बुधवार, 21 अप्रैल 2010

आंधी के शोर

जब भी मैं रेडियो पर एक व्यवसायिक प्रचार कार्यक्रम सुनता हूँ तो मुझे हंसी आती है। उस कार्यक्रम में एक स्त्री अपनी सहेली से बहुत ऊंची आवाज़ में बात करती है। क्योंकि उस स्त्री का घर एक आंधी में क्षतिग्रस्त हो गया था और बीमा कंपनी ने उसकी क्षति पूर्ति नहीं की थी तो उसे अपने अन्दर आंधी का शोर ही सुनाई देता रहता था और वह उस शोर से अधिक ऊंची आवाज़ में बात करने का प्रयास करती थी।

मैंने और आपने भी अपने जीवन में अपने अन्दर आंधीयों के शोर सुने हैं। यह होता है जब कोई दुर्घटना घटती है - हमारे साथ या हमारे किसी प्रीय जन के साथ, या हम किसी के बारे में बुरे समाचार सुनते हैं। तब हमारे मन ’क्या हो अगर’ जैसे सवालों की आंधी से भर जाते हैं। हम हर सम्भव बुरे परिणाम के विचारों से भर जाते हैं, और हमारा ध्यान उन्हीं पर केंद्रित हो जाता है। हमारे भय, चिंताएं, परमेश्वर में विश्वास सब बढ़ते-घटते रहते हैं और हम प्रतीक्षा करते हैं, प्रार्थना करते हैं, दुख मनाते हैं इस चिंता में कि अब परमेश्वर क्या करेगा।

किसी भी आंधी या परेशानी में डरना एक स्वभाविक प्रतिक्रीया है। चेलों के साथ प्रभु यीशु वहीं नाव में था, किंतु फिर भी वे भयभीत हुए (मत्ती ८:२३-२७)। उसने आंधी को शांत करके उन्हें सिखाया कि वह सर्वशक्तिशाली परमेश्वर है, और उनकी चिंता भी करता है।

हम इच्छा रखते हैं कि जैसे प्रभु ने उन चेलों की आंधी को शांत किया, हमारे जीवन कि आंधियों को भी सदा वैसे ही शांत करे। लेकिन हम शांति के पल पा सकते हैं यदि हम इस विश्वास पर स्थिर हैं कि जैसे चेलों के साथ वह नाव में था, वैसे ही हमारे साथ भी सदा रहता है और हमारी देख रेख करता है। - ऐनी सेटास


लंगर का महत्त्व और सामर्थ आंधी के हिचकोलों में ही होती है।


परमेश्वर जो शांति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा। - फिलिप्पियों ४:९


बाइबल पाठ: मत्ती ८:२३-२७


एक साल में बाइबल:
  • २ शमुएल १२, १३
  • लूका १६