बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

परमेश्वर की महिमा के विष्य में एक पाठ

"परमेश्वर से निराशा" नामक मेरी एक पुस्तक, मसीहियों द्वारा अकसर पूछे जाने वाले तीन प्रश्नों की छान-बीन करती है: क्या परमेश्वर छिप कर रहता है? क्या परमेश्वर मौन रहता है? क्या परमेश्वर पक्षपाती है? सिनै जंगल में ये प्रश्न इब्रानियों को भी परेशान करते थे, यद्यपि उन्होंने प्रति दिन परमेश्वर का प्रमाण पाया, उसकी बोली सुनी और उसके हाथ से लिखित वाचा के आधीन रहे। परमेश्वर से अपने इस संबंध से यहूदियों ने एक महान भेंट संसार को दी - एक-ईश्वरवाद, अर्थात केवल एक सर्वशक्तिशाली, पवित्र परमेश्वर में विश्वास।

आज कई लोग परमेश्वर को मात्र एक अच्छा अलौकिक मित्र समझते हैं। हम परमेश्वर की महिमा एवं गौरव का एक पाठ पुराने नियम से सीख सकते हैं।

पास्टर गौईन मकडौनल्ड लिखते हैं, "अपने जीवन के सबसे बुरे पाप मैंने उन समयों पर किये जब परमेश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा को मैंने चुपचाप से कुछ समय के लिये नज़रन्दाज़ कर दिया था....मैंने ऐसे ही मूर्खता पूर्वक मान लिया कि अगर मैं उसके किसी एक नियम को तोड़ने का जोखिम उठाऊं तो परमेश्वर न उसकी परवाह करेगा न ही उसके लिये हस्तक्षेप करेगा।"

मकडौनल्ड आगे लिखते हैं कि अब परमेश्वर के प्रति उनके प्रेम ने उस भावत्मक नमूने को छोड़ दिया, जिससे उन्हें कभी पूर्ण संतुष्टी नहीं मिली और वे अब उस प्रेम को पिता-पुत्र के प्रेम के रूप में देखने लगे हैं। उन्होंने परमेश्वर के प्रति श्रद्धा, धन्यवाद और आज्ञाकारिता का पाठ सीखना शुरू किया है, साथ ही सीखना शुरू किया है पाप से पछतावा और शांत रहकर परमेश्वर की धीमी आवाज़ सुनना। अब वे उस संबंध के खोजी बने हैं जो परमेश्वर की हैसियत की तुलना में उनकी हैसियत के अनुरूप था।

परमेश्वर की संतान होने के कारण हमें आज़ादी है कि हम "परमेश्वर के सिंहासन के निकट हियाव बांधकर चलें" (इब्रानियों ४:१६) लेकिन ऐसा करते समय परमेश्वर पिता के अनुपम प्रताप और गौरव को कभी कमतर न होने दें। - फिलिप यैन्से

उपासना करने का अर्थ है परमेश्वर का परम मूल्य पहचानना।


बाइबल पाठ: निर्गमन ३३:१-११


तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेर्रे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता। - निर्गमन ३३:२०


एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन ३१-३३
  • मत्ती २२:१-२२