित जन बनाएंकरने के द्वारा प्रभु को अपने जीवन में से पाप की जड़ को उखाड़ने और उसके स्वरूप में ढालने की अनुमति देंगे; उसकी आशीषों के पात्र बनना स्वीकार करेंगे?

 

बाइबल पाठ: गलातियों 5:13-26 

गलतियों 5:13 हे भाइयों, तुम स्वतंत्र होने के लिये बुलाए गए हो परन्तु ऐसा न हो, कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामों के लिये अवसर बने, वरन प्रेम से एक दूसरे के दास बनो।

गलतियों 5:14 क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।

गलतियों 5:15 पर यदि तुम एक दूसरे को दांत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो, कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो।

गलतियों 5:16 पर मैं कहता हूं, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे।

गलतियों 5:17 क्योंकि शरीर आत्मा के विरोध में, और आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करती है, और ये एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिये कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ।

गलतियों 5:18 और यदि तुम आत्मा के चलाए चलते हो तो व्यवस्था के आधीन न रहे।

गलतियों 5:19 शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात व्यभिचार, गन्‍दे काम, लुचपन।

गलतियों 5:20 मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म।

गलतियों 5:21 डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इन के जैसे और और काम हैं, इन के विषय में मैं तुम को पहिले से कह देता हूं जैसा पहिले कह भी चुका हूं, कि ऐसे ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।

गलतियों 5:22 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज,

गलतियों 5:23 और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।

गलतियों 5:24 और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उस की लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।

गलतियों 5:25 यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी।

गलतियों 5:26 हम घमण्डी हो कर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें।

 

एक साल में बाइबल:

·       भजन 110-112

·       1 कुरिन्थियों 5