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शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 23


पाप का समाधान - उद्धार - 19

हम देखते आ रहे हैं कि मनुष्यों के पाप से उत्पन्न स्थिति के समाधान के लिए ऐसा मनुष्य चाहिए था जो पूर्णतः निष्पाप और निष्कलंक हो; इतना सामर्थी हो कि मृत्यु उसे वश में न रख सके; और इतना कृपालु हो कि मनुष्यों के पापों को स्वेच्छा से अपने ऊपर लेकर, उनके दण्ड को मनुष्यों के स्थान पर सह ले, और फिर प्रतिफल को मनुष्यों में सेंत-मेंत बाँट दे। ऐसा मनुष्य पाप के दण्ड को सभी के लिए चुका सकता था, और मनुष्य को मृत्यु से स्वतंत्र कर के, उनका मेल-मिलाप परमेश्वर से करवा सकता था, अदन की वाटिका में खोई गई स्थिति को मनुष्यों के लिए वापस बहाल कर सकता था। इस संदर्भ में हम देख चुके हैं कि: 

  • प्रभु यीशु पूर्णतः परमेश्वर होने के साथ ही पूर्णतः मनुष्य भी थे, किन्तु उनकी मानवीय देह में पाप का दोष, और उनमें पाप की कोई प्रवृत्ति नहीं थी।
  • उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन परमेश्वर पिता की आज्ञाकारिता में व्यतीत किया, बिना परमेश्वर पर कोई संदेह किए अथवा उनकी आज्ञाकारिता के लिए कोई आनाकानी किए। 
  • वे साधारण और सामान्य मनुष्यों के सभी अनुभवों में से होकर निकले किन्तु निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र बने रहे। 
  • उन्होंने स्वेच्छा से मनुष्यों के पापों के लिए अपने आप को बलिदान किया, ये जानते हुए भी कि क्रूस की मृत्यु कितनी पीड़ादायक, क्रूर, और वीभत्स होगी। 

        आज से हम उनके पाप का समाधान होने के लिए आवश्यक सिद्ध पुरुष होने के एक और गुण - उनके मृत्यु पर जयवंत होने के बारे देखना आरंभ करेंगे। हम पहले के लेखों में देख चुके हैं कि परमेश्वर ने प्रथम पुरुष और स्त्री को चेतावनी दे रखी थी कि वर्जित फल को खा लेने की अनाज्ञाकारिता का परिणाम मृत्यु, अर्थात पवित्र और सिद्ध परमेश्वर से और मनुष्यों की परस्पर एक दूसरे से अपरिवर्तनीय दूरी, होगी (उत्पत्ति 2:17)। यह मृत्यु दो स्वरूप में आएगी - आत्मिक, अर्थात परमेश्वर से दूरी; और शारीरिक, अर्थात एक दूसरे से दूर हो जाना – उनका शरीर क्षय होना आरंभ हो जाएगा, और अंततः मर जाएगा, फिर से मिट्टी में मिल जाएगा, जिस से उसे बनाया गया है (उत्पत्ति 3:17-19)। इसलिए यह स्वाभाविक है, जो भी व्यक्ति पाप का समाधान करेगा, पाप के दुष्प्रभावों को मिटाएगा, वह पाप के इस सबसे घातक परिणाम, आत्मिक तथा शारीरिक मृत्यु का अभी अंत करेगा, उसे मनुष्यों पर से हटा देगा। तब ही उसके द्वारा किया गया पाप के निवारण और समाधान का कार्य उचित, स्वीकार्य, और पूर्ण माना जा सकेगा। यदि सब कुछ करने के बाद भी मृत्यु अपने स्थान पर बनी रहेगी, तो जो किया गया वह अपूर्ण और व्यर्थ रहेगा। इसीलिए परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रभु यीशु मसीह के कार्य के लिए लिखा गया हैक्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे। और व्यवस्था बीच में आ गई, कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहां पाप बहुत हुआ, वहां अनुग्रह उस से भी कहीं अधिक हुआ। कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे” (रोमियों 5:17-21)

मसीही विश्वास के लिए वास्तविकता तो यही है कि प्रभु यीशु मसीह का पुनरुत्थान ही मसीही विश्वास का आधार है – यदि मसीही विश्वास में से पुनरुत्थान को हटा दें, या उसे झूठा प्रमाणित कर दें, तो फिर मसीही जीवन और शिक्षाएँ किसी भी अन्य धर्म की शिक्षाओं से भिन्न नहीं रह जाती हैं। इसीलिए प्रभु यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बादऔर उसने दु:ख उठाने के बाद बहुत से बड़े प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा: और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा” (प्रेरितों 1:3)। प्रभु के लिए अपने मृतकों में से पुनरुत्थान को शिष्यों पर दृढ़ता से प्रमाणित करना, जिससे वे इसके विषय कभी धोखा न खाएं, कभी डगमगाए न जाएं अनिवार्य था - भविष्य की सारी मसीही सेवकाई इस एक बात पर निर्भर थी; और वह यह कार्य अपने पुनरुत्थान के बाद चालीस दिन तक उनके सामने करता रहा। बाइबल में 1 कुरिन्थियों 15 – पूरा अध्याय इसी विषय – पुनरुत्थान के महत्व, पर है, और पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस लिखता है कि यदि पुनरुत्थान नहीं है, यदि मसीह का पुनरुत्थान नहीं हुआ, तो मसीही विश्वास से संबंधित सभी प्रचार और शिक्षा व्यर्थ है (1 कुरिन्थियों 15:12-18)। इसीलिए, जैसा 1 कुरिन्थियों 15:12 में पूछे गए प्रश्न सो जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा, तो तुम में से कितने क्योंकर कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं?से प्रकट है, कलीसिया के आरंभ के साथ ही प्रभु यीशु के पुनरुत्थान की वास्तविकता पर हमले होने, उसका इनकार करने के प्रयास आरंभ हो गए थे। पुनरुत्थान को झुठलाने के शैतान के ये प्रयास दिखाते हैं कि यह तथ्य उसके तथा उसके राज्य के लिए कितना खतरनाक है।

  प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान को झुठलाने के एक प्रयास को हम पिछले लेख में देख चुके हैं - लोगों में यह मनगढ़ंत कहानी प्रचलित कर दी गई कि प्रभु यीशु मरा नहीं था, बेहोश हुआ था, और कब्र के ठन्डे वातावरण में जब उसे होश आया, तो वह उठकर कब्र से बाहर आ गया और कहीं चला गया। इसी प्रकार से और भी कुछ कहानियाँ पुनरुत्थान को झुठलाने के लिए बनाई गई हैं, जिन्हें हम अगले लेख में देखेंगे। किन्तु बारीकी से जाँचने पर इनमें से कोई भी कहानी बाइबल में दिए गए विवरणों पर खरी नहीं उतरती है। लेकिन पुनरुत्थान को झुठलाने के ये प्रयास दिखाते हैं कि प्रभु यीशु का पुनरुत्थान कितनी महत्वपूर्ण घटना है, और शैतान इसे नकारने के लिए कितना बेचैन है। इसी से यह भी समझ में आने पाता है कि क्यों प्रभु ने चालीस दिन तक अपने शिष्यों को इस बात में दृढ़ किया कि वह वास्तव में शारीरिक रीति से जी उठा है, उसका पुनरुत्थान कोई कल्पना या छलावा या सामूहिक सम्मोहन द्वारा दिमाग में डाली गई बात नहीं है। 

वह जो मृत्यु के इस पार और उस पार, दोनों स्थितियों से भली-भांति अवगत है, वह आपसे, आपके प्रति अपने महान और समझ से बाहर प्रेम के अंतर्गत, अपने शिष्यों में होकर, इन लेखों में होकर, संसार की घटनाओं के प्रमाणों में होकर निवेदन कर रहा है “...मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो” (2 कुरिन्थियों 5:20)। शैतान की किसी बात में न आएं, किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा।  

 

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 15:12-22 

1 कुरिन्थियों 15:12 सो जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा, तो तुम में से कितने क्योंकर कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं?

1 कुरिन्थियों 15:13 यदि मरे हुओं का पुनरुत्थान ही नहीं, तो मसीह भी नहीं जी उठा।

1 कुरिन्थियों 15:14 और यदि मसीह भी नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है।

1 कुरिन्थियों 15:15 वरन हम परमेश्वर के झूठे गवाह ठहरे; क्योंकि हम ने परमेश्वर के विषय में यह गवाही दी कि उसने मसीह को जिला दिया यद्यपि नहीं जिलाया, यदि मरे हुए नहीं जी उठते।

1 कुरिन्थियों 15:16 और यदि मुर्दे नहीं जी उठते, तो मसीह भी नहीं जी उठा।

1 कुरिन्थियों 15:17 और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो तुम्हारा विश्वास व्यर्थ है; और तुम अब तक अपने पापों में फंसे हो।

1 कुरिन्थियों 15:18 वरन जो मसीह में सो गए हैं, वे भी नाश हुए।

1 कुरिन्थियों 15:19 यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्यों से अधिक अभागे हैं।

1 कुरिन्थियों 15:20 परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ।

1 कुरिन्थियों 15:21 क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया।

1 कुरिन्थियों 15:22 और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।

एक साल में बाइबल:

·      नीतिवचन 27-29

·      2 कुरिन्थियों 10