गुरुवार, 15 जुलाई 2010

एक ही लालसा

नेचायेव, १९वीं सदी में कार्ल मार्क्स का अनुयायी था, और रूस के ज़ार एलेक्ज़ैन्डर द्वितीय की हत्या में उसकी भूमिका थी। नेचायेव ने लिखा "एक क्रांतिकारी की...कोई व्यक्तिगत इच्छाएं नहीं होतीं, कोई व्यापारिक कार्य नहीं, कोई भावनाएं नहीं, कोई संपत्ति या नाम नहीं और न ही किसी से कोई चाह या स्नेह। उसके अन्दर का सब कुछ केवल क्रांति के ही विचार और लालसा में लगा रहता है।" यद्यपि उसके उद्देश्य और लक्ष्य गलत थे, नेचायेव का यह कथन क्रांति के प्रति समर्पित उसकी कटिबद्धता को दिखाता है।

यीशु अपने चेलों से सच्चा समर्पण चाहता है। लूका १४ में हम पढ़ते हैं कि जब वह यरुशलेम की ओर जा रहा था तो एक बड़ी भीड़ उसके साथ थी। संभ्वतः इस भीड़ के लोगों ने अपने आप को यीशु के चेले समझ लिया होगा। परन्तु यीशु ने सिखाया कि चेला होने का तात्पर्य उसके बारे में जानकारी रखने से कहीं बढ़कर है; जो वास्तव में चेला होना चाहता है, उसे इस की कीमत चुकानी होती है। यीशु के प्रति वफादारी से बढ़कर चेले के लिये कोई अन्य बात नहीं होती - न माता-पिता के प्रति प्रेम और न अपना जीवन। उसके चेलों को, तब और अब, यह मानकर चलना था कि उनके जीवन में परमेश्वर ही सर्वोपरि और प्रथम होगा, सांसारिक संपत्ति और सामाजिक संबंध आदि सब कुछ का स्थान उसके बाद होगा।

यीशु अपने चेलों से चाहता है कि उनके जीवन में केवल एक ही लगन और लालसा हो - यीशु की। - मार्विन विलियम्स


यीशु के प्रति प्रेम ही हमारे आत्मिक लालसा की कुंजी है।


बाइबल पाठ: लूका १४:२५-३५


यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्‍नी और लड़के-बालों और भाइयों और बहिनों बरन अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। - लूका १४:२६


एक साल में बाइबल:
  • भजन १३-१५
  • प्रेरितों के काम १९:२१-४१