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रविवार, 19 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 25

 

पाप का समाधान - उद्धार - 21

       पिछले लेखों में हम देखते आ रहे हैं कि मनुष्य के पाप से उत्पन्न हुई स्थिति के समाधान और निवारण के लिए एक ऐसे सिद्ध मनुष्य की आवश्यकता थी जो परमेश्वर के पूर्ण आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करे, और सभी के पापों के लिए अपने आप को स्वेच्छा से बलिदान करके, उनके लिए मृत्यु को सह ले। किन्तु उसे मृत्यु को पराजित भी करना था, अर्थात मृतकों में से लौट कर आना था, जिससे मनुष्यों पर से मृत्यु की पकड़ मिट जाए, और फिर उसके द्वारा दिए गए अपने बलिदान, अपने पुनरुत्थान, और मृत्यु पर विजय को सारे संसार के सभी मनुष्यों के साथ सेंत-मेंत बांटने को तैयार हो। अभी तक हमने देखा कि प्रभु यीशु मसीह ही वह एकमात्र ऐसा निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र, सिद्ध मनुष्य था जिसने अपने पृथ्वी के जीवन में इन सभी आवश्यक बातों को पूरा किया, और मृतकों में से जी भी उठा। 

आज हम परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे कि प्रभु यीशु ने अपने जीवन, बलिदान, और पुनरुत्थान के लाभ को सेंत-मेंत समस्त मानवजाति को उपलब्ध भी करवा दिया है। उसने अपने लिए कुछ नहीं रख छोड़ा, अपना सब कुछ हम पापी मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम के अंतर्गत न्योछावर कर दिया। यह हम पापी मनुष्यों के प्रति उसका अनुग्रह है, अर्थात उसकी वह भलाई है, जिसके हम योग्य नहीं हैं, और न ही जिसे कभी अपने किसी धर्म-कर्म, रीतियों, और धार्मिकता के कार्यों के द्वारा कमा सकते हैं। भला एक पापी मनुष्य कुछ भी कर ले, किन्तु क्या वह कभी भी एक निर्दोष, निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र मनुष्य से बढ़कर योग्य हो सकता है? क्या पापी मनुष्य उस सिद्ध के द्वारा अपने प्राणों के एक भयानक, वीभत्स, अत्यंत यातनाएँ सहते हुए दिए गए बलिदान की कोई कीमत लगा सकता है; और फिर उस कीमत को चुकाने के योग्य हो सकता है? मनुष्य केवल प्रभु यीशु के कार्य को कृतज्ञ और धन्यवादी होकर एक भेंट के रूप में स्वीकार ही कर सकता है; उसे किसी भी रीति से प्रभु से खरीद नहीं सकता है, प्रभु के कार्य के प्रत्युत्तर में उसके समान या उससे बढ़कर कुछ ऐसा नहीं कर सकता है जिसके सहारे वह फिर प्रभु के कार्य के लाभों कीमत चुका कर उससे उसको प्राप्त कर सके। 

परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखे इन पदों पर ध्यान कीजिए:पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लोगों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ। और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुतेरे अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ, कि लोग धर्मी ठहरे। क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे” (रोमियों 5:15-19)। इन पदों से प्रकट बातें हैं:

  • प्रभु यीशु मसीह द्वारा किया गया कार्य, परमेश्वर द्वारा अनुग्रह के वरदान समान उपलब्ध करवाया गया है। 
  • यह कुछ सीमित और परिभाषित लोगों के लिए नहीं वरनबहुतेरोंके लिए है; अर्थात उनके लिए जो उसके इस बलिदान और अनुग्रह की भेंट को स्वीकार कर लेंगे।
  • जो भी इस प्रभु यीशु से उसके इस अनुग्रह के दान को स्वीकार करेगा, वही परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी ठहरेगा; और प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनन्त जीवन में राज्य करेगा। 
  • प्रभु यीशु मसीह का यह कार्यसब मनुष्यों के लिएउन्हें अनन्त जीवन के लिए धर्मी ठहराए जाने के लिए है; सभी के लिए पर्याप्त है, उपलब्ध है। किन्तु इसे स्वीकार अथवा अस्वीकार करना, प्रत्येक व्यक्ति का अपना निर्णय है। 
  • प्रभु यीशु मसीह द्वारा की गई परमेश्वर की आज्ञाकारिता, आदम और हव्वा द्वारा की गई अनाज्ञाकारिता के परिणामों को पलट कर वापस लोगों को धर्मी ठहराने के लिए सक्षम और पर्याप्त है। 

            प्रभु यीशु का यह कार्य सारे संसार के सभी मनुष्यों के लिए है, उसके अनुग्रह से उसके द्वारा समस्त मानवजाति को दान के समान उपलब्ध करवाया गया है। दान को कृतज्ञता के साथ स्वीकार तथा प्रयुक्त किया जाता है; दान को किसी भी प्रकार से मोल लेने का प्रयास करना, उस दान की कीमत और महत्व को गौण करना, तथा उस दान और दान देने वाले, दोनों का ही अपमान करना है। 

इसी प्रकार से प्रभु ने अपने पुनरुत्थान और उससे मृत्यु पर मिली विजय को भी अपने अनुग्रह के दान के समान समस्त मानव जाति के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध करवा दिया है:इसलिये जब कि लड़के मांस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उन के समान उन का सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात शैतान को निकम्मा कर दे। और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा ले” (इब्रानियों 2:14-15)

प्रभु यीशु ने हम पापी मनुष्यों के उद्धार और परमेश्वर से मेल-मिलाप को बहाल करवाने के लिए जो कुछ भी आवश्यक था, वह सब संपूर्ण करके दे दिया, उसे हमें सेंत-मेंत में अर्थात मुफ़्त में, उपलब्ध भी करवा दिया। यह उद्धार और बहाली परमेश्वर की ओर से हमारे प्रति उसके अनुग्रह का कार्य है, जिसे वह हमारे प्रति अपने प्रेम के अंर्तगत एक दान, एक भेंट के रूप में उपलब्ध करवाता है। भेंट या दान इसलिए, क्योंकि किसी मनुष्य में यह योग्यता अथवा क्षमता नहीं है कि वह प्रभु परमेश्वर यीशु मसीह के द्वारा किए गए इस कार्य के लाभ को मोल ले सके; और यदि परमेश्वर इसकी कोई कीमत लगा देता, तो उनका क्या होता जो किसी भी कारण से वह कीमत चुका पाने में असमर्थ होते - वे तो फिर उद्धार के लाभ से वंचित रह जाते। परमेश्वर सभी से समान प्रेम करता है, इसलिए सभी के लिए, वह कोई भी, कैसा भी, कहीं भी क्यों न हो, सभी को एक समान अवसर प्रदान किया है।

प्रभु यीशु ने तो अपना काम कर के दे दिया है; किन्तु क्या आपने उसके इस आपकी ओर बढ़े हुए प्रेम और अनुग्रह के हाथ को थाम लिया है, उसकी भेंट को स्वीकार कर लिया है? या आप अभी भी अपने ही प्रयासों के द्वारा वह करना चाह रहे हैं जो मनुष्यों के लिए कर पाना असंभव है। यदि अभी भी आपने प्रभु यीशु के बलिदान के कार्य को स्वीकार नहीं किया है, तो  अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा। 

बाइबल पाठ: रोमियों 5:6-11 

रोमियों 5:6 क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा।

रोमियों 5:7 किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो र्दुलभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी हियाव करे।

रोमियों 5:8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।

रोमियों 5:9 सो जब कि हम, अब उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे?

रोमियों 5:10 क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?

रोमियों 5:11 और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड भी करते हैं।

 

एक साल में बाइबल:

·      सभोपदेशक 1-3

·      2 कुरिन्थियों 11:16-33