सोमवार, 31 मई 2010

सम्मान

सन १९४८ में अमेरिकी वायुसेना के प्रमुख ने जाना कि आरलिंगटन के कब्रिस्तान में वायुसेना के एक सैनिक की अंतिम क्रीया में कोई सम्मिलित नहीं हुआ। वह इससे बहुत विचिलित हुआ। उसने अपनी पत्नी से अपनी इस चिंता के बारे में बात करी कि हर सैनिक को उसकी अंतिम यात्रा के समय उचित सम्मान मिलना चाहिये। उसकी पत्नी ने इस बात के समाधान के लिये एक समूह बनाया जिसके सद्स्य "आरलीगटन महिलाओं" के नाम से जाने गए।

उस समूह की कोई न कोई सद्स्या प्रत्येक सैनिक की शवयात्रा में सम्मिलित होकर उसे सम्मान देती है। वे शोकित परिवार को सहानुभूति के व्यक्तिगत पत्र लिखती हैं और परिवार के सद्स्यों से उनके इस बलिदान के प्रति कृत्ज्ञता प्रगट करती हैं। जहां तक संभव होता है, इस समूह का कोई प्रतिनिधि उस परिवार से कई महीनों तक सम्पर्क बनाए रखता है।

उस समूह कि एक सद्स्या मार्ग्रेट मेनश्च का कहना है कि, "आवश्यक बात यह है कि उन दुखी परिवारों के साथ कोई बना रहे, यह एक आदर की बात है कि हम सेना के इन शूरवीरों का सम्मान करें।"

यीशु ने भी सम्मान देने के महत्व के बारे में दर्शाया। जब एक स्त्री ने बहुमूल्य इत्र उसके सिर पर उंडेला तो यीशु ने कहा कि उस स्त्री का यह कार्य आते समय में सदा स्मरण किया जायेगा (मत्ती २६:१३)। चेले उस स्त्री से क्रोधित हुए और इस बात को पैसा बरबाद करने वाली कहा, लेकिन यीशु ने इस "एक अच्छा कार्य" (पद १०) कहा, जिसके लिये वह स्मरण करी जायेगी।

हम ऐसे शूरवीरों को जानते होंगे जिन्होंने परमेश्वर और देश की सेवा में अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। हम आज उनका सम्मान करें। - ऐनि सेटास


एक दूसरे को स्म्मान देकर हम परमेश्वर का सम्मान करते हैं।


बाइबल पाठ: मत्ती २६:६-१३


सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा। - मत्ती २६:१३


एक साल में बाइबल:
  • २ इतिहास १३, १४
  • यूहन्ना १२:१-२६