बुधवार, 14 जुलाई 2010

प्रेम की परिभाषा


यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।



और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्‍तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।


और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।


प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।


वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।


कुकर्म से आनन्‍दित नहीं होता, परन्‍तु सत्य से आनन्‍दित होता है।


वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।


प्रेम कभी टलता नहीं, भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी, ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।


क्‍योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।


पर अब विश्वास, आशा, ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।

- १ कुरिन्थियों १३:१-९,१३

हारे हुओं के लिये प्रेम

किसी व्यक्ति के बारे में उसकी टी-शर्ट पर लिखी बातों से काफी कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। हॉल ही में बाज़ार में एक युवती की चटकीली लाल टी-शर्ट पर लिखे वाक्य ने मेरा ध्यान आकर्षित किया और मुझे विचार-मग्न कर दिया। उसकी टी-शर्ट पर लिखा था "प्रेम हारने वालों के लिये है।" संभवतः यह उसे चतुराई दिखाने या उकसाने या विनोद करने का एक साधन लगा हो। या हो सकता है कि वह किसी संबंध के द्वारा दुखी हुई हो और यह लोगों को अपने से दूर रखने का उसका प्रयास हो।

बात कोई भी रही हो, लेकिन मुझे उसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या प्रेम वास्तव में हारे हुए लोगों के लिये है? यह सच है कि जब हम प्रेम करते हैं तो हम जोखिम उठाते हैं। लोग हमें दुखी कर सकते हैं, निराश कर सकते हैं या हमें छोड़ भी सकते हैं। प्रेम हमें नुकसान में भी ले जा सकता है।

बाइबल हमारे सामने प्रेम के ऊंचे स्तर की चुनौती रखती है। १ कुरिन्थियों १३ में पौलुस बताता है कि परमेश्वर के अनुसार प्रेम करना किसे कहते हैं; और जो व्यक्ति ऐसा प्रेम करता है वह अपने किसी व्यक्तिगत लाभ के लिये नहीं, वरन इसलिये प्रेम करता है क्योंकि ऐसा प्रेम "सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है" (१ कुरिन्थियों १३:७)। क्यों? क्योंकि परमेश्वरीय प्रेम जीवन की दुखदायी परिस्थितियों में भी दृढ़ और स्थिर रहता है और हमें लगातार परमेश्वर पिता की कभी न कम होने वाली देख-रेख की ओर खींचता रहता है।

इसीलिये शायद प्रेम हारने वालों के लिये ही है - क्योंकि नुकसान और निराशा की परिस्थितियों में ही हमें परमेश्वर की सबसे अधिक आवश्यक्ता होती है; और हम यह भी जानते हैं कि हमारे जीवन के संघर्षों में हमारे परमेश्वर पिता का प्रेम कभी नहीं हार सकता। - बिल क्राउडर


परमेश्वर का प्रेम कभी साथ नहीं छोड़ता।


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों १३


पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है। - १ कुरिन्थियों १३:१३


एक साल में बाइबल:
  • भजन १०-१२
  • प्रेरितों के काम १९:१-२०