रविवार, 14 नवंबर 2010

सताव और क्लेशों से निकलती मण्डली

अक्तूबर २००६ की एक प्रातः, एक स्त्री और उसके छः बच्चों को मजबूर किया गया कि वे अपने पति/पिता को दी जाने वाली यातनाओं को देखें। यातना देने वाले चाहते थे कि वह आदमी प्रभु यीशु का इन्कार करे, परन्तु वह नहीं माना, और यातना सहते सहते भी यीशु को अपना प्रभु होने की घोषणा करता रहा और अपने परिवार के लिये यीशु से प्रार्थना करता हुआ उनके सामने मर गया। अपने इस दुख में भी वह परिवार प्रभु यीशु का अनुसरण करने को अब भी दृढ़ निश्चित है।

एक अन्य व्यक्ति को ३ वर्ष के कारावास का दण्ड दिया गया, उस पर इल्ज़ाम था कि उसने किसी दूसरे के धर्म का अपमान किया है। दण्ड पाने वाला मसीह के लिये उत्साह रखने वाला और प्रभु यीशु मसीह की गवाही देने वाला व्यक्ति है। वह व्यक्ति, उसकी पत्नी और बच्चे आज भी मसीह के प्रति वफादार हैं और प्रभु का इनकार करने से इनकार करते हैं।

मसीही विश्वास के लिये सताया और प्रताड़ित किया जाना वर्तमान २१वीं सदी के हमारे समाज में उतना ही वास्तविक है जितना पहली सदी के यहूदी विश्वासियों के लिये था, जिन्हें पतरस ने उत्साहित करने के लिये लिखा और प्रार्थना करी "अब परमेश्वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, जिस ने तुम्हें मसीह में अपनी अनन्‍त महिमा के लिये बुलाया, तुम्हारे थोड़ी देर तक दुख उठाने के बाद आप ही तुम्हें सिद्ध और स्थिर और बलवन्‍त करेगा। उसी का साम्राज्य युगानुयुग रहे। आमीन।" (१ पतरस ५:१०, ११)

यह सताव केवल उन देशों में ही नहीं है जो किसी भी धर्म को नहीं मानते जैसे कम्युनिस्ट देश, या जहां किसी अन्य धर्म के अनुयायी बहुमत में हैं, अथवा जो किसी अन्य धर्म को अपने देश का धर्म मानते हैं। यह सताव उन देशों में भी उतना ही व्याप्त है जिन्हें हम ’पाश्चात्य’ देश कहकर संबोधित करते हैं और जिनके विष्य में आम धारणा है कि वे ’इसाई’ देश हैं। मसीही विश्वास किसी धर्म से संबंधित नहीं है - इस विश्वास और धर्म में ज़मीन - आसमान का अन्तर है।

प्रभु यीशु मसीह न तो कोई धर्म देने आया, न किसी धर्म के अनुयायी बनाने आया। वह पाप के बन्धन में जकड़े संसार के प्रत्येक जन को मुक्ति का मार्ग देने और परमेश्वर की सन्तान होने का दर्जा देने आया। वह किसी का धर्म बदलने नहीं, वरन सबका मन बदलने आया। उसका अनुसरण करना, किसी धर्म का पालन करना कदापि नहीं है, न ही यह किन्ही धार्मिक कर्तव्यों और अनुष्ठानों को पूरा करना है; और न ही किसी धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेने से कोई स्वतः ही उसका अनुयायी बन जाता है। जो कोई सच्चे विश्वास और सम्पूर्ण मन से अपने पापों की क्षमा के लिये उससे एक छोटी सी प्रार्थना कर लेता है "हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि आपने मेरे पापों के लिये अपने प्राण दिये, कृप्या मेरे पाप क्षमा कर मुझे अपनी शरण में ले लीजिए" वह उसी क्षण से प्रभु यीशु का अनुयायी हो जाता है, चाहे वह किसी धर्म, जाति या भूभाग से संबंध रखता हो।

आज सताव और क्लेशों से निकलती प्रभु यीशु की विश्वव्यापी विश्वासी मण्डली के लिये प्रार्थना का दिन है। आप भी अपनी प्रार्थनाओं द्वारा सहयोग दे सकते हैं। प्रार्थना कीजिये कि:
१. जिन देशों में मसीही विश्वास की गवाही देना प्रतिबंधित है, वहाँ के गुप्त विश्वसी अपने विश्वास में दृढ़ रहें और सुरक्षित रहें।
२. जो मसीही विश्वासी अपने विश्वास के कारण बन्दीगृहों में पड़े हैं वे उत्साहित रहें, विश्वास में दृढ़ रहें और उनकी सेहत भी ठीक रहे।
३. जिन के प्रीय जन अपने विश्वास के कारण शहीद हो गए हैं, वे परमेश्वर पर अपने विश्वास में बने रहें और उससे सामर्थ पाकर आगे बढ़ सकें।

आज एक साथ मिलकर हम अपने सहविश्वासियों को प्रभु के सन्मुख प्रार्थना में लाएं। - ऐनी सेटास


मसीही शहीदों का बहाया गया लहू और नए विश्वासियों की फसल को उत्पन्न करने वाला बीज है।

पर यदि मसीही होने के कारण दुख पाए, तो लज्ज़ित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्वर की महिमा करे। - १ पतरस ४:१६


बाइबल पाठ: १ पतरस ४:१२-१९

हे प्रियों, जो दुख रूपी अग्‍नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझ कर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है।
पर जैसे जैसे मसीह के दुखों में सहभागी होते हो, आनन्‍द करो, जिस से उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनन्‍दित और मगन हो।
फिर यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्‍दा की जाती है, तो धन्य हो, क्‍योंकि महिमा का आत्मा, जो परमेश्वर का आत्मा है, तुम पर छाया करता है।
तुम में से कोई व्यक्ति हत्यारा या चोर, या कुकर्मी होने, या पराए काम में हाथ डालने के कारण दुख न पाए;
पर यदि मसीही होने के कारण दुख पाए, तो लज्ज़ित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्वर की महिमा करे।
क्‍योंकि वह समय आ पहुंचा है, कि पहिले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उन का क्‍या अन्‍त होगा जो परमेश्वर के सुसमाचार को नहीं मानते?
और यदि धर्मी व्यक्ति ही कठिनता से उद्धार पाएगा, तो भक्तिहीन और पापी का क्‍या ठिकाना?
इसलिये जो परमेश्वर की इच्‍छा के अनुसार दुख उठाते हैं, वे भलाई करते हुए, अपने अपने प्राण को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ में सौंप दें।

एक साल में बाइबल:
  • विलापगीत ३-५
  • इब्रानियों १०:१९-३९