गुरुवार, 29 जुलाई 2010

घर वापसी

अपने लड़कपन में समय बिताने का मेरा मन पसन्द तरीका था अपने घर के पीछे बह रहे पानी के नाले के साथ साथ चलना। यह करना मेरे लिये बहुत रोमांचकारी होता था; बहुत से मन बहलाने वाले काम करने को होते थे: पत्थरों पर चढ़ना-उतरना,पक्षियों को देखना, जानवरों के पैरों के निशनों के सहारे उनका पीछा करना, उस नाले पर छोटे बांध बनाना, आदि। अगर मैं इन सब के बावजूद नाले के मुहाने तक पहुंच पाता, तो मैं और मेरा पालतु कुत्ता झील के किनारे बैठ कर कुछ खाते और झील पर उड़ान भरते वायुयानों को देखते रहते।

हमसे जितना संभव हो सकता था, हम उतनी देर इन सब में बिताते, परन्तु बहुत देर नहीं कर सकते थे क्योंकि मेरे पिता के निर्देश थे कि हम सूर्यास्त से पहले ही घर पहुंच जाया करें। उस जंगल के रास्ते पर दिन का उजाला जल्द ही कम हो जाता था और मार्ग में बढ़ते अन्धकार के कारण मैं अक्सर सोचता कि काश मैं घर जल्दी पहुंच सकूं।

हमारा घर जंगल के पेड़ों के पार एक टीले पर स्थित था, और जब तक परिवार का प्रत्येक सदस्य घर न पहुंच जाए, घर की बत्ती जली रहती थी। अक्सर मेरे पिता पिछले बरामदे में मेरे इंतिज़ार में बैठे अखबार पढ़ रहे होते थे। मेरे पहुंचने पर वे पूछते, "समय कैसा रहा?" और मैं उत्तर देता, "बहुत बढ़िया, लेकिन घर वापस पहुंचना सबसे अच्छा है।"

अब, बढ़ी उम्र में, उन दिनों की यह यादें मुझे एक और यात्रा के बारे में सोचने को प्रोत्साहित करती हैं - जिस यात्रा पर मैं अब अग्रसर हूं। यह यात्रा आसान नहीं है, लेकिन मैं जानता हूं कि यात्रा के अन्त में अपने अनन्त घर में मैं अपने प्रेमी स्वर्गीय पिता से मिलुंगा, जो मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। इस यात्रा के पूरे होने और अपने उस स्वर्गीय पिता से मिलने के लिये मैं बहुत आतुर हूं।

वहां मेरी प्रतीक्षा हो रही है, प्रतीक्षा में उस अनन्त घर में ज्योति चमक रही है और मेरा पिता मेरी राह देख रहा है। मुझे लगता है कि मेरे पृथ्वी के पिता के समान, मेरे घर पहुंचने पर वह मुझसे पूछेगा "समय कैसा रहा?" और मैं उसे उत्तर दूंगा "बहुत बढ़िया, लेकिन घर वापस पहुंचना सबसे अच्छा है।"

क्या आप भी ऐसे ही घर वापसी की राह देख रहे हैं? - डेविड रोपर


एक मसीही विश्वासी के लिये स्वर्ग का दूसरा नाम घर है।

तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा। - भजन ७३:२४

बाइबल पाठ: भजन ७३:२१-२८

मेरा मन तो चिड़चिड़ा हो गया, मेरा अन्त:करण छिद गया था,
मैं तो पशु सरीखा था, और समझता न था, मैं तेरे संग रहकर भी, पशु बन गया था।
तौभी मैं निरन्तर तेरे संग ही था, तू ने मेरे दहिने हाथ को पकड़ रखा।
तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा।
स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता।
मेरे हृदय और मन दोनों तो हार गए हैं, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिये मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्टान बना है।।
जो तुझ से दूर रहते हैं वे तो नाश होंगे, जो कोई तेरे विरूद्ध व्यभिचार करता है, उसको तू विनाश करता है।
परन्तु परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है; मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है, जिस से मैं तेरे सब कामों का वर्णन करूं।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ४९, ५०
  • रोमियों १