रविवार, 26 सितंबर 2010

प्रेम की सहिषुण्ता

लगभग ४० वर्ष पूर्व की बात है, मेरा ध्यान अपने एक मित्र की ओर गया। वह मित्र किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति बहुत लगाव दिखा रहा था जो मेरी दृष्टि में प्रेम के ज़रा भी योग्य नहीं था। मुझे लगा कि मेरे मित्र को किसी जाल में फंसाया जा रहा है और वह अन्त में इस धोखे के कारण दुखी और निराश होगा।

मैं ने अपने मित्र से इस बात को लेकर अपनी चिन्ता व्यक्त करी। उसका उत्तर मुझे आज भी नहीं भूला, उसने कहा "जब मैं अपने प्रभु के सामने अपने जीवन का हिसाब देने के लिये खड़ा होऊंगा, तब मैं चाहता हूँ कि वह मेरे लिये कहे कि ’इसने बहुतों से प्रेम किया’ न कि यह कि ’इसने बहुत थोड़ों से प्रेम किया’।"

पौलुस आग्रह के साथ कहता है कि प्रेम "सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है" (१ कुरिन्थियों १३:७)। प्रेम लोगों में छिपी अन्तःशक्ति को देखता है, और उन पर विश्वास रखता है। प्रेम जानता है कि परमेश्वर सबसे अयोग्य और अप्रीय व्यक्ति को भी अनुग्रह और सौन्दर्य की महान कृति में बदल सकता है; इस कारण प्रेम किसी को तुच्छ नहीं जानता। यदि प्रेम गलती भी करता है तो वह गलती विश्वास और आशा रखने की होती है।

परमेश्वर का वचन हमें जान बूझ कर मूर्ख बनने के लिये नहीं कहता, वह सिखाता है कि " देखो, मैं तुम्हें भेड़ों की नाईं भेडिय़ों के बीच में भेजता हूं सो सांपों की नाई बुद्धिमान और कबूतरों की नाई भोले बनो" (मती १०:१६)। यदि मूर्ख, निकम्मे और गैरज़िम्मेदार लोगों के प्रति कठोर भी होना पड़े तो वह कठोरता प्रतिशोध और निर्दयता सहित नहीं वरन प्रेम सहित होनी चाहिये।

प्रेम रखने में यदि हमें धोखा भी खाना पड़े तो वह हमारे लिये कोई बड़ी हानि का कारण नहीं ठहरेगा ( मत्ती ५:३८-४८)। बेहतर है कि हम प्रेम सहित विश्वास रखने में धोखा खायें और हमारे दिल टूट जाएं, बजाए इसके कि हम बेदिल और निष्प्रेम रहें। अंग्रेज़ी कवि एल्फ्रेड टैनिसन ने कहा "प्रेम नहीं करने से कहीं बेहतर है कि प्रेम करते हुए हार जाएं" और मैं इससे पूर्णतया सहमत हूँ।

प्रभु यीशु ने जो प्रेम हमसे किया, उस प्रेम को प्रदर्शित करने में हमें ध्यान रखना चाहिये कि हम आवश्यक्ता से अधिक सतर्कता, सन्देह और सुरक्षा रखने वाले न बने क्योंकि "जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्‍योंकि परमेश्वर प्रेम है" और "...परमेश्वर प्रेम है: जो प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्वर में बना रहता है, और परमेश्वर उस में बना रहता है" ( १ यूहन्ना ४:८, १६)। - डेविड रोपर


प्रेम यह नहीं देखता कि कौन क्या है, वरन यह कि वह "प्रेम" द्वारा क्या बनाया जा सकता है।

वह[प्रेम] सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। - १ कुरिन्थियों १३:७


बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों १३

यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झंझ हूं।
और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्‍तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपाल है, प्रेम डाह नहीं करता, प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
कुकर्म से आनन्‍दित नहीं होता, परन्‍तु सत्य से आनन्‍दित होता है।
वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी, ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
क्‍योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
परन्‍तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी, परन्‍तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं।
अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है, परन्‍तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है परन्‍तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।

एक साल में बाइबल:
  • यशायाह १, २
  • गलतियों ५