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गुरुवार, 16 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 22

 

पाप का समाधान - उद्धार - 18

       पिछले लेखों में हमने देखा था कि मनुष्यों के पापों के प्रायश्चित और पाप से उत्पन्न हुई समस्याओं के निवारण के लिए जिस सिद्ध पुरुष की आवश्यकता थी, उसके गुणों में से एक था उसका स्वेच्छा से अपने आप को मनुष्य जाति के पापों  के लिए बलिदान होने के लिए दे देना। इस संदर्भ में हमने देखा था कि प्रभु यीशु मसीह ने अपने आप को स्वेच्छा से यह बलिदान होने के लिए अर्पित किया, और उन्हें मारे जाने के लिए क्रूस पर चढ़ा दिया गया। इससे पिछले लेख में हमने देखा था कि शैतान ने प्रभु यीशु की मृत्यु के विषय तुरंत ही अनेकों भ्रम भी फैला दिए जिससे लोगों को लगे कि उनके इस बलिदान की यह गाथा एक काल्पनिक बात है अथवा बढ़ा-चढ़ा कर कही गई बात है, और लोगों का ध्यान उनके इस बलिदान के महत्व एवं महानता से भटक जाए। उनकी मृत्यु से संबंधित भ्रमों को आज इस लेख में हम आगे देखते हैं। 

       क्रूस की मृत्यु रोमी साम्राज्य के समय में समाज के सबसे निकृष्ट अपराधियों को दी जाती थी, और इस सबसे अधिक अपमानजनक मृत्यु माना जाता था। क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले अपराधियों को बहुत मारा-पीटा जाता था, कोड़े लगाए जाते थे। उन कोड़ों के सिरों पर नुकीली वस्तुएं लगी होती थीं, जो कोड़े के शरीर पर पड़ने के वेग से खाल के अंदर धंस जाती थीं और जब कोड़े मारने वाला कोड़े को वापस खींचता था तो वे धँसी हुई नुकीली वस्तुएं खाल और माँस को फाड़ते हुए बाहर आती थीं। जब सिपाही यह सब कर चुकते थे, तब उस व्यक्ति को काठ से बना अपना क्रूस, अपनी पीठ पर लादे हुए क्रूसित होने के स्थान तक जाना पड़ता था, और वहाँ पर उसकी बाहें फैला कर हाथों में से होकर मोटी कीलें क्रूस के काठ में ठोक कर तथा पैरों को एक ऊपर दूसरा रख कर उनमें से भी मोटी कील क्रूस के काठ में ठोक कर उस क्रूस को सार्वजनिक स्थान पर धरती में गाड़कर खड़ा कर दिया जाता था। क्रूस पर चढ़ाए गए अपराधियों के प्राण तुरंत ही नहीं निकलते थे। यह बहुत ही पीड़ादायक मृत्यु होती थी। कोड़ों की मार से उधड़ा हुआ उसका बदन हर सांस के साथ खुरदरे काठ पर रगड़ता रहता था; लटके होने के कारण, शरीर का सारा वज़न कीलों से ठोके हुए हाथों पर आता था, जो हाथों की पीड़ा को असहनीय बना देता था; राहत पाने के लिए यदि अपराधी पैरों का सहारा लेकर उचकने का प्रयास करता तो यही असहनीय पीड़ा फिर पैरों में भी होती, और इस सारी प्रक्रिया में उसका उधड़ा हुआ बदन और भी ज़ोर से क्रूस के काठ पर रगड़ खाता। अर्थात अपराधी कुछ भी करे, वह उसकी पीड़ा को और बढ़ाता ही था, किसी भी रीति से कोई राहत उसे नहीं मिल सकती थी। अंततः थके हुए और लहू बहने से कमज़ोर हो चुके, कीलों से ठुके हुए हाथों के भार टंगे हुए शरीर को सांस लेना भी भारी हो जाता था, और पैरों के सहारे थोड़ा सा उचक कर सांस लेने के प्रयास उसे सांस तो ले लेने देते थे, किन्तु साथ ही उसकी पीड़ा को बहुत बढ़ा भी देते थे। कुछ अपराधियों को इस स्थिति में टंगे हुए, तिल-तिल करके मरने में एक दिन से भी अधिक लग जाता था, और जब तक वो मर नहीं जाते थे, उन्हें क्रूस पर से उतारा नहीं जाता था। प्रभु यीशु ने यह सब जानते हुए भी, इस मृत्यु को स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया जिससे हम मनुष्यों को अनन्त-काल की नरक की पीड़ा से बचने का मार्ग बनाकर सेंत-मेंत प्रदान कर सकें। 

प्रभु यीशु को दो पहर में क्रूस पर चढ़ाया गया, और उन्होंने लगभग तीन घंटे क्रूस पर टंगे रहने के बाद अपने प्राण त्याग दिए (मत्ती 27:45-50)। क्योंकि यहूदियों की व्यवस्था के अनुसार मृत्यु-दण्ड भुगतने वाले अपराधी की लाश को सूर्यास्त से पहले दफनाया जाता था (व्यवस्थाविवरण 21:22-23), और क्योंकि प्रभु यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने से अगला दिन सबत का दिन था जिसमें यहूदी कोई भी कार्य नहीं करते थे, इसलिए प्रभु यीशु की देह को उसी संध्या, सूर्यास्त से पहले दफनाया जाना आवश्यक था। क्रूसित अपराधी की मृत्यु को कुछ शीघ्र कर देने के लिए रोमियों ने एक और पीड़ादायक विधि अपना रखी थी - वे अपराधी की टांगें तोड़ देते थे - पीड़ा भी होती थी, और अपराधी अब सांस लेने के लिए पैरों का बिल्कुल भी सहारा नहीं ले सकता था, शरीर पूर्णतः हाथों में ठुकी हुई कीलों के सहारे लटक जाता था, जो पीड़ा को बढ़ाता था, सांस लेने के लिए छाती को ठीक से फूलने नहीं देता था, जिससे सांस ठीक से नहीं आने पाती थी और व्यक्ति घुटन के अनुभव और तड़पने के साथ कुछ शीघ्र मर जाता था। यही करने सिपाही प्रभु यीशु के पास भी आए, परंतु उसे मरा हुआ पाकर उसकी टांगें तो नहीं तोड़ीं, किन्तु उसकी मृत्यु निश्चित कर लेने के लिए उसकी छाती में भाला मारा, “और इसलिये कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पिलातुस से बिनती की कि उन की टांगे तोड़ दी जाएं और वे उतारे जाएं ताकि सबत के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सबत का दिन बड़ा दिन था। सो सिपाहियों ने आकर पहिले की टांगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे। परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उस की टांगें न तोड़ीं। परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लहू और पानी निकला। जिसने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उस की गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो। ये बातें इसलिये हुईं कि पवित्र शास्त्र की यह बात पूरी हो कि उस की कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी। फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, कि जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे” (यूहन्ना 19:31-37)

प्रभु यीशु की मृत्यु निश्चित हो जाने के बाद, प्रभु के दो शिष्यों ने उनकी देह को पिलातुस से माँग लिया और सूर्य ढलने से पहले शीघ्रता से देह को पचास सेर सुगंध-द्रव्यों - गंधरस और एलवा में कफन में लपेटकर पास ही की एक कब्र में रख दियाइन बातों के बाद अरमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला था, (परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था), पिलातुस से बिनती की, कि मैं यीशु की लोथ को ले जाऊं, और पिलातुस ने उस की बिनती सुनी, और वह आकर उस की लोथ ले गया। निकुदेमुस भी जो पहिले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्‍धरस और एलवा ले आया। तब उन्होंने यीशु की लोथ को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा। उस स्थान पर जहां यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिस में कभी कोई न रखा गया था। सो यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी” (यूहन्ना 19:38-42); “अरिमतिया का रहने वाला यूसुफ आया, जो प्रतिष्ठित मंत्री और आप भी परमेश्वर के राज्य की बाट जोहता था; वह हियाव कर के पिलातुस के पास गया और यीशु की लोथ मांगी। पिलातुस ने आश्चर्य किया, कि वह इतना शीघ्र मर गया; और सूबेदार को बुलाकर पूछा, कि क्या उसको मरे हुए देर हुई? सो जब सूबेदार के द्वारा हाल जान लिया, तो लोथ यूसुफ को दिला दी। तब उसने एक पतली चादर मोल ली, और लोथ को उतारकर उस चादर में लपेटा, और एक कब्र में जो चट्टान में खोदी गई थी रखा, और कब्र के द्वार पर एक पत्थर लुढ़का दिया” (मरकुस 15:43) 

किन्तु यहूदी धर्म-गुरुओं को आशंका थी कि प्रभु के शिष्य आकर उसकी देह को उठा ले जाएंगे और कह देंगे कि वह जी उठा है, इसलिए उन्होंने कब्र के मुंह पर एक भारी पत्थर लुढ़का दिया और कब्र को मोहर-बंद करके, वहाँ पहरा बैठा दियादूसरे दिन जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, महायाजकों और फरीसियों ने पिलातुस के पास इकट्ठे हो कर कहा। हे महाराज, हमें स्मरण है, कि उस भरमाने वाले ने अपने जीते जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूंगा। सो आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाएं, और लोगों से कहने लगें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है: तब पिछला धोखा पहिले से भी बुरा होगा। पिलातुस ने उन से कहा, तुम्हारे पास पहरूए तो हैं जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो। सो वे पहरूओं को साथ ले कर गए, और पत्थर पर मुहर लगाकर कब्र की रखवाली की” (मत्ती 27:62-66) 

इन तथ्यों के संदर्भ में हम उस मिथ्या धारणा की ओर आते हैं, जिसके अंतर्गत लोग कहते हैं कि प्रभु यीशु क्रूस पर मरे नहीं, केवल बेहोश हुए, और फिर कब्र के ठन्डे वातावरण में कुछ समय के बाद उन्हें होश आया, और तब वे कब्र से बाहर निकाल कर आ गए, कहीं चले गए, और शिष्यों ने यह कह दिया कि वे जीवित हो उठे हैं। किन्तु उपरोक्त तथ्यों के सामने यह धारणा पूर्णतः निराधार है, बिना तथ्यों का ध्यान किए भ्रम फैलाने के लिए बनाई गई है। ध्यान कीजिए:

  • रोमी गवर्नर पिलातुस के कहने पर सूबेदार और सिपाहियों ने जाकर यह निश्चित किया कि प्रभु यीशु वास्तव में मर गया है। वे रोमी सैनिक क्रूस पर चढ़ाए हुओं के मरे अथवा जीवित होने की पहचान में अनुभवी थे, उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु मर गए हैं, इसलिए उनके साथ क्रूसित किए गए शेष दोनों डाकुओं के समान, उन्होंने प्रभु यीशु की टांगें नहीं तोड़ीं, वरन छाती को भाले से भेद अवश्य दिया, और फिर पिलातुस को बता दिया कि प्रभु यीशु मर गया है। यदि उन्होंने पिलातुस से झूठ बोल होता, और यह बात सामने आ जाती, तो उस सूबेदार और उन सिपाहियों की मौत निश्चित थी, इसलिए वे प्रभु यीशु की मृत्यु का झूठा समाचार पिलातुस को देने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।
  • प्रभु की देह को पचास सेर सामग्री में और कफन में लपेट कर (केवल ढाँप कर नहीं) कब्र में रखा गया था। क्या यह संभव कि कब्र के अंदर होश आने पर सारे शरीर की कोड़ों से उधेड़ दी गई स्थिति, और हाथों तथा पैरों में शरीर का वज़न सहन कर सकने लायक मोटी कीलों के घावों वाला व्यक्ति बिना किसी सहायता के, अकेले अपने आप ही पचास सेर सामग्री तथा लिपटे हुए कफन को खोल कर उतार देगा और खड़ा हो जाएगा?
  • क्या इतनी यातना सहने और फिर इतना लहू बह जाने के बाद किसी भी मनुष्य के शरीर में यह कर पाने की सामर्थ्य बचेगी?
  • क्या ऐसा घायल और निर्बल व्यक्ति अंदर से अकेले ही कब्र के मुँह पर लगे मोहर बंद भारी पत्थर को स्वयं ही लुढ़का कर बाहर आने पाएगा? उन घायल हाथों और पैरों में, उसे भेदी गई छाती में, और लहू बहने से दुर्बल हो गई देह में क्या यह सब करने की शक्ति एवं क्षमता शेष रही होगी?
  • यदि एक बार को मान भी लिया जाए कि प्रभु यीशु उस भारी पत्थर को लुढ़का कर बाहर आ गया, तो फिर उन पहरेदारों ने उसे पकड़ क्यों नहीं लिया? वह अकेला और घायल, दुर्बल था; और पहरेदार कई थे - यीशु को पकड़ लेने में उन्हें क्या कठिनाई हो सकती थी?

 

       किसी भी रीति से प्रभु यीशु के क्रूस पर मारे जाने, और दफनाए जाने से संबंधित तथ्य इस मिथ्या धारणा को कोई समर्थन प्रदान नहीं करते हैं कि वे क्रूस पर मरे नहीं थे। थोड़ा रुक कर, उनके स्वेच्छा से यह सब सहना स्वीकार कर लेने और उनकी क्रूर, वीभत्स, अवर्णनीय, अत्यंत पीड़ादायक मृत्यु के बारे में विचार कीजिए। उन्होंने यह सब मेरे और आपके लिए, संसार के सभी मनुष्यों के लिए, हम मनुष्यों की पापी दश को जानते हुए भी सह लिया, जिससे हम मृत्योपरांत परलोक की अनन्त पीड़ा में न जाएं, वरन उनके साथ स्वर्ग की आशीषों और सुख-शांति में संभागी हों। प्रभु यीशु मेरे और आपकी अंदर-बाहर की वास्तविक दशा को, हमारे द्वारा दिन-प्रतिदिन मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में किए जा रहे सभी पापों और बुराइयों को अच्छे से जानता है, फिर भी हमसे प्रेम करता है, हमें क्षमा करना चाहता है। और यह अनन्तकालीन स्वर्गीय सुख वह हमें सेंत-मेंत दे रहा है, हमसे केवल यह अनुमति चाहता है कि हम उसे हमारे जीवनों में विद्यमान पापों के दुष्परिणामों को दूर करके, उसे हमारे मन और जीवन को स्वच्छ एवं निर्मल कर लेने दें। उसे हम से हमारी कोई भी शारीरिक या सांसारिक बात नहीं चाहिए, उसे केवल हमारा मन चाहिए, जिसे वह पवित्र और शुद्ध करना चाहता है।

       यदि वह निष्पाप, निष्कलंक, निर्दोष, पवित्र, और सिद्ध प्रभु मेरे और आपके पापों के लिए घोर यातनाएं सहने और क्रूस की अत्यंत पीड़ादायक मृत्यु सहने के लिए तैयार हो गया, तो क्या हम उससे आशीष और अनत जीवन पाने, नरक की अनन्त पीड़ा से बचने के लिए तैयार नहीं होंगे? वह तो केवल हमारा भला ही चाहता है, जिसके लिए उसने हमारा सारा दुख सह लिया; तो फिर हम क्यों उसके इस आमंत्रण को अस्वीकार करें? शैतान की किसी बात में न आएं, किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा। 

 

बाइबल पाठ: यशायाह 53:1-12 

यशायाह 53:1 जो समाचार हमें दिया गया, उसका किस ने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?

यशायाह 53:2 क्योंकि वह उसके सामने अंकुर के समान, और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि में फूट निकले; उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते।

यशायाह 53:3 वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था; वह दुःखी पुरुष था, रोग से उसकी जान पहचान थी; और लोग उस से मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और, हम ने उसका मूल्य न जाना।

यशायाह 53:4 निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दु:खों को उठा लिया; तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा।

यशायाह 53:5 परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं।

यशायाह 53:6 हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।

यशायाह 53:7 वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुंह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय व भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुंह न खोला।

यशायाह 53:8 अत्याचार कर के और दोष लगाकर वे उसे ले गए; उस समय के लोगों में से किस ने इस पर ध्यान दिया कि वह जीवतों के बीच में से उठा लिया गया? मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी।

यशायाह 53:9 और उसकी कब्र भी दुष्टों के संग ठहराई गई, और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उसने किसी प्रकार का उपद्रव न किया था और उसके मुंह से कभी छल की बात नहीं निकली थी।

यशायाह 53:10 तौभी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब तू उसका प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।

यशायाह 53:11 वह अपने प्राणों का दु:ख उठा कर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा

यशायाह 53:12 इस कारण मैं उसे महान लोगों के संग भाग दूंगा, और, वह सामर्थियों के संग लूट बांट लेगा; क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया, वह अपराधियों के संग गिना गया; तौभी उसने बहुतों के पाप का बोझ उठ लिया, और, अपराधियों के लिये बिनती करता है 

एक साल में बाइबल:

·      नीतिवचन 25-26

·      2 कुरिन्थियों