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सोमवार, 6 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 12

 

पाप का समाधान - उद्धार - 8

      पिछले दो लेखों में हम दो लोगों के जीवनों के उदाहरण देख चुके हैं जो बहुत धर्मी थे, धार्मिकता का निर्वाह करते थे, परमेश्वर के वचन और आज्ञाओं को जानते थे और उनका पालन करने का दावा करते थे, समाज में उच्च ओहदा रखते थे। किन्तु दोनों ही अपने अंदर जानते थे कि अपने इस धर्म के निर्वाह, वचन की बातों को मानने, लोगों के दृष्टि में धर्मी और आदरणीय होने के बावजूद, वे परमेश्वर के सम्मुख खड़े हो पाने और उसके राज्य में प्रवेश कर पाने के अयोग्य थे। उनके मन और विवेक उन्हें चेतावनी दे रहे थे कि अभी, समय रहते, जब प्रभु का अनुग्रह उन्हें उपलब्ध है, इस स्थिति को ठीक कर लें; और इसी लिए समाधान को ढूँढने के लिए वे प्रभु यीशु मसीह के पास आए थे। उनमें से एक, नीकुदेमुस तो संभवतः आगे चलकर प्रभु यीशु मसीह का विश्वासी बन गया था, उसने अरमतियाह के यूसुफ के साथ मिलकर प्रभु यीशु की देह को क्रूस पर से उतरवाकर दफनाया था (यूहन्ना 19:38-39); किन्तु दूसरा व्यक्ति, जो धनी जवान सरदार था, सांसारिक संपत्ति के मोह से अपने आप को अलग नहीं कर पाया और वापस संसार में लौट गया। 

आज हम तीसरे व्यक्ति के जीवन के उदाहरण से देखेंगे कि धर्म का निर्वाह कैसे व्यक्ति को सत्य के प्रति अंधा एवं सत्य का पालन करने वालों के प्रति क्रूर और निर्मम, अमानवीय, बना देता है। किन्तु जब सत्य से व्यक्ति की पहचान हो जाती है, तो जिस वचन की गलत समझ के कारण वह अनुचित व्यवहार करता था, उसकी सही समझ आ जाने से उसका जीवन, दृष्टिकोण, और व्यवहार कैसे अद्भुत रीति से बदल जाता है। यह तीसरा उदाहरण नए नियम के जाने-माने नायक पौलुस प्रेरित का है, जो मसीही विश्वासी होने से पहले शाऊल के नाम से जाना जाता था (प्रेरितों 13:9)। अपनी परवरिश और शिक्षा से पौलुस एक कट्टर फरीसी था; उसने अपने समय के बहुत आदरणीय और उत्तम शिक्षक गमलीएल (प्रेरितों 5:34) से शिक्षा पाई थी (प्रेरितों 22:3) 

इस कट्टर फरीसी, पौलुस का मानना था कि यीशु मसीह तथा मसीही विश्वासी विधर्मी हैं, परमेश्वर और उसकी व्यवस्था का अपमान कर रहे हैं, और उन्हें इसके लिए पकड़ना और दंड दिलवाना चाहिए। इसके लिए वह स्थान-स्थान पर जाकर प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों को पकड़ कर लाया करता था, जिससे धर्म के ठेकेदार उन्हें विधर्मी होने के लिए दंडित कर सकें (प्रेरितों 7:60; 8:2-3; 26:12)। उसके दृष्टिकोण और विचारों को उसके ही शब्दों में देखते हैं:मैं ने भी समझा था कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए। और मैं ने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और महायाजकों से अधिकार पाकर बहुत से पवित्र लोगों को बन्‍दीगृह में डाला, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उन के विरोध में अपनी सम्मति देता था। और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहां तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया, कि बाहर के नगरों में भी जा कर उन्हें सताता था” (प्रेरितों 26:9-11)

उसे मिली उसके धर्म की शिक्षा और धार्मिकता के निर्वाह तथा व्यवहार के आधार पर, पौलुस की समझ उसे प्रेरित करती थी कि:

  • उसे यीशु नासरी के विरुद्ध बहुत कुछ करना चाहिए;
  • उसे पवित्र लोगों को बंदीगृह में डालना चाहिए
  • वह उन लोगों के मसीही विश्वास के लिए मार डाले जाने में सहमत रहे
  • हर आराधनालय में वह उनकी ताड़ना करता और उनसे जबरन यीशु की निन्दा करवाए;
  • बाहर के नगरों में भी जाकर मसीही विश्वासियों को सताए

उनके विरुद्ध क्रोध के मारे वह पागल सा हो गया था। 

पौलुस के धर्म, और धर्म के उसके ज्ञान ने उसका यह अमानवीय व्यवहार करवाने वाला हाल बना दिया था। किन्तु जब ऐसे ही एक अभियान पर दमिश्क जाते समय प्रभु यीशु मसीह से, उनके महिमित स्वरूप में, उसका साक्षात्कार हुआ, तो उसका जीवन, समझ, दृष्टिकोण, और व्यवहार सभी बदल गए (प्रेरितों 9:2-6; 26:13-15)। उस पहले साक्षात्कार में ही पौलुस ने यीशु कोप्रभुमान लियाउसने पूछा; हे प्रभु, तू कौन है? उसने कहा; मैं यीशु हूं; जिसे तू सताता है” (प्रेरितों 9:5)। प्रभु यीशु ने उसके समर्पण को स्वीकार किया और उद्धार के सुसमाचार के प्रचार की सेवकाई सौंपी, परंतु साथ ही यह भी बता दिया कि इस सेवकाई के निर्वाह में उसे बहुत दुख उठाने होंगेपरन्तु प्रभु ने उस से कहा, कि तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्राएलियों के सामने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है। और मैं उसे बताऊंगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा कैसा दुख उठाना पड़ेगा” (प्रेरितों के काम 9:15-16); साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि उन सभी कठिन और दुखदाई परिस्थितियों में प्रभु उसकी रक्षा करेगा, उसके साथ रहेगाऔर मैं तुझे तेरे लोगों से और अन्यजातियों से बचाता रहूंगा, जिन के पास मैं अब तुझे इसलिये भेजता हूं। कि तू उन की आंखें खोले, कि वे अंधकार से ज्योति की ओर, और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और उन लोगों के साथ जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, मीरास पाएं” (प्रेरितों के काम 26:17-18)। और तुरंत ही पौलुस इस सेवकाई में लग गयाऔर वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है” (प्रेरितों 9:20) 

जिस धर्मशास्त्र की अपनी समझ के अनुसार वह प्रभु यीशु और उसके शिष्यों का घोर विरोध करता था, प्रभु से उसी धर्मशास्त्र की सही समझ प्राप्त करने के बाद वह उसी धर्मशास्त्र में से यीशु के मसीह होने को प्रमाणित करने लगापरन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे देकर कि मसीह यही है, दमिश्क के रहने वाले यहूदियों का मुंह बन्द करता रहा” (प्रेरितों 9:22); “जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियों को गवाही देता था कि यीशु ही मसीह है” (प्रेरितों 18:5); “और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उन के पास गया, और तीन सबत के दिन पवित्र शास्त्रों से उन के साथ विवाद किया। और उन का अर्थ खोल खोल कर समझाता था, कि मसीह को दुख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; और यही यीशु जिस की मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं, मसीह है” (प्रेरितों 17:2-3)

अपने जीवन, तथा परमेश्वर के वचन के प्रति अपने दृष्टिकोण के इस अद्भुत परिवर्तन के विषय पौलुस ने फिलिप्पी की मसीही मंडली को लिखा, कि व्यवस्था की जिन बातों को वह पहले अति महत्वपूर्ण समझता था, अब मसीह यीशु द्वारा मानव जाति के उद्धार और मनुष्यों को परमेश्वर को स्वीकार्य बनाने के लिए प्रभु यीशु द्वारा किए गए कार्य की सही पहचान हो जाने के बाद, वह अपनी उन पिछली धारणाओं के गलत एवं व्यर्थ होने को समझ गया, वचन और व्यवस्था के प्रति उसका दृष्टिकोण सुधर कर ठीक हो गया, और अब वह केवल मसीह यीशु के ज्ञान में बढ़ने की चाह रखने लगा, व्यवस्था से धर्मी माने जाने की नहीं (फिलिप्पियों 3:4-14) 

शाऊल/पौलुस के धर्म, शिक्षा, और उसकी अपनी समझ ने उसे उसी परमेश्वर और उस परमेश्वर के शिष्यों का बैरी और नाश करने वाला बना दिया, जिसकी वह सेवा करना चाहता था। किन्तु प्रभु यीशु मसीह पर लाए विश्वास ने उसे धर्मशास्त्र की सही समझ दी, उसकी सेवा को सही उद्देश्य और दिशा दी, उसे हर परिस्थिति में प्रभु परमेश्वर का साथ और सहायता को प्रदान किया। उसकी मसीही सेवकाई का जीवन बहुत कठिन और दुखों से भरा हुआ था; किन्तु अपने जीवन के अंत के समय उसके पास अभूतपूर्व शांति थी, उसे एक आश्वासन था, जो उसने सभी मसीही विश्वासियों के लिए भी व्यक्त कियाक्योंकि अब मैं अर्घ के समान उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है। मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं” (2 तीमुथियुस 4:6-8) 

पौलुस के जीवन में जो काम उसकी परवरिश एवं परमेश्वर के वचन के बारे में तथा धर्म के निर्वाह के लिए उसे मनुष्यों से मिली शिक्षा नहीं कर सकी; इन बातों पर आधारित उसकी समझ के अनुसार किए गए उसकेधर्म के कामनहीं कर सके, वह प्रभु यीशु मसीह के प्रति सच्चे समर्पित विश्वास ने एक पल में करवा दिया; उसका जीवन, व्यवहार, और दृष्टिकोण बिल्कुल बदल दिया। पौलुस के धर्म ने उसे अनजाने में ही पागलों के समान मनुष्यों और परमेश्वर का विरोधी, उनका सताने वाला, प्रभु परमेश्वर का निरादर करने वाला बना दिया था। मसीही विश्वास ने उसे दुख उठा कर भी धीरज, सहनशीलता, और प्रेम के साथ मनुष्यों की भलाई और प्रभु परमेश्वर की सेवकाई करने वाला बना दिया, परमेश्वर के वचन के ऐसी गहरी, सच्ची, और ठोस समझ प्रदान की जो उसे और कहीं से नहीं मिल सकती थी। पौलुस में होकर परमेश्वर के वचन की वह व्याख्या हमें उपलब्ध हुई है, जो आज दो हज़ार साल बाद भी लोगों के दर्शनों को खोल रही है, उनके जीवन बदल रही है, और संसार के अंत तथा न्याय के लिए मसीही विश्वासियों को तैयार कर रही है। 

अपने जीवन का आँकलन करके देखिए। कहीं आप भी धर्म और धार्मिकता के नाम पर मनुष्यों के बैरी, उन्हें सताने वाले, और परमेश्वर की निन्दा का कारण तो नहीं बन रहे हैं? प्रभु यीशु मसीह के सच्ची पहचान में आइए, उसे अपना प्रभु स्वीकार कीजिए, आपके जीवन का दृष्टिकोण और व्यवहार ही बदल जाएगा; परमेश्वर के वचन के प्रति आपकी समझ खुल जाएगी, नई हो जाएगी; आप परमेश्वर की निन्दा के नहीं, प्रशंसा के कारण, उसके गवाह बन जाएंगे। स्वेच्छा से, सच्चे पश्चाताप और समर्पण के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं पापी हूँ और आपकी अनाज्ञाकारिता करता रहता हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि आपने मेरे पापों को अपने ऊपर लेकर, मेरे बदले में उनके दण्ड को कलवरी के क्रूस पर सहा, और मेरे लिए अपने आप को बलिदान किया। आप मेरे लिए मारे गए, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए तीसरे दिन जी उठे। कृपया मुझ पर दया करके मेरे पापों को क्षमा कर दीजिए, मुझे अपनी शरण में ले लीजिए, अपना आज्ञाकारी शिष्य बनाकर, अपने साथ कर लीजिए।सच्चे मन से की गई पश्चाताप और समर्पण की एक प्रार्थना आपके जीवन को अभी से लेकर अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय जीवन बना देगी, स्वर्गीय आशीषों का वारिस कर देगी। 

 

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों  3:4-14

फिलिप्पियों 3:4 पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूं यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उस से भी बढ़कर रख सकता हूं

फिलिप्पियों 3:5 आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्राएल के वंश, और बिन्यमीन के गोत्र का हूं; इब्रानियों का इब्रानी हूं; व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूं

फिलिप्पियों 3:6 उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सताने वाला; और व्यवस्था की धामिर्कता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष था

फिलिप्पियों 3:7 परन्तु जो जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्‍हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है

फिलिप्पियों 3:8 वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं

फिलिप्पियों 3:9 और उस में पाया जाऊं; न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है

फिलिप्पियों 3:10 और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं

फिलिप्पियों 3:11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं

फिलिप्पियों 3:12 यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था

फिलिप्पियों 3:13 हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ

फिलिप्पियों 3:14 निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है

 

एक साल में बाइबल:

·      भजन 148-150

·      1 कुरिन्थियों 15:29-58