रविवार, 10 अप्रैल 2011

ईर्ष्या से हानि

बर्मा की एक लघुकथा है कि एक कुम्हार अपने पड़ौसी धोबी को फलता-फूलता देख उससे ईर्ष्या करने लगा, और उसे बरबाद करने की ठान ली। उसने राजा के कान भरे कि वह आज्ञा दे कि धोबी राजा के एक काले हाथी को धो कर सफेद कर दे। धोबी ने राजा की आज्ञा स्वीकार करी और उससे निवेदन किया कि उसके कार्य की आवश्यकतओं के अनुसार उसे एक इतना बड़ा पात्र दिया जाए जिसमें खड़ा करके वह हाथी को धो सके। राजा ने तुरंत ही उस कुम्हार को आज्ञा दी कि वह मांगा गया पात्र तैयार करके दे। बड़ी कठिनाई से कुम्हार ने एक बड़ा पात्र तो बनाया लेकिन हाथी के उसमें खड़ा होते ही वह हाथी के वज़न से टुकड़े-टुकड़े हो गया। कुम्हार ने बहुत प्रयास किए और कितने ही बर्तन बनाए लेकिन सबका अन्जाम वही रहा और राजा की आज्ञा के अनुसार बर्तन बनाने के प्रयास में उसकी अपनी रोज़ी रोटी भी जाती रही। अन्ततः कुम्हार का ईर्ष्या में रचाया गया ष्ड़यंत्र उसे ही ले डूबा।

ईर्ष्या का स्वभाव है कि वह अपने पालने वाले का ही विनाश कर देती है। बाइबल के पुराने नियम में ईर्ष्या के लिए जो शब्द मूल भाषा में प्रयोग हुआ है, उसका अर्थ होता है "जलाने या भस्म करने वाला" और यह ईर्ष्यालु व्यक्ति के मन की सही दशा का विवरण भी है, क्योंकि ईर्ष्यालु के मन में ईर्ष्या ज्वाला की तरह धधकती रहती है। राजा शाउल भी अपनी दाउद के प्रति ईर्ष्या के कारण नाश हो गया।

नीतिवचन ६:२७ में लिखा है, "क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले और उसके कपड़े न जलें?" ईर्ष्या के अंगारे थोड़े ही समय में भस्म करने वाली धधकती ज्वाला बन जाते हैं और खाक कर देते हैं।

यदि ईर्ष्या के अंगारों को अंगीकार और पश्चाताप द्वारा न बुझाया गया तो वे ईर्ष्यालु को भस्म कर देंगे। - पौल वैन गोर्डर


...ईर्ष्या कब्र के समान निर्दयी है। उसकी ज्वाला अग्नि की दमक है... - श्रेष्ठगीत ८:६

जैसे दीमक काठ को अन्दर ही अन्दर खा लेती है, वैसे ही ईर्ष्या भी मनुष्य को अन्दर ही से नाश कर देती है।


बाइबल पाठ: याकूब ३:६-१८

Jas 3:6 जीभ भी एक आग है: जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है और सारी देह पर कलंक लगाती है, और भवचक्र में आग लगा देती है और नरक कुण्‍ड की आग से जलती रहती है।
Jas 3:7 क्‍योंकि हर प्रकार के वन-पशु, पक्षी, और रेंगने वाले जन्‍तु और जलचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गए हैं।
Jas 3:8 पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रूकती ही नहीं, वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है।
Jas 3:9 इसी से हम प्रभु और पिता की स्‍तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्‍वरूप में उत्‍पन्न हुए हैं श्राप देते हैं।
Jas 3:10 एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं।
Jas 3:11 हे मेरे भाइयों, ऐसा नही होना चाहिए।
Jas 3:12 क्‍या सोते के एक ही मुंह से मीठा और खारा जल दोनों निकलता है? हे मेरे भाइयों, क्‍या अंजीर के पेड़ में जैतून, या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।
Jas 3:13 तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्‍छे चालचलन से उस नम्रता सहित प्रगट करे जो ज्ञान से उत्‍पन्न होती है।
Jas 3:14 पर यदि तुम अपने अपने मन में कड़वी डाह और विरोध रखते हो, तो सत्य के विरोध में घमण्‍ड न करना, और न तो झूठ बोलना।
Jas 3:15 यह ज्ञान वह नहीं, जो ऊपर से उतरता है वरन सांसारिक, और शारीरिक, और शैतानी है।
Jas 3:16 इसलिये कि जहां डाह और विरोध होता है, वहां बखेड़ा और हर प्रकार का दुष्‍कर्म भी होता है।
Jas 3:17 पर जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्‍छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।
Jas 3:18 और मिलाप कराने वालों के लिये धामिर्कता का फल मेल-मिलाप के साथ बोया जाता है।

एक साल में बाइबल:
  • १ शमूएल १५-१६
  • लूका १०:२५-४२