शनिवार, 22 मई 2010

मैं तो सही हूं; आप ही गलत होंगे!

मेरी सहेली रिया, विशाल नीले सारस के पंखों के ६ फुट के फैलाव और उसके शनदार रूप से बहुत प्रभावित है। उसके घर के पास एक तालाब में स्थित एक छोटे टापु पर उस सारस को नीचे उतरने के लिये पंख फैलाये हुए आते देखना उसे बहुत अच्छा लगता है।

अब, मैं भी मानती हूं कि सारस एक अनुपम और अद्‍भुत पक्षी है, किंतु अपने घर के पिछवाड़े में मैं उसे कभी देखना नहीं चाहती। यह इसलिये क्योंकि मैं जनती हूं कि यदि वह वहां आया तो केवल बाग़ की सुन्दरता निहारने नहीं आयेगा; यह अवांछित आगन्तुक तालाब से मछलियां खाने आयेगा।

तो अब मैं सही हूं या रिया? हम सहमत क्यों नहीं हो सकते? अलग अलग व्यक्तित्व, अनुभव, या ज्ञान लोगों के दृष्टिकोण में फर्क ला सकते हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि एक व्यक्ति सही है और दूसरा गलत; फिर भी कभी कभी यदि आपसी सहमति न हो तो हम निर्दयी, कठोर और दोष लगाने वाले बन जाते हैं। मैं पाप के विष्य में बात नहीं कर रही हूं - केवल दृष्टिकोण या विचारों की भिन्नता की। किसी के विचारों, उद्देश्यों या कार्यों की आलोचाना करने या उनपर दोष लगाने से पहले हमें सतर्क रहना चाहिये, क्योंकि हम भी नहीं चाहेंगे कि हम पर दोष लगाया जाय (लूका ६:३७)।

जो हमसे भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं क्या उनसे हम कुछ सीख सकते हैं? क्या हमें कुछ धीरज और प्रेम के व्यवहार का पालन करने की आवश्यक्ता है? मैं बहुत धन्यवादी हूं कि परमेश्वर मुझसे बहुत प्रेम रखता है और मेरे प्रति अति धैर्यवान रहता है। - सिंडी हैस कैस्पर


थोड़ा प्यार बड़ा बदलाव लाता है।


बाइबल पाठ: लूका ६:३७-४२


दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे। - लूका ६:३७


एक साल में बाइबल:
  • १ इतिहास १६-१८
  • यूहन्ना ७:२८-५३